राजस्थानी साहित्य रा आगीवाण – डॉ. शक्तिदान कविया – विनिबंध

डॉ. शक्तिदान कविया री जीवण-जात्रा

जलमभोम, जाति अर वंश-परंपरा

डिंगल काव्यशैली रा मर्मज्ञ अर राजस्थानी रा चावा-ठावा साहित्यकार डॉ. शक्तिदान कविया रो जलम 17 जुलाई 1940 (सरकारी कागजां रै मुजब) नै जोधपुर जिलै री शेरगढ तहसील रै गांव ‘बिराई’ में हुयो। आपरै पिताजी रो नाम गोविन्ददानजी कविया अर माताजी रो नाम फूलांबाई हो। गोविन्ददानजी डिंगल अर पिंगळ रा नामी विद्वान हा। काव्यपाठ रा मर्मज्ञ, सतोगुणी अर विलक्षण स्मृति रा धणी हा। चौखळै में आछी प्रतिष्ठा ही, पंच पंचायती में सखरी पैठ ही, छत्तीस ई कौम रा लोग वां री बात मानता। आपरी ग्राम पंचायत रा निर्विरोध उपसरपंच रैया। पंचायत समिति-बालेसर में सहवृत्त सदस्य रै रूप में लब्धप्रतिष्ठ व्यक्ति रै रूप में सर्वसम्मत मनोनीत हुया। 85 बरस री उमर ताई डिंगल-काव्यपाठ सारू आकाशवाणी आवता-जावता।

डॉ कविया नैं सालूजी, चिमनजी जियांकलै कवेसरा री सांवठी अर सांतरी काव्य-विरासत घूंटी रै साथै मिली, जकी रो कवि नैं घणो गुमेज है :

करनहरौ चिमनौ कहौ, हरियंदहर गोविंद।
सुत गोविंद सगतेस रै, वड पितु चिमन कविंद।।

आपरी कुळ-परंपरा तो संस्कार्रा री खाण हुवै ईज है, साथै ई साथै संगत रो पण फळ जरूर मिलै। आपणै अठै लोकजीवण में कहावत है कै ‘नर नानाणै जाय’-मतलब ओ कै नानाणै वाळां रा गुण आया ई सरै। क्या दीठ सूं डॅा. कविया बडभागी है कै वां नैं जियांकली जोगती संस्कृति पितृपक्ष सूं मिली, उणी समोवड़ संस्कार अर आचार-विचार मातृपक्ष सूं मिल्या। आपरा मामा अळसीदानजी रतनू (बारठ रो गांम) जैसलमेर कविराज हा अर आपरी सिरजणा रै पाण सुकवियां रा सिरताज हा :

मामौं अळसीदान मो, जैसाणे कविराज।
गुण बारठ रै गांम रौ, सुकवि हुतौ सिरताज।।

खानदान अर नानाणै रै समोवड़ ई सासरो ओपै। लोकजीवण री लोक-हितैषणां रो सनमान करणियै कवि री चाहत पूरी हुयी अर धाट-प्रदेश में खारोड़ा रै श्री सतीदानजी री लाडली लहरकंवर सूं कवि डॅा. शक्तिदानजी कविया रो ब्याव संवत् 2013, वैशाख बद बारस (7 मई, 1956 ई. ) नैं संपन्न हुयो। डॅा. शक्तिदान कविया नैं आपरी जोडायत श्रीमती लहरकंवर री कोख सूं पांच सपूत रतन मिल्या-वीरेन्द्र, मनजीतसिंह, नरपतदान, हिम्मतसिंह अर वासुदेव। आज सब आप-आपरी ठावी ठौड़ राखै। सातूं सुखां रा थाट-बाट। कुल मिला’र भर्यो-पूरो परिवार, बेटा-पोता अर साख-सोबत आज कविया दंपती नैं अंजसावै।

पढ़ाई-लिखाई अर नौकरी

डॅा. कविया रै बाळपणै में वां रै गांव बिराई में न तो स्कूल, न सड़क, न बिजली, न सफाखानो, न डाकखानो, न मोटर-बस, न ट्रेक्टर, न कोई आधुनिक शिक्षा पायोडो मिनख। विकास रै नाम माथे कीं नीं हो। एक कानी मोटा धोरा तो दूजै कांनी भाखर। आजादी सूं एक बरस पैली शेरगढ़ रा हाकम बालेसर में पाठशाला बणाई, जठै पैला हैडमास्टर जोलियाळी रा ईन्दा रेंवतसिंहजी अर अध्यापक प्रभूदानजी रतनू (बारठ रो गाम) रै निजी प्रयास सूं चौताळै रा ठावा मिनखां नैं आपरा टाबर पढ़ावण सारू हामळ भरावता। शक्तिदानजी रा पिताजी गोविन्ददान जी वां नैं बाळेसर स्कूल में भर्ती कराया। अठै सुरुआती पढ़ाई कर्यां पछै प्राइमरी कक्षा में मथाणियै री स्कूल में भर्ती कराया, जठै सीतारामजी लाळस अध्यापक हा। आठवीं उत्तीर्ण कर्यां पछै पाछा बाळेसर नवमी कक्षा में प्रवेश लियो। पछै मैट्रिक री परीक्षा देवण सारू आप चौपासणी (जोधपुर) आया।

जोधपुर में पढ़ाई करतां कविया आपरी प्रतिभा अर पुरुषारथ रै पाण आपरी सांतरी पिछाण बणाई। सामाजिक कार्यक्रमां में भाग लेवणो, काव्य-सिरजण करणो, गुणी मिनखां री संगत, काव्य-चर्चावां, कॉलेज में हिंदी अर राजस्थानी री वाद-विवाद प्रतियोगितावां में भाग लेय पुरस्कार पावणो, कॉलेज री पत्र-पत्रिकावां में रचनावां प्रकाशित करावणी, संपादन करणो, आकाशवाणी सूं काव्यपाठ अर वार्तावां रो प्रसारण इत्याद कामां सूं विद्यार्थी कविया नैं एक निकेवळी ओळखाण मिली। अंग्रेजी रचनावां रो अनुवाद भी आं दिनां में करियो। हिन्दी, राजस्थानी, डिंगळ अर पिंगळ रै साथै संस्कृत में भी सिरजण कर आपरी विद्वता रो परिचय दियो अर विद्वानां में मान-सनमान पायो। इण सरस्वती रै वरदायक सपूत आपरी पूरी उमर सरस्वती री साधना में लगाई है अर अबार लग लगोलग इणी साधना में रत्त है। गुण अर परिमाण दोनूं दीठ सूं आपरो सिरजण सिरै है, जिणरी विस्तृत जाणकारी साहित्य साधना सिरैनाम वाळै अध्याय में दिरीजी है। डॅा. कविया रै व्यक्तित्व री कीं इयांकली खासियतां रो हवालो अठै उचित लागै, जकी वांनैं ‘औरां सूं कछु और’ री श्रेणी में लाय ऊभा करै। आथूणी थळवट में धूंधळियै धोरां रै अभावां, अबखायां अर प्राकृतिक आपदावां सूं घणा थपेड़ा खायोड़ै एक बाळक आपरी मेधा, आस्था, पुरुषारथ, दृढ-इच्छाशक्ति अर सतवट री साख पर आज राजस्थानी साहित्याकाश रो दैदीप्यमान नक्षत्र बण पूरी कायनात नैं रोशन करै, उणरी निकेवळी अर न्यारी ओलखाण री जाण-पिछाण तो पाठकां नैं होवणी ई चाइजै, इण बात नैं ध्यान में राखता डॉ. कविया रै व्यक्तित्व अर कर्तव्य सूं जुड़ियोड़ी कीं उल्लेखजोग बातां जकी आथूणी थळवट में तो स्यात ई दूजै मिनख में मिलै, पूरी प्रामाणिकता रै साथै मांडीजी है।

कीरत रा कमठाण

1. जोधपुर सूं ई पैली बसियोडै गांव बिराई में आधुनिक शिक्षा हासल करणिया पैला सगस डॅा. शक्तिदान कविया शेरगढ़ तहसील में पैलपोत बाळेसर गांव में राजकीय प्राथमिक विद्यालय खुल्यो, उणमें भरती होवणियां टाबरा में प्रवेश लेवण अर पढ़ण दोनूं कामां में अगीवाण रैया है।

2. राजस्थानी भाषा अर साहित्य रा अद्वितीय विद्वान, ‘राजस्थानी सबदकोस’ रा रचयिता अर केई महताऊ डिंगळ ग्रंथां रा संपादक पद्मश्री सीतारामजी लाळस रा शिष्य होवण रो सौभाग्य आपनैं मिल्यो। मथाणिया स्कूल में उच्च प्राथमिक स्तर री पढ़ाई रै दौरान लाळसजी रै सानिध्य अर आपरी लगन रै कारण विद्यार्थी कविया री साहित्य सिरजण में रुचि अर समझ गहरी हुई।

3. विद्या-व्यसनी चारण समाज में सर्वप्रथम साहित्य में विद्यावाचस्पति (पीएच. डॅा. ) री उपाधि (सन 1969) में डॅा. शक्तिदान कविया नैं मिली। जोधपुर विश्वविद्यालय सूं ‘डिंगल के ऐतिहासिक प्रबंध काव्य’ विषय पर आपरो शोध-प्रबंध है।

4. राजस्थानी भाषा, साहित्य एवं संस्कृति अकादमी, बीकानेर रो सबसूं पैलो सूर्यमल्ल मीसण शिखर पुरस्कार डॅा. कविया रै नाम है, आपरी निबंध पोथी ‘संस्कृति री सोरम’ पर ओ पुरस्कार 1986 में मिल्यो।

5. लगोलग 37 बरसां तांई (सत्रह बरस हिंदी विभाग अर बीस बरस राजस्थानी विभाग में) विश्वविद्यालय स्तर पर डिंगल साहित्य पढावण रो कीर्तिमान ई कवियाजी रै नाम है। रोटेशन सूं तीन बार राजस्थानी विभाग रा अध्यक्ष ई रैया।

6. कवियाजी री निबंध पोथी ‘संस्कृति री सोरम’ महर्षि दयानंद सरस्वती विश्वविद्यालय, अजमेर में सन 1993 सूं 2000 ताई लगोलग 8 बरस एमए हिंदी पूर्वार्द्ध रै चौथे ऐच्छिक प्रश्नपत्र (राजस्थानी) सारू पाठयपुस्तक रै रूप में स्वीकृत रैयी।

7. भारतीय अर अंतरराष्ट्रीय स्तर रा परिचै ग्रंथां (Who’s who in the world) में आथूणै राजस्थान सूं सर्वप्रथम डॅा. कविया रो नाम सम्मिलित हुयो।

8. भोपाल में ‘वागर्थ विश्व कविता समारोह’ में डॉ. कविया राजस्थानी कवि रूप में दिनांक 11 सूं 13 जनवरी, 1989 री अवधि में सहभागिता करी।

9. इटली-इंडिया एसोसिएशन, वेनिस री तरफ सूं अंतरराष्ट्रीय साहित्यिक सेमिनार में डिंगल रै विशेषज्ञ रूप में सन 1987 में डॅा. कविया नैं आमंत्रण मिल्यो। आठ दिनां री ऐतिहासिक इटली-जातरा में अनेक ठौड़ डिंगल काव्यपाठ री रिकॉर्डिंग हुई। सेमिनार में ‘डॉ. एल. पी. टेस्सीटोरी रो राजस्थानी साहित्य में योगदान’ विषय पर पत्रवाचन कियो। इटली री त्रिएस्ते युनिवर्सिटी में डिंगल साहित्य माथे डॅा. कविया रो भाषण हुयो।

10. डॅा. कविया रै शोध-आलेखां रा अंग्रेजी, इटालियन अर गुजराती भाषावां में अनुवाद प्रकाशित हुया है। केई डॉक्यूमेंट्री अर टेलीफिल्मां में डिंगळ-छंदपाठ करण रो सौभाग्य डॅा. कविया रै नाम है।

11. प्रादेशिक अर राष्ट्रीय स्तर रा कुल 14 पुरस्कार डॅा. कविया री पुस्तकां, निबंधां, कविता अर अनुवाद माथे मिल्या है। साहित्य अकादेमी, नई दिल्ली सूं हिंदी कविता रै राजस्थानी अनुवाद ‘धरती घणी रूपाळी’ पोथी पर 1993 ई. में आपनैं राजस्थानी अनुवाद पुरस्कार मिल्यो।

