शहीद दलपतसिंह शेखावत

प्रथम महायुध्द हुयो जणै जोधपुर रिसाला रो नेतृत्व दलपतसिंहजी करियो अर तुर्की में अति वीरता प्रदर्शित कर दो हजार तुर्क सैनिकां ने मार 23 सितम्बर 1918 रे दिन वीरतापूर्वक लड़तां हुवा गोऴियां री बौछार सूं वीरगति पाई अर शहीद हुवा। ऊणांरो कई कविसरां आछो जस कथियो है उणमें ऐक आपरी सेवा में नजर है:-
।।कवित्त।।
अपने अधीस काज ऐसे तन धन त्यागै,
प्रान पन पागै प्रीति पूर्न परखाय दी।
रीति रजपूतन की क्रीति कमनीय करि,
यूरप में जीति स्वर्न अक्षर लिखाय दी।
भनत किशोर हमगीर ताई हिन्दुन की,
सत्य की सफलताई सबन सिखाय दी।
स्यामधर्म सुध्दताई वीरवर बुध्दताई,
आर्यन की उध्दताई युध्द में दिखाय दी।।
तोल तरवार तीर वैरिन की वाहिनी पै,
तूटि पर्यो ऐन उर धारि अगवाने की।
स्वामीधर्म साहस दिखाय हरीसिंघ सुत,
तितर-बितर करी सेन तुरकानै की।
सुभट सुमेर नरनाह के किशोर कहै,
दाह के अरिन लीन्ही राह अगवाने की।
पारा-वार पार देस यूरोप चंदोल रही,
रही दलपती तैं हरोल हिंदवानै की।।
~~रचियताः किशोरदानजी बारहठ
किशोरदानजी को विद्वान अंग्रेज अफसर डा. ऐल.पी. टेसीटोरी मारवाड़ का सर्वश्रैष्ठ डिंगऴ का विद्वान चारण बताया करता था।
~~प्रेषित: राजेंन्द्रसिंह कविया (संतोषपुरा सीकर)