12. यू. जी. सी. रै राष्ट्रीय प्रसारण सूं डॅा. कविया द्वारा ‘राजस्थानी काव्यभाषा : डिंगळ’ रो तीन-तीन दिनां तांई दो बार प्रसारण हुयो है। अै प्रसारण चर्चित रैया अर यू. जी. सी. सूं मिल्योड़ै प्रशंसापत्र में इण बात रो हवालो है कै इतरी कवितावां कंठस्थ होवणी अचंभै री बात है।

13. हिंदी, राजस्थानी अर ब्रज, तीनूं भाषावां में आपरो साहित्य सिरजण विद्यार्थी-जीवण सूं आज तांई सतत रूप सूं चाल रैयो है। संयोग सूं आप तीनूं भाषावां री साहित्य अकादमियां रा माननीय सदस्य ई रैया है। अबार आप ब्रजभाषा अकादमी रा सदस्य है।

14. मौलिक, संपादित अर अनूदित कुल मिला’र आपरी दो दर्जन पोथियां प्रकाशित है, दर्जनभर प्रकाशन री बाट जोवै। आं रै अलावा सैंकड़ां लेख, आकाशवाणी वार्तावां, दूरदर्शन पर काव्यपाठ, पुस्तक समीक्षावां, महताऊ ग्रंथा री विस्तृत अर ससंदर्भ प्रस्तावनावां, पारंपरिक शैली री छंदोबद्ध रचनावां रै साथै आधुनिक सतुकांत, अतुकांत, मुक्तक हाइकु इत्याद विविध अर विस्तृत सामग्री आपरै साहित्यिक अवदान री साख भरती ओपती कूंत री उडीक में है।

15. साहित्यिक जगत री महान हस्तियां रामधारीसिंह दिनकर, हरिवंशराय बच्चन, नागार्जुन, आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी, डॉ. संपूर्णानंद इत्याद रै सान्निध्य में कविमंचां सूं काव्यपाठ करण रो सौभाग्य आपरै नाम है।

16. आप राष्ट्रीय स्तर रै के. के. बिड़ला फाउंडेशन; नई दिल्ली, साहित्य अकादेमी; नई दिल्ली अर लखोटिया पुरस्कार; नई दिल्ली जैड़ै हिन्दी-राजस्थानी पुरस्कार-निर्णयन समितियां रा माननीय सदस्य है।

17. अल्पवय में ई साहित्य रै पठन-पाठन री रुचि रै कारण देस रा ख्यातनाम साहित्यकारां सूं पत्र-व्यवहार रो मौको मिल्यो। सन् 1951 में पांचवी कक्षा में पढतां राजकवि शंकरदानजी जेठीभाई लींबड़ी (काठियावाड़) नैं कागद में अेक दूहो लिख ‘लघु-संग्रह’, भुज पाठशाला री पाठ्यसामग्री अनेकार्थी, मानमंजरी, रूपदीप पिंगळ आद भेजण सारू आग्रह कियो। राजकवि आपरै हस्ताक्षर सहित कागज (25 जनवरी, 1952 रो ओ पत्र आज ई डॅा. कविया कनै सुरक्षित है) साथै सारी सामग्री सप्रेम भेंट स्वरूप भेजी। इण उपकार रो आभार जतावतां पांचवीं कक्षा रै विद्यार्थी डॉ. शक्तिदान कविया रो पिंगळ कवित्त देखणजोग है :

श्रीः श्रीः पूजनीय लींबड़ी कवीस ताको, लिखी ‘शक्त’ कविया की जय श्री भवानी की।
गुण के निलम्प पात जाति के वयल अब, फैली गो वीच बहु कीर्ति बड़दानी की।
विद्या के सागर शुभचिंतक विद्यार्थी के, भेजी ‘लघु संग्रह’ सो रावरी निसानी की।
धन्य धन्य त्यागी तव उमा दीर्घायु करे, शक्तिदान कहै कृपा रहै बाक बानी की।।

18. आप छठी कक्षा में पढतां श्री करनी माता री स्तुति सारू दूहा, मोतीदाम छंद अर छप्पय आद छंदां री रचना करी। ‘श्री करनी यश प्रकाश’ नाम सूं लघुपोथी रूप में जोधपुर री साधना प्रेस सूं छपाई। उण समै रै कई कवि-कोविदां नैं डाक सूं भेजी। उत्साह वधारण सारू ‘फतै-विनोद’ रा प्रणेता आसोप ठा. राजा फतैसिंहजी रो 9 मार्च, 1953 रो लिख्योड़ो कागज आज ई कवियाजी कनै सुरक्षित है।

19. सन् 1953 में भीखै पोकरणै (गांव खेलाणो-जेसलमेर) रै आनीलै सूरापणै सूं जूंझ वीरगति पावण रै प्रसंग पर ब्रजलालजी कविया छंद लिखणा सरू कर्या। आधा छंद लिख्यां पछै राजभय सूं इण रचना नैं बंद कर एक दूहै रै साथै आपरी रचना मथाणियै पूगती करी, जिणनैं प्रसंग मुजब ओपतो वरणाव डिंगळ छंदां में पूरो कर डॅा. शक्तिदान कविया पूरी करी। काव्य रो नमूनो :

विगतवार इण विद्ध सूं, वरणी कथा विजेस।
कर दीनी आगै सकव, सम्पूरण ‘सगतेस’।।
चार फरवरी दिन चढ्यां, सन तेपन री साल।
सुरग गयौ भीखौ सुभट, झूळ अपच्छर झाल।।

20. आप सन् 1954 में लोकदेवी मालणदे रा चाडाऊ (विखमी पुळ में साहळ) भाव रा सात सारसी छंद बणाया। टाबरपणै री आ रचना प्रौढ़ता री दीठ सूं खरी उतरै:

सुरराय हेलो वेग सांभळ, इणी पुळ में ईसरी।
दूलजा म्हारी मात देवी, वेर इण क्यूं वीसरी।
फरियाद सुणतां सगत फौरन, सिंघ जीण सजावजे।
महमाय साहळ सुणे मालण अेथ बैगी आवजे।।

21. आप सन् 1954 में ई आसोजी-नौरतां में मालणदेवी री स्तुति रो आठ दुहाळां रो त्रिकुटबंध गीत बणायो, जको पढणो ई मुसकिल हुवै। अेक सांस में 14-14 मात्रावां री आठ तुकां, अंत में 12 मात्रा री तुक, ऊपर भवरगुंजार गीत रै लक्षणां री दोय तुकां, अै सब मिल’र अेक दुहाळो बणै। विद्यार्थी कविया रो ओ गीत बाद में आकाशवाणी रै जयपुर केंद्र सूं प्रसारित हुयो।

22. विद्यार्थीकाल में एस. एम. के. कॉलेज री वार्षिक पत्रिका में इग्यारवीं अर बारवीं कक्षा में दोनूं साल अेक मात्र विद्यार्थी शक्तिदान कविया री रचनावां पैलै साल ‘सूवटियौ’ अर दूजै साल ‘तीजणी’ सिरैनाम सूं छपी।

23. सन् 1960 में कॉलेज पत्रिका में हिंदी अर अंग्रेजी साथै राजस्थानी रो सेक्शन ई जुड़ियो, जिणमें छात्र संपादक रै रूप में शक्तिदान कविया रो चयन हुयो।

24. आप कॉलेज री वाद-विवाद प्रतियोगिता में पैलो स्थान प्राप्त कियो। एम. ए. हिंदी साहित्य परिषद् में पूर्वार्द्ध रै छात्र रूप में सह-संयोजक बण काम संभााळियो।

25. सन् 1961 में आपरे गांव बिराई में अंतरप्रांतीय कुमार साहित्य परिषद् री स्थापना करी अर विशाल कवि सम्मेलन रो आयोजन कियो, जिणमें प्रसिद्ध कवि कोविदां री रचनावां सुणीजी। रेवतदानजी चारण, गणपतिचन्द्रजी भंडारी, विजयदानजी देथा, नेमिचन्द्रजी भावुक, कल्याणसिंहजी राजावत (जयपुर), धनदानजी लाळस, ब्रजलालजी कविया इत्याद प्रमुख हा।

26. आप बीए, री पढ़ाई करता अंग्रेज कवि टॉमस ग्रे री विश्वविख्यात कविता ‘अेलीजी’ रो राजस्थानी पद्यानुवाद कर नीचे हिन्दी भावार्थ लिख्यो, जकी ‘प्रेरणा’ (मासिक) जोधपुर रै जनवरी सूं अप्रेल, 1959 चार अंका में आठ-आठ स्टेंजा मूळ अर अनुवाद हिन्दी भावार्थ सहित छपिया।

27. चीन रै आक्रमण अर भारत-पाक भिड़ंत रै मौके डॅा. कविया री रचियोड़ी आधुनिक अर डिंगळ-पिंगळ सब भांत री रचनावां पत्र-पत्रिकावां में छपी।

28. सन् 1958 में एस. एम. के. कॉलेज रा पैला विद्यार्थी शक्तिदान कविया हा, जकां री काव्य-रचनावां रो पाठ आकाशवाणी रै जयपुर केंद्र सूं होवण लाग्यो अर बाद में आकाशवाणी कार्यक्रम सलाहकार मंडल रा सदस्य पण चुणीजिया।

29. सन् 1963 में एम. ए. पूर्वार्द्ध हिंदी रै चौथे ऐच्छिक प्रश्नपत्र रै रूप में पैलै दिन पैलो कालांश लेवण रो सौभाग्य डॅा. कविया नें मिल्यो। आपरी अतिप्रिय भाषा डिंगळ रो प्रथम कालांश, जिणमें वां टाबरां ने सूर्यमल्ल मीसण विरचित ‘वीर-सतसई’ पढाई कवियाजी नें आज ई याद है।

30. सन् 1964 में जोधपुर विश्वविद्यालय री वार्षिक प्रत्रिका रो प्रकाशन सरू हुयो, जिणरै राजस्थानी विभाग (खंड) रा सलाहकार शक्तिदान कविया बण्या, जकां रो सचित्र परिचै उण पत्रिका में छप्यो।

31. सन् 1964-65 अर 1965-66 दो शिक्षा-सत्रां में डॅा. कविया री संपादित पोथी ‘लाखोणी’ (राजस्थानी लोककथावां, विस्तृत भूमिका सहित) एम. ए. हिंदी पूर्वार्द्ध डिंगळ में पाठय-पुस्तक स्वीकृत रैयी। बाद में संदर्भ पुस्तक रै रूप में रैयी।

32. साहित्य अकादेमी, नवी दिल्ली में राजस्थानी विषय री मान्यता वाळे बरस ई शिक्षा-सत्र 1974-75 में जोधपुर विश्वविद्यालय में राजस्थानी हिन्दी विभाग रै अंतर्गत स्नातक स्तर पर पैली बार कक्षावां सरू हुई। राजस्थानी री उच्चशिक्षा स्तर पर आ सरुआत विश्व में पैली बार जोधपुर विश्वविद्यालय में हुयी। पैलपोत फगत तीन ई टाबरां रा आवेदन-पत्र आया पण आपरे मायड़ भासा लगाव रै कारण डॅा. कविया बिना पारिश्रमिक (लॅान में बैठ) इण पैलड़े बैच में व्यक्तिगत संपर्क कर टाबरां री संख्या तीन सूं उन्नीस तांई पूगाई। उण बरस राजस्थानी विषय रा परीक्षक ई डॉ. कविया रैया। दूजे बरस अस्वस्थता रै कारण दायित्व दूजां नैं सूंपीज्यौ।

33. शिक्षा-सत्र 1976-77 सूं दो बरसां तांई डॅा. कविया री संपादित पोथी ‘रंगभीनी’ जोधपुर विश्वविद्यालय में बी. ए. द्वितीय वर्ष रै दूसरे प्रश्नपत्र सारू पाठ्य-पुस्तक रूप में स्वीकृत रही।

34. भारत में सर्वप्रथम राजस्थानी विषय में एम. ए. रै बाद एम. फिल. पाठ्यक्रम री सरुआत रो सौभाग्य ई जयनारायण व्यास विश्वविद्यालय जोधपुर रै नाम है। ओ पाठयक्रम डॅा. कविया रै विभागाध्यक्ष रैवतां प्रारंभ हुयो अर एम. फिल. री उपाधियां प्रदान करीजी।

डॉ. कविया विषयक आ बातां नै अठै मांडण रो अेक खास उद्देश्य ओ रैयौ है के अेक आदमी कठै सूं कठै तांई री जस-जात्रा पूरी करी है। राजस्थानी लोकजीवण री कहावत है के ‘हूंत रो कांई सरावे अर अणहूंत रो कांई बिसरावै’, पण जे कोई आदमी आपरै पुरुषारथ रै पाण अणहूंत नें हूंत में बदळ देवे तो पछे उणनैं तो आवणवाळी पीढी सारू आगीवाण रूप में ओपतो मान-सनमान मिलणो ई चाइजै। कठण संघर्ष, प्रकृति रै दुर्दांत कहर रो सामनो करणो अर आपरी कुळ-परंपरा रै संस्कारां नैं बणाया राखतां आपरी न्यारी निकेवळी जोगती छिब बणावणी आज रै जमानै में कोई सोरो काम थोडो ई है। जमानै री हवा चालै जियां ई लोगां रा चित्त हालै अर अनीत रा गोधा संस्कारां री सींवां में रोजीना जुरड़ा घालै। दंद-फंद रो दौर, हाय धन होय धन रो शोर अर अनीति रो जोर आज रै समै री औळखाण है, उणमें विद्या नैं ई अेकमात्र व्यसन बणाय, सर्वथा सात्त्विक, शाकाहारी अर सादगीपूर्ण जीवण बितावतां आपरी साहित्य साधना में रत रैवणियो साहित्यकार पाठकां री चाहत रो केंद्र बणै। किणी पंथ, गुट का पारटी रै पंपाळां सूं साव अळगा रैय आपरे अंतस में ग्राम्य संस्कृति रै अमिट संसार नें सहेजता आस्था रै उजास में खरो भरोसो राखणिया डॅा. कविया किणी और नैं नीं, फगत करुणानिधि करतार नैं ई वंदण में भरोसो राखै :

अलख जगत आधार, निराकार साकार नित।
वन्दूं बारम्बार, करुणानिधि करतार ने।।

डॉ. शक्तिदान कविया री साहित्य-साधना

डॉ. शक्तिदान कविया रै सिरजण संसार पर निगै करां तो अेक बात साफ सिद्ध हुवै के सिरजणकार री साहित्य-साधना सतत अर सांतरी है। खास कर राजस्थानी डिंगल अर पिंगळ साहित्य डॅा. कविया रै अध्ययन रा क्षेत्र रैया है। बियां तो आपरे सिरजण में हर भांत रा विषय, परिवेश अर परिस्थितियां भेळीजी है पण अंजसजोग ऐतिहासिक प्रसंग अर प्रवादां नें नवी दीठ अर नवे कलेवर रै साथै प्रस्तुत करणो आपरौ अद्वितीय काम है। कविया किणी सरावणजोग कृत्य री प्रशंसा करता जितरी उदारता बरती है, बिसरावणजोग कुकृत्या री पोल खोलण अर व्यंगबाणौ सूं बेधण में उतरा ई आक्रामक भी निगै आवे। डॅा. कविया रो सिरजण परिमाण अर प्रभाव दोनां दीठां सूं ईं विस्तृत अर विविधता वाळो है। आपरे समग्र कर्तृत्व री समीक्षा करण सारू शोधप्रबंध री दरकार है। किणी अेक विनिबंध री आपरी सीमावां हुवे, म्हारी पण बेई सीमावां है। इण वास्ते अठै डॅा. कवियाजी री राजस्थानी कृतियां रो संक्षिप्त परिचै देवतां हिंदी, पिंगळ अर ब्रज री रचनावां रो फगत नामोल्लेख ई करणो संभव हो सक्यो है। पाठक इण बात ने समझतां इण विनिबंध नें स्वीकारेला, अेड़ो म्हारो निवेदन है। बियां डॅा. कविया तो राजस्थानी संस्कृति रा मुग्ध गायक, प्रशंसक अर पैरोकार है, जका भला ई हिंदी में लिखे का पिंगळ अर ब्रज में पण वां री रचनावां री विषय-विस्तु तो राजस्थानी संस्कृति, प्रकृति अर परंपरावां ई रेयी है। आपरे मौलिक, संपादित अर अनूदित हर ग्रंथ में रणबंकै राजस्थान री रळियावणी अर मनभावणी संस्कृति री सोवणी छिब दीपायमान हुवे। डॉ. कवियाजी री साहित्य-साधना रो संक्षिप्त परिचै इण भांत है :

राजस्थानी पोथियां
  1. संस्कृति री सौरम (निबंध-संग्रै)
  2. सपूतां री धरती (काव्य-संग्रै)
  3. दारु-दूषण (दूहा-संग्रै)
  4. पद्मश्री डॉ. लक्ष्मीकुमारी चूंडावत (जीवनवृत्त)
  5. धरा सुरंगी धाट (काव्य-संग्रै)
  6. धोरां री धरोहर (काव्य-संग्रै)
  7. प्रस्तावना री पीलजोत (राजस्थानी निबंध)
  8. अेलीजी (अनुवाद)
  9. धरती घणी रुपाळी (पद्यानुवाद)
हिन्दी पोथियां

डॅा. कविया री हिन्दी भासा में तीन मौलिक कृतियां प्रकाशित है:

  1. राजस्थानी साहित्य का अनुशीलन (निबंध-संग्रै)
  2. डिंगल के ऐतिहासिक प्रबंध काव्य (शोध-प्रबंध)
  3. राजस्थानी काव्य में सांस्कृतिक गौरव (निबंध-सत्र)

आ कृतियां रा सिरैनाम ई इण बात री साख भरै कै आं में राजस्थानी भासा, साहित्य अर संस्कृति री विरोळ है। डॉ. कविया राजस्थानी रै प्राचीन रूप सूं अद्यतन ढांचै रै हर आयाम रा पारखी अर पारंगत विद्वान है। शोधकर्ता अर समीक्षक रै रूप में डॉ. कविया आपरो कोई सानी नीं राखै। विषय री समग्र जाणकारी जुटावण, उणरे मूळ नैं पिछाणण अर असार नैं अळघो करण में आपरो कोई मुकाबलो कोनी। डॉ. कविया एक ईमानदार समीक्षक है, जकां पर किणी धड़ै का वाद री परछाई तक कोनी पड़ी। आपरी बात नैं सटीक अर अकाट्य प्रमाणां रै साथै पूरी समझ सूं पाठकां सांम्ही लावण रा हामी डॉ. कविया जोड़-जुगत अर कट-पेस्ट री सूगली संस्कृति सूं घणा अळगा है। आपरा निबंध भलां ई वै राजस्थानी में हुवो भलांई हिंदी में, पाठकां नैं मंत्रमुग्ध कर देवै। भावी शोधार्थियां अर अध्येतावां सारू नवी जाणकारियां अर शोध संभावनावां आं निबंधां में मिलै। आपरो अंदाजे-बयां अद्‌भुत है। भासा पर आपसे इतरो अधिकार है कै सबद खुद भावां अर विचारां री हळायां नैं लारलै हाळी री भांत पूरता चालै। राजस्थानी भाषा रै पाठकां सारू रोचक, सांवठी अर सांतरी सामग्री रा पुख्ता प्रमाणां रै कारण ही ऐ निबंध घणा चर्चित रैया। इण राजस्थानी विनिबंध में डॉ. कविया री आं हिन्दी कृतियां री संक्षिप्त जाणकारी ई दी जाय रैयी है। आं हिन्दी निबंधां में इयांकली मोकळी जाणकारियां है, जकी पैली बार पाठका सांम्ही सही रूप में अर सप्रमाण आयी है। शोध-प्रबंध में संवत् 1700 सूं 2000 वि. रै बिचाळै लिखीज्यै डिंगळ रै ऐतिहासिक प्रबंध-काव्यां री पैली बार समग्र विरोळ हुयी है।

डॉ. कवियां री आ पोथियां रा सगला निबंध राजस्थानी साहित्य रै अध्येतावां सारू डिंगल काव्य री प्रवृत्तियां समझण में उपयोगी सिद्ध हुवै। एक बात भळै अठै उल्लेखजोग है कै डॉ. कविया रो हर निबंध ओ संकेत करै कै निबंधकार बोहळी सतर्कता अर मैणत रै साथै सिरजण कियो है। इणरो प्रमाण ओ है कै कवियाजी रै हर निबंध में उदाहरणां री भरमार मिलै। उदाहरणां में भी रचनाकार रै नाम अर गांव साथै अन्य ओपतै कुरब तकातक री जाणकारी देवण री पुराणी परंपरा रो पालण आं निबंधां में मिलै।

संपादित ग्रंथ

राजस्थानी साहित्य री अमोलक निधि डिंगल-साहित्य वाचिक परंपरा रो साहित्य रैयो है। इण साहित्य रा रचयिता अधिकांश कवेसर ग्रामीण पृष्ठभूमि रा इयांकला साधक लोग हा जका आपरी वंश-परंपरा मुजब स्वांत: सुखाय साहित्य सिरजण में रत रैया। आज ई राजस्थान रै ग्रामीण अंचलां में अलेखूं अज्ञात कवियां रा मोकला अर महताऊ ग्रंथ दीमक री भेंट चढण सारू मजबूर है। स्कुट गीतां सूं लेय प्रबंध-काव्य तांई हर आकार-प्रकार अर विषय-विविधता वाळा ग्रंथ इण रळियावणी भासा में सिरज्योड़ा प्रकाशन री आस करता-करता निराश हो चुक्या है। ‘सुनि महाजन चोरी होत चारि चरनन की’ वाळी बात सुण्योड़ा भोळाभाळा लोग साहित्य अर उणरे संपादन-प्रकाशन का पछै उणरी उपादेयता सूं लगभग अनभिज्ञ है, इण वास्ते वै आपरै बडेरां रै अंजसजोग कामां-नामां री यदा-कदा टूटी-फूटी बात तो करै पणण उण हित्य नैं बारे काढ’र जोगतै हाथां सूंपण में आज ई कतरावै।

आं सगळी परिस्थितियां नैं समझण वाळा, सत् अध्ययन में जुट्या रैवणिया अर पारंपरिक काव्य रै प्रति अगाध श्रद्धा रै साथै उणरे विविध पखां री पूरी समझ राखणिया विद्वान डॉ. शक्तिदान कविया मौलिक सिरजण रै साथै राजस्थानी साहित्य री इण अमोलक धरोहर री कूंत करण रो ई काम आपरै हाथ में लियो। आजादी रै पछै राजस्थानी साहित्य रा मोकळा विद्वानां आपरी संस्कृति, कला, इतिहास, रीति-रिवाज, तीज-तिवार इत्याद री सम्यक जाणकारी भावी पीढी नैं हस्तांतरित करण सारू पारंपरिक साहित्य अर लोक-साहित्य री शरण ली। आं विद्वान मनीषियां रो खराखरी भरोसो रैयो कै ओ प्राच्च साहित्य हर दीठ सूं जड़ां नैं पोखण वाळो अर संस्कारा रै प्रबळ प्रवाह रो साखीधर है। इण कारण आं साहित्य सेवियां पुराणै ग्रंथां रै संपादन रो काम हाथ में लियो। इण कड़ी में पद्मश्री सीतारामजी लाळस, डॉ. मनोहरजी शर्मा, नरोत्तमदासजी, भूपतिरामजी साकरिया, बद्रीप्रसादजी साकरिया आद रा नाम हरावळ पंगत में लिया जा सकै।

इणी घण महताऊ अर अत्यंत श्रमसाध्य सिरजण-श्रृंखला री मजबूत कड़ी है-डॉ. शक्तिदान कविया। डॉ. कविया रै व्यक्तित्व री आ खासियत है कै आप डिंगळ, पिंगळ अर लोक-साहित्य सूं लेयनै आधुनिक साहित्य तकात री पोथियां रो संपादन कियो है। डिंगळ रा इयांकला महताऊ ग्रंथ संपादित किया है, जकां रो संपादन अन्य किणी साहित्यकार सारू घणो अबखो काम हो। सोढायण, मांन-प्रकास, कवि मत मंडण, ऊमरदान-ग्रंथावली राजस्थानी दूहा-संग्रह आद ग्रंथ इयांकला है, जकां रो संपादन करतां संपादक नैं बोहळी मैणत करणी पड़ी है। डिंगल रा कवि डूंगरदान आसिया मांन-प्रकास रै संपादन पर आपरी सम्मति देवतां लिख्यो है, ” महाराजा मानसिंह रो सुजस तो सोनै रे समान है, मानप्रकास ग्रंथ महाकवि महादान मेहडू जियांकलै कुशल जौहरी रै सध्योड़ै हाथां सूं घड्योड़ो सुंदर हार है अर ग्रंथ रो ओपतो संपादन उण कनक-हार रै आकर्षण नैं अणगिणत बधावतो नगीनां रो जड़ाव है, जको सगत कवि यानी डॉ. शक्तिदान कविया कियो है। ”

डॉ. शक्तिदान कविया एक दर्जन ग्रंथां रो संपादन कियो है, जिणमें छह डिंगल शैली रा काव्यग्रंथ है, दो उणी डिंगल-शैली में विविध कविया री रचनावां रा संग्रै है एक वचनिका शैली में लिखी वात है, एक लोककथावां रो संग्रै है, एक गद्य अर पद्य रो भेळो संग्रै है अर एक राजस्थान री पिंगळ कवितावां रो संग्रै है। डॉ. कविया द्वारा संपादित ग्रंथां री आ विलक्षण बात है कै आं रो विश्लेषण अर विरोळ जकी विद्वान संपादक प्रस्तावना में करी है, वा भावी पाठकां अर शोधार्थियां सारू घणी महताऊ है। संपादित ग्रंथां री संक्षिप्त जाणकारी इण भांत है-

1. लाखीणी
‘लाखीणी’ डॅा. शक्तिदान कविया द्वारा संपादित राजस्थानी भाषा री सात प्राचीन लोककथावां रो संग्रै है। संग्रै री भूमिका सेवानिवृत्त आई. ए. एस. हेतुदान उज्ज्वल री लिख्योड़ी है।

2. रंगभीनी
‘रंगभीनी’ डॅा. शक्तिदान कविया द्वारा संपादित डिंगल री सुबोध अर सरस कवितावां रो संकलन है। पोथी री भूमिका पूनमचंदजी विश्नोई री लिख्योड़ी है।

3. काव्य-कुसुम
‘काव्य-कुसुम’ डॅा. शक्तिदान कविया द्वारा संपादित काव्य-संग्रै है। इणमें राजस्थान रै कवियां री पिंगल रचनावां संकलित करीजी है। संकलन में देवीदास, नरहरिदास बारहट, वृन्द, स्वरूपदास, सूर्यमल्ल मीसण, शिवबख्श पालावत, फतहकर्ण उज्जल, स्वामी गणेशपुरी, कविराजा मुरारिदान, केशरीसिंह बारहट, अक्षयसिंह रतनू अर डॅा. शक्तिदान कविया समेत कुल 12 राजस्थानी कवियां री पिंगल रचनावां संकलित करीजी है।

4. सोढायण
‘सोढायण’ डिंगल भासा रा उद्‌भव विद्वान कवि चिमनजी कविया विरचित काव्य-ग्रंथ है, जिणरो संपादन डॅा. शक्तिदान कविया कियो है। ओ ग्रंथ परमार राजपूतां री सोढा खांप रै गुण-गौरव रो सखरो काव्य है।

5. दरजी मयाराम री वात
राजस्थानी कलात्मक गद्य री वचनिका शैली रो सांतरो उदाहरण है ‘ दरजी मयाराम री वात ‘। वचनिका राजस्थानी भाषा में रचियोडो तुकांत गद्य हुवै। डिंगल कवि बुधजी आसिया कृत (कविराजा बांकीदासजी रा छोटा भाई) आ कृति वैणसगाई अर अनुप्रास री घड़त-जड़त रो सुंदर गद्य है। कवि बुधजी आसिया जद बीमार हुया तो मयाराम नाम रै अेक साधारण दरजी वां री निस्वार्थ भाव सूं सेवा करी। कवि रो मन राजी हुयो अर कवि उणरे नाम सूं कलात्मक गद्य लिख उणने अमर कर दियो। आधुनिक राजस्थानी रा रचनाकारां में वचनिका शैली रो गद्य लिखण वाळो एक मात्र सिरे नाम डॉ. कविया रो है। राजस्थानी भाषा, साहित्य एवं संस्कृति अकादमी रै ‘ सूर्यमल्ल मीसण पुरस्कार’ सूं अलंकृत आपरी निबंधकृति ‘ संस्कृति री सोरम ‘ रा सगळा निबंध वचनिका शैली रा सांतरा उदाहरण है। इण दीठ सूं ‘ दरजी मयाराम री वात ‘ कृति रो संपादन करण सारू डॉ. शक्तिदान कविया आधिकारिक विद्वान है।

6. कविमत मंडण
अंग्रेजी सत्ता रो प्रखर विरोध करतां ‘आयो अंगरेज मुलक रै ऊपर ‘ जैड़ै स्वातंत्र्य चेतना रै अमर गीत रा रचयिता, राजस्थानी रा प्रख्यात महाकवि बांकीदासजी आसिया कृत ‘ कवि मत मंडण ‘ ग्रंथ काव्यशास्त्र विषयक अज्ञात ग्रंथ हो, जिणनैं पाठका रै सांम्ही लावण रो सराहनीय काम डॅा. शक्तिदान कविया कियो है।

6. फूल सारू पांखड़ी (विविधा)
शिक्षा-विभाग राजस्थान आयै साल राजस्थानी भाषा री साहित्यिक रचनावां रो एक संकलन प्रकाशित करै, जिणमें शिक्षका री टाळवीं अर सिरे रचनावां छपै। संकलन रै संपादन सारू किणी विद्वान अर साहित्य री विविध विधावां रै मर्मज्ञ साहित्यकार नैं चुणीजै। बरस 1984 में इण संकलन रो संपादन, संपादन-कला रा सिद्धहस्त रचनाकार डॅा. शक्तिदान कविया नैं सूंपीज्यो। डॉ. कविया द्वारा संपादित ओ संकलन ‘ फूल सारू पांखडी ‘ नाम सूं प्रकाशित हुयो।

7. राजिया रा सोरठा
राजस्थानी लोकजीवण री संपूर्ण मान्यतावा रै सम्यक निदर्शन रो काम अठै रै नीति-साहित्य में हुयो है। राजस्थानी रो घणकरो नीति काव्य संबोधन शैली में है। राजस्थानी रै नीति-साहित्य री हरावळ रचना राजिया रा सोरठा है, जकी ‘ राजिया रा दूहा ‘ नाम सूं ख्यातनाम है। आथूणै राजस्थान रै लोकजीवण में आं सोरठां री घणी दखल है। आम बोलचाल में कैवतां अर लोकोक्तियां रै रूप में लोग आं सोरठां री ओळियां काम में लेवै। राजिया रा दूहां नैं पैली ई केई विद्वानां संपादित किया पण कवि री संपूर्ण जीवनी सहित प्रामाणिक रचनापाठ अर प्रक्षिप्त अंशां नैं तरकां री कसौटी कसतां न्यारा कर भावार्थ समेत सांगोपांग संपादन डॅा. शक्तिदान कविया कियो है।

8. ऊमरदान-ग्रंथावली
राजस्थानी जनवादी काव्य परंपरा रा सशक्त हस्ताक्षर अर डिंगल रा धुरंधर विद्वान कवि ऊमरदान लाळस रो सिरजण राज अर समाज रै हर क्षेत्र सारू उपयोगी है। वां री रचनावां नैं ग्रंथावली रूप में संकलित अर संपादित करण रो श्रमसाध्य काम डॅा. शक्तिदान कविया कियो है। कवि ऊमरदान लाळस री काव्य-कृतियां रो विगतवार विवेचन करता संपादक डी. कविया 41 कृतियां री ओपती जाणकारी उदाहरण सेती दी है।

9. भगती री भागीरथी
‘ भगती री भागीरथी’ डिंगळ रा चावा-ठावा कवि हनुवंतसिंह देवड़ा कृत 101 दूहां रो भगती काव्यग्रंथ है, जिणरो संपादन डॅा. शक्तिदान कविया कियो है। ग्रंथ में बाळासतीजी रूपकंवर रै दिव्य अर भव्य गुणां रो अंतस रै आखरां सुरंगो चित्राम खींचियो है।

10. राजस्थानी दूहा संग्रह
‘ राजस्थानी दूहा संग्रह ‘ डॅा. शक्तिदान कविया द्वारा संपादित अनुपम काव्यग्रंथ है। राजस्थानी साहित्य में दूहा लिखणै री जूनी परंपरा अर दूहै रै महत्व नैं दरसावतां संपादक इण वृहद ग्रंथ रो श्रमसाध्य संपादन कियो है। इण दूहा संग्रै री आ खास बात है कै इणमें राजस्थानी साहित्य रै हर काल री बांनगी भेळी है।

11. मान-प्रकास
‘ मांन-प्रकास ‘ डिंगल कवि महादान मेहडू कृत काव्यग्रंथ है जिणमें जोधपुर महाराजा मानसिंह रे जस रो चित्रण है। डिंगल शैली रै इण ग्रंथ में विविध विषयां, विधावां, घटनावां अर अलंकृत-छटावां रो मोहक मिश्रण है। इण ग्रंथ रो सटीक संपादन कवि डॅा. शक्तिदान कविया कियो है।

अणछपी पोथियां

डॉ. शक्तिदान कविया डिंगळ रा तो हरावळ कवि है ई साथै ई हिंदी, ब्रज, पिंगळ अर आधुनिक राजस्थानी में ई आपरो सिरजण अंजसजोग है। संख्या अर सरसता, दोनूं दीठ सूं आपरो सिरजण सरावणजोग अर सुणण-सुणावणजोग है। आपरी रचनावां री आ खास बात है कै जिण अनुशासन री रचना है, वा उण अनुशासन सारू आदर्श कही जा सकै। आप सतत स्वाध्याय अर साहित्य-शोध में रत रैवण रै कारण आपरै निजू पोथीखाने में गाडां भरै जितरी छपी-अणछपी घणी महताऊ सामग्री पड़ी है। खुदरी मौलिक अर संपादित अणछपी रचनावां रै अलावा अनेक डिंगळ अर पिंगळ रा कवेसरां री महताऊ कृतियां अर पांडुलिपियां आपरै निजू संग्रहालय में उपलब्ध है, जिण पर अलग सूं अेक परिचय पुस्तिका प्रकाशित करण री दरकार निगै आवै।

विनिबंध री आपरी सीमा रै कारण अठै डॉ. कवियाजी री वां ईज मौलिक कृतियां री संक्षिप्त जाणकारी दिरीज रैयी है जकी छपण सारू त्यार है। आं कृतियां री बानगी ई पाठकां अर प्रकाशकां री जाणकारी सारू संक्षेप में दी है। बियां तो डॉ. कविया परंपरागत विषयां, देवी-देवतावां री स्तुतियां अर संस्कृति-प्रकृति पर तो लगातार लिखता रैया है, इणरै साथै-साथै सामयिक रूप सूं घटण वाळी स्थानीय सूं अंतरराष्ट्रीय स्तर तांई री घटनावां, आछै मिनखां री रीझ अर माड़े मिनखां पर खीज आद पर आपरी कलम चालती ई रैयी है अर आज ई उणी प्रखरता रै साथै आपरै आखरां री आभा बिखेर रैयी है। इण कारण आपरी फुटकर रचनावां ई असंख्य है। अठै प्रकाशन सारू त्यार पोथी रूप रचनावां रो ई उल्लेख कियो जा रैयो है।

1. संबोध-सतसई
इणमें कवि रै विगत पचास बरसां रै जीवण अनुभवां रौ संबोधन काव्य री राजस्थानी परम्परा मुजब सात सौ सोरठा में बखाण है, ज्यांमें मिनखाजूण में आवण वाळी परिस्थितियां, अबखायां, उतार-चढाव, नीति-राजनीति, पाखंड, प्रबोध री भांत-भांत री बानगी है। वैणसगाई, विषय-विविधता, अलंकृति, उद्बोधन री सारभरी उक्तियां रो प्रथम संबोध-काव्य है, जिणमें सात सौ सूं ऊपर संख्या वाळै ग्रंथ में संबोधित पात्र इन्द्रवा (डॉ. कवियाजी रै साळे इन्दरदान देथा, खारोड़ा-उमरकोट) रै सारू उण ही अक्षर री आद सूं अंत तांई वैणसगाई रो निर्वाह हुयो है। इण काव्य में प्राचीन अर अर्वाचीन जुग री सैकड़ां सारभरी उक्तियां अर पंक्तियां तो लोकोक्तियां ज्यूं लखावै। जथा :

  1. सुख अनेक संसार, सबां सिरै परिवार सुख।
  2. ज्यों-ज्यों धन रौ जोर, कुटुंब नेह री डोर कट।
  3. टाळौ नित टकराव, पाळी अंतस प्रीत नैं।
  4. सब में रब इकसार, मजहब ठाया मानखै।
  5. अंतस रहै उजास, जीवण दीवौ जगमगै।

2. मालणदे-महिमा
थळवट री लोकपूज्य देवी मालणदे गांव भांडू रै, रोहाड़िया आला बारठ (ज्यांरै घरे विखै में राव चूंडै री माता मांगलियाणी असल ओळखाण छिपाय छह बरस रै इकलौते पुत्र नैं साथै लेय सात बरस तांई कालाऊ गांव में रही) री पोती, दूलैजी री पुत्री-महासगत, सरीर तो कम राखियो, योगक्रिया सूं अगन-प्रगटाय साजोत में मिलग्या। वां रो टीकमजी कविया बिराई साथै पाणिग्रहण हुयो। फेरां बीच में ई पाबूजी री दांई औ टीकमजी गायां री वाहर चढ्या अर गायां छुड़ायां पछै आपरै साथी योद्धा तोळे रो कंवर रणखेत रैवण रै कारण टीकमजी कटारी खाय आपरी इहलीला समाप्त करली अर वंशजां में भोमियां रूप पूजीजण लाग्या। देवी मालणदे दिव्य चमत्कारां सूं प्रसिद्धि पाय आपरै ससुराल रथ में दूध चूंगता बाछड़ा जोताय एक घड़ी में आय, जळ री गंगा प्रगटाय-नीर री झारी सूं अगन प्रगट कर अलोप हुयग्या। उण देवी री स्तुतियां, प्रवाड़ा, छंद, चिरजावां, नीसांणियां (पुराणी संकलित) रै साथै विविध छंदां में डॉ. कविया री रचियोड़ी देवी-स्तुति अर श्रद्धाभाव रा साखीधर, अलंकृत गीत, दूहा, छंद इत्याद रो संकलन है। परिशिष्ट में मालणदेजी अर उण क्षेत्र रा लोकपूज्य देवी-देवतावां रा आज तांई अज्ञात या अपूर्ण छंदां नैं घणी प्रतियां सूं मिलाय पोथी त्यार करी है, जकी नित्यपाठ जोगी पुस्तक सिद्ध हुवैली। एक छोटो-सो ‘जांगड़ो गीत’ (चिरजा में गाईज सकै) इण रचना री स्वल्प बांनगी है :

।।श्री मालणदेजी रौ गीत।।
थांन बिराई में थपै, प्रतपै जग प्रख्यात।
दूलाई मालण दिपै, समपै मां सुख सात।।

।।गीत जांगड़ौ।।
धिन-धिन मालणदे थळवट धणियांणी, भांडू प्रगट भवानी।
आंबा पलट नींब उपजाया, क्रीत इमट चहुं कानी।।
दूलाई चारण कुळदेवी, सेवी जग सुरराई।
लेख प्रमाण रचाई लीला, पह टीकम परणाई।।
वर तीजै फेरै चढ वाहर, वित हेरै गउ वाळी।
सूंडौ रांण पयांण सुणै रै, पेरै गळ प्रतमाळी।।
भोळे वचन कया भोजाई, रीस चढाई राया।
जाम एक बछड़ा जोताई, आप बिराई आया।।
नीर अथाग कियौ सुभ निजरां, थांन प्राग सम थायौ।
बीसहथी वडभाग आग बिन, लख जळदाग लिरायौ।।
चाव फिरै तोरण री चिड़ियां, भाव इष्ट सह भाळै।
दूल सधू दरियाव दया रौ, परचां सभाव पाळै।।
आला-हरी जगत इखियाता, दै नवनिध अनदाता।
मैर ‘सगत’ मालण माता री, सदा रहै सुख साता।।

3. रूंख-रसायण
पेड़-प्रकृति अर पर्यावरण रै महत्त्व नैं उजागर करण वाळी आ काव्य-रचना पर्यावरण संरक्षण री दीठ सूं अेक हरावळ पोथी है। पोथी रै तीन सौ पांच सोरठां में घणकरा चौकड़िया अनुप्रासां रा तथा बाकी सब डिंगळ-शैली में वैणसगाई वाळा सोरठा है। पोथी री जाणकारी देवतां डॉ. कविया बतायो कै वेदां में पेड़ां री महिमा है, जळ-पूजन, नदियां रै प्रति आस्था रा अनेक प्राचीन छोटा-मोटा नमूना मिलै है। आज रो समाज दयाहीण, कुलालची, रूंखां रो खैगाळ करतो, तळाबां रा आगोर दबावतो, नदियां में नरक री गंदगी बहावतो, भाखरां नैं भांगतो, जमीं में जुरड़ा करतो, ओरण नैं हड़पतो, महापापी माफियां री काळी करतूतां सूं पेड़-प्रकृति सारू पिसाच बणतो जावै है। सत्ता में बैठा भत्ता पावणिया, वन-विभाग रा रखवाळणियां सबां री नीयत बिगड़गी, दोय नंबर रा दलालां तो समझ लियो कै ‘हाथ पोलो तो, जगत गोलो’। जिण रूंखां रै सांम्ही हाथ करनै सौगन खावता, रूंखां रा लोकगीत, छंद बणिया, ‘खेजड़-पच्चीसी’, ‘कैर सतसई’ सरीखा डिंगळ ग्रंथ बणिया, वां रै प्रति बकर-कसाई, लकड़-कसाई अर कलम-कसाई तीनूं पाप रा भागी एक हुयग्या। वै आगै बतावै कै म्हारै बाळपणे में गामेडूं भांयकै में रूंखां री छींया तलै हथाई जमती, बातां रा गड़ंदा अर भजनां रा भणकारा गूंजता, वो दरसाव तो सपनै वाळी माया हुयगी।

लोकजीवण रा जाणीगर जाणै कै आज ई लाखां मिनख अनेक रूंखां नैं पूजै। लोकविश्वास है कै औ रूंखड़ा सिद्ध, तपेसरां, पीर-पैगम्बरां, संतां-साधकां री ठावी ठौड़ अर अमर आसण रैया। प्रकृति-प्रेमी लोग गीतां में गाईजै। प्रकृति तो परमेसर रो रूप है। इयांकला सगळा दरसाव इण ग्रंथ में लिया है, जका इतिहास, साहित्य, संगीत, कला, वनस्पति सब रै महत्त्व रा पुख्ता प्रमाण है। अनेक दृष्टियां सूं आ रचना ‘रूंख-रसायण’ नाम नैं सार्थक करण वाळी है। छपण री उडीक में त्यार पड़ी है। सोरठां री मामूली बानगी :

ऊगै रूंख अनेक, चौमासै घर चौक में।
समझौ सांपरतेक, प्रगट्यौ अंकुर पुन्न रौ।।
आदू प्रथा अजैह, जित बनवासी जातियां।
वधू विवाह वजैह, पूजै पांणी पेड़ नै।।

4. गीत-गुणमाळ
डॉ. कविया आपरी इण कृति में आधुनिक जुग रा मनीषी, कवि अर सत्पुरुषां रै गुणां री डिंगळ गीतां में महिमा दरसाई है। गुण-पूजा राजस्थानी संस्कृति रो प्रमुख लक्षण है। इणमें राजस्थानी रा हेताळू डॉ. एल. पी. टैस्सीटोरी, आचार्य बदरीप्रसादजी साकरिया, डॉ. मनोहरजी शर्मा, ठा. अक्षयसिंहजी रतनू, परमवीर शैतानसिंहजी, पद्मश्री लक्ष्मीकुमारीजी चूंडावत, श्री कैलाशदानजी उज्ज्वल, ठा. नाहरसिंहजी जसोल, गीत सोढां रो इत्याद रै परिचै, प्रसिद्धि रो कारण, अनुप्रासां री आब सूं आलोकित है। उदाहरण रूप में आचार्य बदरीप्रसादजी साकरिया रै प्रति गीत वेलियो री की ओळियां (कुल 14 दुहाळा) :

धीरजवंत बडौ सतधारी, उपकारी सेवा अणमाप।
साहित ख्यात कोश शुभकारी, पह बलिहारी पुण्य प्रताप।।
बीकनगर जोधांण बखांणे, ग्रह अंजस आंणे गुजरात।
डमरू गूंज प्रमाणे डींगळ, कोश जगत जांणै क्रामात।।
सतोगुणी नम्रता सादगी, भल समता परहित रौ भाव।
बहुज्ञता निरमळ बांणी में, प्रथी अमरता गुणां पसाव।।

5. अंजस रा आसेर
डॉ. कविया विरचित इण पोथी में मानखै रै अंजस रा आसेर है। डॉ. कविया बतावै कै राजस्थान अर आथूणी दिस धाट इत्याद भांयकै रै साधारण मिनखां रा असाधारण अर अमोलक गुण, सपूतपणै रा कीरतवंत कारज, ईमानदारी, दातारगी, दयालुता, सतव्रत री धारणा, आन-बान, पवित्र आचरण सरीखा अनेक जातियां रा नर-नारी ज्यांरी महिमा जनकंठां में है अथवा बूढा-बडेरां नैं ऊजळे आचरण री साख रा एक-दोय दूहा-सोरठा याद है, वांरी स्मृति में पूजाभाव सूं प्रणीत एक-एक दूहो अर नीचै पूरो प्रसंग राजस्थानी भासा में सप्रमाण एक ‘शतक’ रै लगैटगै बानगी है। उण में इतिहास, लोक परम्परा अर ग्राम्य संस्कृति रो गौरव मंडित है। पोथी मांय बिना परिचै प्रसंगरै अंजस जोग सुमाणसांरी साख री बांनगी:

केसर सुत मूळौ कमध, जलम धणारी जांण।
सुदत कमै गघ दोयसौ, किया भेट कवियांण।।
भरी तोप सुण ओळभौ, भखरी केहर भांण।
गोविंददेव सवार गज, पौळ बंध्यौ जुध पाण।।
साहजादौ राख्यौ सरण, वीर दुरग जिण वार।
साही लाज म्रजाद सूं, पाळ करी परिवार।।
जबान फळती जिकण री, थळवट भांडू थांन।
खूबांणी जस खाटियौ, दत आलै सिवदांन।।
ताकव हेत कतार तज, थित पिलांण थळ थेट।
जस ले भाटी जोगडै, कियो भेट पाकेट।।

6. सोनगिर-साको
जाळोर में सोनगरा कान्हड़दे अर उणरै पाटवी पुत्र जूझार वीरमदेव सोनगरै रै समै शाही घेरो मंडियो, सेवट सूरमां रो साको अर वीरांगनावां रो जौहर हुयो। उणमें जनता रो पूरो सैयोग रैयो। वीरमदे री आन अर सायजादी री जबान नैं आज ई रैवाण में रंग दिरीजै है। उण सिद्धान्त अर संघर्ष रौ ऐतिहासिक तिथि क्रम सूं डिंगळ रा अनेक छंदां में लघु आकार रो चरितकाव्य है-‘सोनगिर-साकौ’ जिण रा रचयिता डिंगळ रा प्रख्यात कवि डॉ. शक्तिदान कविया है। बानगी रूप एक दूहो अर ऐतिहासिक महत्त्व रो एक छप्पय :

।।दूहो।।
साकों जौहर सज्जियौ, आभ पताकों अेव।
जूंझारों लाखों जबर, दाखों वीरमदेव।।

।।छप्पय।।
जूनौ गढ जाळोर, वसू कीरत दत वंकौ।
माघ पंडित भीनमाळ, देव बांणी जस डंकौ।
श्री उद्योतनसूरि, बांण अठार बरीसै।
कुवलयमाळा कीध, संमत आठै पैंतीसै।
सोनगिर अचळ प्रथमी सिरै, थानक वरदाई थपै।
अनेकां सिद्ध साधक उठै, तीरथ ज्यूं सिखरां तपै।।

7. खोटै नेतां रौ खुलासौ
ओ डॉ. शक्तिदान कवियाकृत व्यंग-काव्य है। आजादी रै बाद अपढ अर भोळी-ढाळी जनता नैं कूड़ा थथोबा देय तिकड़मी नेतावां धूरत राजनीति रै पाण जकी धमाचौकड़ी जमाई, उण पाखंड री खरी पोल खोलतां थकां डिंगळ शैली री इण व्यंग-रचना में दूहा, छप्पय, झमाळ, सबदी, कवित्त इत्याद री बानगी है। उदाहरण रूपी एक छप्पय प्रस्तुत है :

खोटै नेता खनै, आस कर जनता आवै।
झांसा दे-दे झूठ, भरोसै राख भमावै।
न तौ करै इनकार, कार पण कदे न कीनौ।
दुनां तरफ दोस्ती, लखे निज मतळब लीनौ।
पारटी और बेपारटी, जकौ फरक नहिं जाणसी।
मुफत रा जठी पइसा मिळै, तरफ उठी री तांणसी।।

8. कुमाणस-कुजस
ओ ई डॉ. कवियाकृत व्यंग-काव्य है। इणमें पदां माथै बैठा भ्रष्ट अधिकारी, कर्मचारी, नेता, वकील, संस्थावां रा संचालक इत्याद विविध वरगां रा बेईमान, अवसरवादी, कूड़ा, कपटी, चुगल, चोरटा, बुरचीतां री करतूतां रा भांत-भंतीला छंदां में चित्राम है। असल में औ व्यंग-विसर काव्य है। सरस अर सरल भाषा में रचियोड़ा व्यंग रा अै दूहा, सोरठा पाठक पर सीधो असर करै। जथा:

मगसी पड़ रजवट मिटै, घटै तोल घरवट्ट।
मोल बिकै मोटा मिनख, पौरस कर चौपट्ट।।
भाषा निज खोटी भणै, बणै फेर विद्वान।
इण सूंघटग्यौ आजकल, मरुभाषा रौ मांन।।
कवियण सूं राखै कपट, झपट लोभ री झल्ल।
अळगा राखै नर असल, कनै रखै कमसल्ल।।

9. रोळ-छतीसी
डॉ. शक्तिदान कवियाकृत इण व्यंग-विसर काव्य में रुळपट, पैठबायरै, अभख भखणियै, वचनहीण, धूरत मिनखां रै रोळरासै रा छत्तीस दूहा है। भुगतभोगी रै बळतै काळजै री दाझती दुरासीस रो दरसाव है। रचनाकार रो मानणो है कै इणमें ‘सत्यम् ब्रूयात प्रियम् ब्रूयात’ मांय सूं फगत सत्यम् ब्रूयात रो ईज पालन कियो है, न ब्रूयात सत्यम् अप्रियम् री बात इणमें निभायोड़ी कोनी। मतलब ओ कै इण काव्य में सीधो-सट्ट साच है अर वो घणो आकरो अर कड़वो हुवै। इण वास्तै उदाहरण उचित नी लखावै।

10. इटली में दिन आठ
सन् 1987 में इटली में आयोजित अंतरराष्ट्रीय सेमिनार में डिंगळ रै विद्वान री हैसियत सूं डॉ. कविया आपरो पत्रवाचन अर डिंगळ काव्यपाठ करण सारू इटली री जात्रा करी। गैरी अर पैनी अवलोकन दीठ रा धणी डॉ. कविया आपरी इण आठ दिनां री इटली जात्रा रो पूरो काव्यमय वरणाव इण पोथी में कियो है। जात्रा रै प्रेरक, रोचक अर प्रामाणिक वरणावरी तीन डायरियां भरियोड़ी है। डॉ. कविया बतावै कै उण बगत हवाईजहाज में बैठतां ई काव्यरचना री सरुआत होयगी। वै चित्राम छोटी पुस्तक रूप में संजोयोड़ा है। इटली रै उदीने शहर में आयोजित सेमिनार में भाग लेवण पूग्या कवि नैं ‘दाणो-पांणी परसराम, बांह पकड़ ले जाय’ री बात याद आवै अर कवि री कलम चाल पड़े। बानगी सरूप ओ दूहो :

सुणियौ मुरधर रौ सुजस, पुणियौ डिंगळ पाठ।
बडै थाट सूं बीतिया, (म्हारा) इटली में दिन आठ।।

11. रूप मुनी रूपक
डॉ. कवियाकृत इण काव्य में प्रसिद्ध अर वयोवृद्ध कवि-मनीषी श्री रूपमुनिजी महाराज (उर्फ रजत मुनि) रै घणै सम्पर्क, साधना, साहित्य-सृजन, सुधारवादी स्वभाव अर साहित्य-सभा री ऊजळी आभा रो वरणाव है। इणमें मुनिवृन्द (पूज्य सुकनमुनिजी उपप्रवर्तक अर शिष्यमंडळां नैं ध्यान में राख) रै सुजस रा दूहा, सोरठा, छप्पय, रेणकी छंद, मनहर कवित्त, सवैया इत्याद में वंदन-अभिनंदन है। बानगी सरूप छंद रेंणकी रो ओक दुहाळो :

सतवादी संत गुणां रौ सागर, प्रगट उजागर भणां प्रभा।
दाखै उपदेस दुनी सुखदायक, सुभ वायक हित जुड़े सभा।
चौमासौ जेथ हुवै धर चंहुदिस, हेत वधै दुरविसन हटे।
अरिहन्त अनूप मंत्र इळ ऊपर, रूप मुनी महाराज रटै।।

12. पिंगल-प्रमोद
डॉ. कवियाकृत इण काव्यकृति में पिंगल शैली रा दूहा, कवित्त, सवैया, त्रिभंगी, रेंणकी छंद इत्यादि रै साथै समस्यापूर्ति रा ई अनेक मनहर कवित्त अर सवैया है। समस्यापूर्ति रो एक कवित्त:

‘कैधों हँसनि तिहारी है’
चम्पक की कली, चारु गंगा की तरंगा चली, कैधों खिली बाल मुस्कान मनोहारी है।
कैधों रैन बीते भई उदित अरुण आभा, मंजु कंज मुदित सुरम्य सुखकारी है।
हीरकनी हिम जैसी ऊजरी सी अटा कैधों, स्याम घनघटा बीच छटा छहरारी है।
सुधा बरसनि, वीणापाणि के वसनि, विधु, दाडिम-दसनि कैधों हँसनि तिहारी है।।

कुल मिलाय’र ओ कैय सकां कै आकार अर प्रकार दोनूं दीठ सूं राजस्थानी संस्कृति अर साहित्य रै दीवै री जोत रो उजास अखी बणावण रो अंजसजोग काम कर डॉ. शक्तिदान कविया साहित्यकारां रा सिरमौर बण्या है। भांत-भांत रै भाव-दरसाव अर रूप-सभाव में काळजै री ऊंडी कोरां लिख्योड़ी कवितावां, इतिहास, संस्कृति अर परंपरावां री सांतरी विरोळा कर नवागत री नूरवाणी रो आघमान करता निबंध, आपरी थापनावां अर धारणावां सारू ख्यातनाम कवेसरां रै जूनै छंदां-गीतां री साख डॉ. शक्तिदान कविया री साहित्य जगत में धाक जमावै। कवि री लेखनी नैं घणा-घणा रंग।

समीक्षकां री दीठ में डॉ. कविया रो कर्तृत्व

साहित्य सिरजण अर उणरी समीक्षा दोनूं पख साथै-साथै चालै। सिरजणकार री सिरजणा जद लोक नैं समर्पित हुवै तो लोक निरपेक्ष भाव सूं उणरी कूंत करै। इण कूंत रा भी मारग मोकळा है पण सीधो अर साचो मारग ओ है कै जकी कविता का गद्य पाठक ने बांधण री खिमता राखै, सहृदयी पाठक उणरी सिरधर सरावणा करै अर जे ओपती नीं लागै तो पछै सामान्य पाठक तो उणनैं पढण री टाळ करतो आपरी नींद सोवै, पण साहित्य रै सामाजिक सरोकारां नैं समझणियां पाठक उणरै सुधार सारू सुझाव रा सोवणा आखर मांडतां सिरजणकार नैं सावचेत करै। सिरजणकार उण समीक्षक रै सुझावां नैं आपरी समझ अर सच्चाई रै मुजब अंगेजै का वां रो प्रतिकार करै आ तो उणरी इच्छा अर परिस्थितियां पर है पण वो कदैई समीक्षक री बात रो बुरो नीं मानै। कवियां लिख्यो है कै साहित्य मर्मज्ञ रै मौन रैवण अर अनभिज्ञ री सरावणा करण सूं बत्तो दुख सिरजणकार नैं और कोई बात रो कोनी हुवै:

सरस कविन के मर्म को, बेधत द्वै, सो कौन?
असमझवार सराहिबो, समझवार की मौन।।

आ साहित्य रै सिरजण अर समीक्षण री सांतरी अर सिरे परंपरा है। डिंगळ कवियां रै अठै तो आ सांवठी परंपरा रैयी है। वाचिक परंपरा वाळी रचनावां नैं तो सुणतां पाण हाथोहाथ उणी मंच पर समीक्षकां री काव्यमय टिप्पणियां हुया करती। काव्यप्रतिभा रा धणी आं कवियां री आ ई खासियत हुवती कै जिण छंद में कवि मूळ काव्य रो पाठ करतो उणी छंद में समीक्षक आपरी टिप्पणी करतो। इयांकला अनेक उदाहरण मिलै।

भलां ई काव्यग्रंथ हुवो का पछै फुटकर छंद या गीत, साहित्यकारां री निजरां उणरो कुंतो करै अर समै-समै पर आपरी सम्मतियां प्रगट करै। डॉ. शक्तिदान कविया रो जितरो वृहद सिरजण संसार है, वां री प्रसिद्धि अर साहित्यिक साख अर धाक ई उतरी ई वधती है। आज रै समै रो हर दाठीक कवि-कोविद डॉ. कविया री विलक्षण काव्यप्रतिभा, पारखी अर पैनी शोधदीठ अथक परिश्रमशीलता, सुदृढ़-सत्यनिष्ठा, वैचारिक प्रबलता, तार्किक कुशलता, गुणग्राहक व्यक्तित्व अर कर्तृत्च सूं प्रभावित हुयो। वां री निबंध कृति ‘संस्कृति री सोरम’ साहित्य जगत री सरावणा रो केंद्र रैयी। इण कृति पर राजस्थानी भाषा, साहित्य एवं संस्कृति अकादमी, बीकानेर रो सूर्यमल्ल मीसण शिखर पुरस्कार (1986) डॉ. कविया नैं मिल्यो। डिंगळ काव्य री अनुपम याचिक परंपरा री विरासत नैं अंवेर’र राखणिया कवि डॉ. कविया डिंगळ काव्यपाठ सारू संपूर्ण भारत ई नीं विदेशां में ई चावा अर ठावा रैया है। इटली में आपरै डिंगळ काव्यपाठ री गूंज आज ई सुणीजै। आपरै संपादन री पण साहित्य जगत में निकेवळी अर नामी ठौड़ है। सादी वेशभूषा अर सरल-सहज रहणी-सहणी वाळै इण सिरजणकार रा सिरज्योड़ा मोकळा ग्रंथ, विविध विषयां रा शोधपत्र, आकाशवाणी वार्तावां, प्रस्तावनावां, समीक्षावां, सम्मतियां, साहित्यिक पत्राचारां अर दूरदर्शन वार्तावां उणरै व्यक्तित्व अर कर्तृत्व री विराटता रो भान करावै। डॉ. कविया री काव्य-साधना रो कुंतो करती इण जग रै सिरै समीक्षकां अर साहित्यकारां री सांतरी सम्मतियां री आप-आपरी न्यारी खांत है, जकी इण भांत है:

।।श्री हरि।।

“कविया श्री शक्तिदानजी सूं म्हारी जै श्री जी री वाचोला। अठै उठै सब आनंद है। किताब ‘करनी यश प्रकाश’ री रचना कर अठै देखण वास्ते भेजी सो पौछी, मैं इणने खूब अच्छी तरह देखी तो वाके ही सरू री कविता बहुत अच्छी कीवी है-उम्मेद है भगवती री कृपा सूं आयन्दा भी उच्ची श्रेणी री कविता करोला। कविता पढ़ तबीयत खुश हुई। इणरो मैं धन्यवाद देऊं हूं। कागज देवोला, काम काज लिखोला।”

~~(आसोप ठा. राजा फतैसिंह रै 9 मार्च, 1953 नैं खिनायोड़े पत्र री नकल)

“सफल अनुवाद रौ कांम मूल रचना सूं ई घणौ अबखौ व्है। ग्रे री अेलीजी रै इण राजस्थानी अनुवाद सूं ऐड़ौ लागै कै अनुवादक ग्रे री आत्मा ईज है। देहाती जीवण सूं जुड़ियोड़ै जांणकार कवि बिना अनुवाद री आ छटा संभव नीं होती। राजस्थांनी रौ जकौ ठावौ अर ठोस रूप इण पोथी में दरसियौ है, वो आज रै राजस्थानी साहित्य में आपरी न्यारी ओलखांण राखै।”

~~पद्मश्री सीताराम लाळस (जोधपुर)

प्रिय मान्यवर,
सस्नेह हरिस्मरण, आत्मीय अभिनन्दन एवं हार्दिक बधाई।

कविता करके कविया न लसे,
कविता लसी पा कविया की कला

लिखते रहें, मायड़ी राजस्थानी को समृद्ध करते रहें, यश अर्जन करते रहें।
दीपावली की मंगल कामनाएं।

थांको ही-

~~डॉ. ज्ञानप्रकाश पिलानिया (एम. पी. )
(25 अक्टूबर, 2005)

श्री शक्तिदानजी सा, ‘संस्कृति री सोरम’ मिली। कांई आप ठाठदार, ठेठ, ठावकी भाषा मांडी है के मन मोदीजग्यो। मन में तो आई के यूं री यूं नमूना रै तौर पै आपरी थोड़ी कीं ओळ्यां लिख उणां रो बखाण करूं, पण म्हारै आंख में निबळाई आयगी, सो जीव करड़ो कर कलम हेठे मेल री हूं।

~~पद्मश्री डॉ. लक्ष्मीकुमारी चूंडावत
(10 अक्टूबर, 1985)

“श्रीयुत शक्तिदान कविया, वीरों की भूमि थार के मरुस्थल के हृदयस्थल में जन्में, शिक्षित हुए और अपने परिवार के काव्यमय वातावरण में पले और प्रौढ़ हुए। वीरों, संतों, ज्ञानियों और रसिकों की भाषा राजस्थानी में उनके काव्य के संस्कार और उनकी अभिव्यक्ति पुष्पित हुई। ”

~~साहित्य-मनीषी डॉ. ताराप्रकाश जोशी (23. 10. 2005)

“जयपुर साहित्य उत्सव (असली नाम जयपुर लिटरेरी फेस्टिवल) में वाचिक परम्परा के कई रूप भी प्रस्तुत किये जा रहे हैं, जिनमें से एक में डिंगल और पिंगल के अद्‌भुत ज्ञाता, उच्चारक और कवि शक्तिदान कविया को सुनने का अनूठा अवसर मिला। उनके पाठ में, जो उनकी वयोवृद्धता के बावजूद पूरी तरह मुखाग्र था, लय, छंद, अनुप्रास, ध्वनियों का जो सुगठित और विस्मयकारी संसार प्रगट हुआ वह हममें से कई के लिये सर्वथा अनजाना है। यह भी स्पष्ट हुआ कि लोकसंपदा से दूर होकर हमारी भाषाओं ने कितनी शक्ति, कितने आवेग और शिल्प के कितने रूपाकार गवां दिये हैं। ”

~~अशोक वाजपेयी (जनसत्ता, 25 जनवरी, 2009)

“दूजै रै भावां री ओप नै आपरी बणाय आपरी भासा में ढाळणौ घणौ अनुभव नै मैनत रौ काम है। कवि शक्तिदानजी इण अबखै काम नै जिण सैजता नै गरिमा साथै कियौ, वो वांरी ठावी काव्य-सगती रौ सैंपूर सबूत देवै। विलायत री माटी रौ मरम वां आपरै आखरां पांण राजस्थांन री थळवट में उगाय दियौ। ”

~~डॉ. नारायणसिंह भाटी (चौपासनी)

डॉ. शक्तिदान कविया में आज ई अेक गांवेड़ी आदमी रैवै अर उणसूं जका अपणास अर आत्मीयता कर लेवै वै कदैई अळघा नीं व्हैणा चावै। आधुनिक विद्वानां में डिंगळ रा वै सर्वश्रेष्ठ ज्ञानवान, बुद्धिजीवी साहित्यकार है। वाचिक परम्परा में जिण लोगां वांनै सुणिया है, वै आजीवण वांनै याद राखै। ”

~~डॉ. आईदानसिंह भाटी (जैसलमेर)

“राजस्थानी रा चावा अर ठावा कवि डॉ. शक्तिदान कविया डिंगळ छंदां री बणावट अर काव्य पाठ में विशेष पारंगत। आपरै काव्य रा सबद, जांणै हेम में हीरा जड़िया। राजस्थानी संसार नै आपरै इण लाडेसर कवि माथे घणौ अंजस, घणौ गुमेज। आप केई पोथियां लिखी अर सम्पादित करी। अंगरेजी कवि टॉमस ग्रे री ‘अेलीजी’ रौ राजस्थानी में पद्यानुवाद ई करियौ। आप ठेठ थळी रै बिराई गांव रा वासी अर जोधपुर विश्वविद्यालय रै राजस्थानी विभाग में प्राध्यापक। ”

~~माणक (जनवरी, 1982)

थारी भगती रै सहित, जगती मां ! वरदान।
हर घर भारत में हमें, दे दो सगतीदान।।

~~ठा. ईश्वरदान आशिया (मेंगटिया-मेवाड़)

चारण वाणी चमत्कृत, डिंगल की डाणाक।
बिहद ‘शकत’ बैठाय दी, धर इटली पर धाक।।
शकत रखौ कवि शकत रा, ठणिया बणिया ठाट।
सरसावौ पुनि पुनि सुखद, इटली-सा दिन आठ।।

~~ठा. अक्षयसिंह रतनू (जयपुर)

(डॉ. कविया री पढणी रो चित्राम)
।।छंद मोतीदांम।।
मिठी धुन सांवण मेघ मंडांण। ऊंचै नभ सैबरजेट उडांण।
झरी किन सारद बीण झंकार। धरा उतरी कि मंदाकनि धार।।
लखे पग लंगर दंतिय दौड़। पड़ै मगरा धर हैवर पौड़।
वहै घण वेग कि झुंड वराह। पटा सिव हूंत कि गंग प्रवाह।।
थपै मरुदेस बिराइय थांन। खरौ सुत गोविंद रौ गुण खांन।
वडौ कवि डिंगळ रौ विद्वांन। दिपै दिव्य चारण शक्तियदांन।।
।।दूहौ।।
झड़फड़िया डंठळ झुकै, दड़प किता दलदल्ल।
कविया भड़ तूं काढसी, कीचड़ हूंत कमल्ल।।

~~देवकरण बारहठ ‘इंदोकली’

पढणी अर पांडित्य में, आज फेर के और।
होड नहीं थारी हुवै, सगता थूं सिरमौर।।
जूनै छंदां रौ जबर, संचौ सगतै साथ।
खास बात पूरी खबर, परियां देवै पात।।

~~कैलाशदान उज्जवल (ऊजळां)

कविया री कीरत कथा, मुख सूं कही न जाय।
सुमधुर शक्तिदान कवि, लीन्यो लोक रिझाय।।
बात ख्यात गुण गीत रो, प्रगटायो रस रूप।
डिंगळ अर पिंगळ तणो, संगम सहज अनूप।।

~~मनीषी डॉ. मनोहर शर्मा (बिसाऊ)

छंद अलंकारां छटा, रसां सिद्ध धुनि ग्यान।
शब्द-शक्ति वक्रोक्ति शुभ, दीपै शगतीदान।।
उत्तम शिल्पी आखरां, गहरौ डिंगळ ग्यान।
भव्य कला अर भाव में, दरसै शगतीदान।।

~~नारायणसिंह ‘शिवाकर’ (नोख)

कविया गोविन्ददान से, है कम व्यक्ति महान।
देश जाति का हित किया, दे सुत शक्तिदान।।

~~जसकरण खिड़िया (जैतपुरा-भीलवाड़ा)

गौरव गुण री गाथ, सुकवी कहै सराहतां।
‘सकता’ थारै साथ, रहसी महकां सुजस री।।
उजळा आखर आज, ऊघड़िया रहसी अवस।
कीरत वाळा काज, ‘सकता’ जग कहसी सदा।।

~~बदीदान गाडण (हरमाड़ा-जयपुर)

तूं चौराड़ां कळपतरु, मम बबूल सम मांन।
अनुकंपा कर दै अवस, दरसण सगती दांन।।

~~धनदान लाळस (चांचळवा)

प्राच्य काव्य साहित्य प्रसिद्ध, सुकवी शक्तीदान।
हिंद प्रतिनिधि इटली हुवौ, टेसिटरी सनमान।।
विशद गहन व्यक्तित्व अरु, बहुकृतित्व गणमान।
कुल गौरव कविराज है, सुकवी शक्तीदान।।

~~शुभकरण कविराज (बासणी)

राजस्थान रळियामणौ, कवय कथी कवितान।
बिराई रो वासी ओ, चारण शक्तिदान।।

~~रूप मुनि

कविया मूंघी कलम सूं, और लिखौ आख्यान।
रजपूतां भर दो रधू, सगती सगतीदान।।
ओळू मंडगी आखरां, काळजियौ कागज्ज।
नीको नेह निहारवै, कविया रौ कमधज्ज।।

~~राजर्षि ठा. उम्मेदसिंह (धोळी)

गुण रौ कवियौ ग्राहकू, गिरा काव्य शुभ ग्यान।
कंठ बसै ‘नाहर’ कहै, सारद शक्तीदान।।
शक्तीदान शिरोमणी, वरदायक विद्वान।
अमरलोक सूं ऊतर‍्यौ, दूजौ करणीदान।।

~~ठा. नाहरसिहं (आऊवा)

सत साहित उपवन सज्यो, धिन कविया मति धीर।
सुरभित कीध समाज नैं, सकती तोर समीर।।
सूरजमल मीसण समौ, उर में ज्ञान अपार।
सुरसत सुत कवि सकत नैं, वंदन वारंवार।।

~~शुभकरण देवल (कूंपड़ावास)

सुपह मांन जस हेम सम, घड़ियो मेहडू घाट।
कण नग जड़िया सगत कवि, हार बिकांणौ हाट।
हार बिकांणौ हाट, ग्रंथ रूपी औ गैणों।
अेण घड़त रो और, नहीं दीठो दोय नैणों।
पढियो मांन-प्रकास, कथन अंतस सूं कहहां।
सकव न मेहडू समो, समो मांनै नहिं सुपहां।।

~~डूंगरदान आशिया (बाळाऊ)

पोथी मत मंडण पढी, आसल खुसी अथाह।
धन कविया कविजन धिनो, मंडण धिनो मताह।।
चुग-चुग मान सरोवरौ, हंस चूण रौ हार।
पूरण कर पहरावसूं, ‘सगत’ सुकव सर सार।।

~~जुगतीदान आसिया (भांडियावास)

शक्ति सुरंगी सांवठी, शक्ति सदा सिरमोर।
शक्तिदान कविया सिरै, काळजियै री कोर।।

~~ओंकारश्री (उदयपुर)

शक्तिदान कविया सरल, सुगणौ कवि सिरमौर।
सुरसत सुत शोधक सरस, इण सम विरला और।।
अवनी गुणी अनेक, शक्तिदान सो ना सरस।
नमन भाव मन नेक, मिनख न दूजौ मुरधरा।।

~~दीनदयाल ओझा (जैसलमेर)

मां सगत्ति रौ मान, कविया शक्तिदान है।
गुणवंता गुणखान, लाखीणा लख अेक है।।

~~रामदत्त थानवी (जोधपुर)

दूहा सगतीदान रा, घटा बणी घनघोर।
पढतां ही नाचै परा, मन बगिया रा मोर।
मन बगिया रा मोर, आपरी कविता आगै।
करणी जस सुण कान, लता जिम झूमण लागै।
कवित सोरठा केईक, गीतड़ा नांमी गविया।
मथ डींगळ महराण, काढिया मोती कविया।।

~~अर्जुनदान (सनवाड़ा-जालौर)

जबर बणाई सगत जग, आई मन अवदात।
गाई कीरत गैहरी, छाई महिमा छात।।
लावो लियो साहित्य लिख, चावो व्है चौकूंट।
कविया सगतीदान कळ, गिरा इमरती घूंट।।

~~लक्ष्मणदान कविया (खेंण)

सोहै अविरल सादगी, ओपै ग्यांन अथाह।
लूटै कवियौ लोक नैं, वीसासों मुख माह।।
छटा बिखेरी छंद री, वाणी हूंत विदेस।
जग चावी डिंगळ करी, सदभावी सगतेस।।

~~मोहनसिंह रतनू (चौपासणी)

आखर जोड़ अमोल, जीव न धापै जांचतां।
सिरजण घणो सतोल, धरा सुरंगी धाट रो।।
आखर विणज अमोल, वास न जावै वांचियां।
मोत्यां-मूंगा मोल, दूहा शक्तीदान रा।।

~~संग्रामसिंह सोढा (बज्जू)

सुजस्स सगतीदांन रौ, सै जगती में सोय।
मालणदे-भगती मुदै, उगती सिरै सजोय।।
धरोहर धोरां तणी, धरा सुरंगी धाट।
वीदग ‘सगत’ वखाणिया, थळवट हंदा थाट।।

~~शंकरसिंह राजपुरोहित (बीकानेर)

थेट जलम थळवाट, वाट सत वाळी वहणो।
धकै सासरो धाट, काट कूड़ी सच कहणो।
बोलै इधका बैण, जैण कण हीर जड़ावै।।
निरख्यां नैण निहाल, सैण अंतस सरसावै।
जस छंद गीत रचिया जिकै, तिकै तीन भव तारणा।
कव ‘सगत’ तिहारी कलम रा, (म्हैं) वार-वार ल्यूं वारणा।।

~~डॉ. गजादान चारण ‘शक्तिसुत’ (नाथूसर)

पाइ उच्च आसन सुशासन गुमान नांय,
बानी मांहि बस्यौ है मिठास जस कन्द कौ।

कर्म रेख रेखन सौं लेखनी के लेखन सौं,
जाकौ जस छायौ ज्यों सुवास मकरन्द कौ।।

सदावर्त बांटे जो साहित्य सद् व्रत्त राखि,
दीनन के हीनन के मेटे दुख द्वन्द कौ।

कविया सुबंस अवतंस शक्तिदान प्रिय,
जीवे शत शरद सपूत श्री गोविन्द कौ।।

~~बिहारीशरण पारीक (जयपुर) (4. 7. 1999)

कविता सौं कविया कौ सहज सनेह सदा,
डिंगल सौं प्यार तैसौ पिंगल सौं प्यार है।

जीवन कौ सार-सार भाव लिखवे कौ चाव,
कविता में कला लाइबे में हुशियार है।

भाव भांति-भांति के हैं, भाव-भूमि एक ही है,
राग है अनेक इकतारा एक तार है।

मितभाषी, मृदुभाषी, मरुवासी शक्तिदान,
ब्रजवासी लोगन के, हियरा को हार है।।

~~राज. ब्रजभाषा अकादमी, जयपुर री स्मारिका (1994)

डॉ. शक्तिदानजी कवियां सूं सैमूडै

* आपरै बालपणै अर भणाई-गुणाई री संघर्ष-गाथा आपरी पोथियां में संकेत रूप में निगै आवै, उण दौर बाबत की खुल’र बतावो।
-म्हारै जलम अर गुटकी रै साथै ई संघर्ष री सुरुआत हुई, जकी बदळती परिस्थितियां रै साथै भांत-भांत रा रूपां में जुड़ियोड़ी रही अर आखिरी समय तांई छुटकारो संभव नी लागै। दैहिक, भौतिक या दैविक तीनूं ई तापां में तपियो तद ठाह पड़ी कै कष्ट जीवण री कसौटी हुवै। म्हारी जलमतिथि, सरकारी प्रमाण पत्र मुजब मानीजै, पण असल में बरस, महीणो, तिथ, वार सब अध्यापकां लिखिया वै सही नीं है। म्हारी माताजी रो देहांत हुयो जद म्हैं फगत डौढ बरस रो दूध चूंगतो टाबर, बाप रै इकलौतो बेटो। न भाई, न काको, न बडो बाप। जोधपुर सूंई पैली बसियोड़ो म्हारो गांव बिराई, पण गांव री छड़ी रुपियां पछै सब सूं पैली पढ़ाई करण सारू दूजी ठौड़ जाय कठणाई भुगती। म्हारा पिताजी गोविन्ददानजी म्हनैं बाळेसर स्कूल में भर्ती करायो संवत् 2003, माघ सुद 5 रै दिन। पैरियोड़ो नेकर कुड़तो फगत एक, बाजरी रा लूखा भुखर (सोगरा) खावणा, थाळी खुद मांजणी। जूंवां पड़ी जद मास्टर रामसिंहजी भाटी (सांवडाऊ) म्हारै पिताजी रा जमा करायोड़ा रुपियां सूं नवो कुड़तो-नेकर (सफेद) सीड़ाय नै दियौ। थोड़े अरसे बाद मथाणियै री प्राईमरी स्कूल में भर्ती करायो, जठै सीतारामजी लाळस अध्यापक हा अर म्हारी सगी मासीजी रै घरै रैयनै पढ़ाई करी। रसोई में घरटी री पुड़ियां माथै घासलेट री छोटी चिमनी मेल, कॉपी गोडां माथै राखनै सवाला रा जवाब लिखतो। कविता पांचवीं कक्षा सूं डिंगळ री वैणसगाई सहित बणावतो, पिंगळ रा कवित्त-सवैया भी। आठवीं पास करनै पाछो बाळेसर नवमी कक्षा (मैट्रिक रै प्रथम बैच) में आयो। सन् 1954 में आसोज रा नौरतां में कुलदेवी मालणदे री स्तुति रो डिंगळ गीत त्रिकुटबंध बणायो। लालटेण रै चांनणै में नवमी रा विद्यार्थी बोर्डिंग में रात रा पढता। म्हारी सौतेली मां उणी बरस सुरग सिधायगी। पिताजी घर में एकला, एक बहन म्हारै सूंदोय बरस। मोटी, परणायां पछै सासरै रैवणो जरूरी। पिताजी रो आतमबळ, अनुभव, प्रतिष्ठा, प्रभाव, हैसियत सब कुछ होतां थकां ई घर में गाय रो धीणो, खाणो-पीणो, खेती री रखवाळी, घर अंवेरणो घणा मुस्किल होता, पण हिम्मत नी हारी। बूढा-बुजुर्ग घर संभाळण में मदद करता। म्हारै नेम हुतो-हर शनिवार नैं स्कूल री छुट्टी होतां ई पैदल बिराई जावतो, दूजै दिन रविवार नैं घरे रैवतो अर सोम नैं सूरज उगाळी सूं पैली पांच कोस पाळो बाळेसर स्कूल जावतो। दसवीं रै प्रथम बैच में शिक्षकां री कमी सूं त्यारी री कमी देख फगत छह विद्यार्थी मैट्रिक परीक्षा रै केंद्र चौपासणी (जोधपुर) आया। वां में तीन उत्तीर्ण हुया, ज्यांमें दोय जणा आगै नीं पढिया। म्हैं एक मात्र बाळेसर हाई स्कूल रो छात्र जोधपुर पढण नै आयो, पण जोधपुर देखियो पैली बार, कोई संगी सहपाठी ओळखण वाळो नीं।

* दसवीं कक्षा में पढतां छोटी ऊमर में आपरो ब्याव होयग्यो, घर री जिम्मेदारी अर पढाई री त्यारी दोनूं नैं बरोबर निभावण री जुगत कियां जचायी?
-दसवीं रा इम्तिहान खतम होता ही म्हारो ब्याव घरेलू मजबूरी रै कारण 7 मई, 1956 (संवत् 2013, वैशाख वद 12, सोमवार) रै दिन हुयो। दसवीं पास कर इग्यारवीं, बी. ए. प्रथम वर्ष (कला) एस. एम. के. कॉलेज जोधपुर में प्रवेश लियो। ऐच्छिक विषय हिंदी-अंग्रेजी दोनूं साहित्य, मैट्रिक में ऐच्छिक हिन्दी-संस्कृत विषय लिया। जोधपुर में आयां पछै म्हैं किणी हॉस्टल में नीं रैयो, अलग कमरो, होटल में भोजन, सादो सात्त्विक जीवन, बडा आदमियां री सोहबत अर साहित्य रो अनन्य अनुराग। अनेक बाधावां आई, गांमेडू, जिम्मेदारी, कोई रिश्तेदार पढियो-लिखियो अफसर नीं। फगत पुरुषारथ रै पाण, चावा-ठावा मिनखां सूं पहचाण अर कविता में वेदना-संवेदना रा बखाण ई लक्ष्य राखियो। आध्यात्मिक आस्था रै कारण सुख-दुख रै प्रसंगां नैं कविता में चित्रण कर हियो हळको करतो रैयो हूं।

नौकरी पावण में, 37 बरस तांई निभावण में, गांव री जमी-जायदाद री समस्यावां सुळझावण में, बेटां नैं पढावण अर नौकरी लगावण में, अन्याय रै विरुद्ध अदालतां सूं न्याय सारू वकील बदळावण में, हिंदी, राजस्थानी, डिंगळ अर पिंगळ में काव्य-रचावण अर पीड़ नैं पचावण री जुगत में आखरां री उगत नै सतरै पथ माथै अडिग रैवण री आस-विश्वास ही जीवण रो सास-उसास है।

* आपरी जलमभोम बिराई ‘कवियां री काशी’ विरुद सूं विभूषित है, सो डिंगळ काव्यशैली रो प्रभाव आप माथै ई पड़णो सुभाविक हो, पण ओ प्रभाव किण हद ताई पड्यो?
-म्हारा पिताजी गोविन्ददानजी कविया डिंगळ-काव्यपाठ रा विशेषज्ञ हुता। संजोग सूं वांनै प्रसिद्ध मोतीसरां अर चावा कवियां री भांत-भांत री असंख्य कवितावां याद ही। म्हारा मामा अळसीदानजी रतनू (बारठ रो गांव-पोकरण) माड़ अर मारवाड़ में कवि-रतन रै साथै गुणां में नर-रतन हा। वांरी बरसाळे रा छंद, जैसलमेर रौ जस, रामदेवजी रा छंद, नाथूसिंघ रा छंद सरीखी लोकप्रिय रचनावां आज ई घणा मिनखां नैं जबानी याद है।

महाकवि धूड़जी मोतीसर रा बेटा सिरजी मोतीसर सूं म्हारौ प्रगाढ़ संबंध रैयो। म्हारै डिंगळ गीत-छंदां सूं प्रभावित होय वै औ दूहो मिळतां ही सभा में सुणावता हा :

सुभ लच्छण पढ़ियौ सिरै, सदा वंधतै सूत।
गोयंद सुत मालम गढां, सगतौ कंवर सपूत।।

ऊपर लिखी विगत री प्रेरणा सूं छठी कक्षा में श्री करनी यश प्रकाश’ री रचना करी। रामसापीर रा छंद रेणकी, भीखै पोकरणै रा जूंझारू छंद, मालणदेवी रा चाडाऊ सारसी छंद, इम्तिहान रो गीत, दिनमांन रो गीत, आतम-बोध रो गीत अर फुटकर दूहा, सोरठा, छप्पय, त्रोटक, मोतीदाम छंद, त्रिकुटबंध सरीखी अलंकृत रचना करी। जलमभोम रो वातावरण, विद्वान बडेरा, पिताजी री पढणी, ब्रजलाल जी कविया, शिंभूदानजी कविया, देवजी कविया (पंगु), हीरजी, हेमजी, करनीदानजी, रुघजी, अचलदानजी सरीखा बिराई निवासी रावळ जाति रा कवि म्हारै बालपणै में प्रेरणा स्रोत सिद्ध हुया।

* उच्च शिक्षा सारू जोधपुर आयां ग्रामीण अर शहरी संस्कृति, परिवेश अर परंपरावां बाबत टकराव नै मेळ-बेमेळ सूं आपरो सीधो संपर्क हुयो, कियां ‘एडजस्ट’ करयो।
-उच्च शिक्षा सारू जोधपुर आयां एक कांनी ग्रामीण क्षेत्र रा विद्यार्थी मित्र अर थेट थळी में जलमियोड़ा केई बडा अफसरां सूं संपर्क रै कारण राजस्थानी संस्कृति, देवी-देवतावां रा छंद, ऐतिहासिक प्रवाद रा प्रसंगां री चरचा सूं अंजस अर आणंद होवतो। पैरवेश अर खानपान में सादगी, सात्त्विकता, परिश्रम, सामाजिक-साहित्यिक समारोहां में भागीदारी रही। दूजी कांनी प्रतियोगिता रै दौर में हिंदी वाद-विवाद प्रतियोगिता अर राजस्थानी वादविवाद प्रतियोगिता में प्रथम स्थान पायो। सन् 1960 में बी. ए. रो छात्र हो जद श्री महाराज कुमार कॉलेज री वार्षिक पत्रिका में हिंदी-अंग्रेजी रै साथै राजस्थानी विभाग (अनुभाग) ई छपायो। ढाल-तरवार रै चिह्न रो मोनोग्राम राजस्थानी सारू छपतो। पैली बार छात्रां रै चुणाव सूं म्हनैं राजस्थानी सेक्शन रो संपादक बणायो। अंग्रेजी रचनावां रो गद्य अर पद्य में अनुवाद कर पत्रिकावां में छपायो। जोधपुर सूं छपण वाळी ‘प्रेरणा’ (मासिक पत्रिका) रै सन् 1959 रै जनवरी-फरवरी-मार्च-अप्रेल अंकां में टॉमस ग्रे री प्रसिद्ध कविता ‘ओलीजी’ रा क्रमशः 8-8 स्टेंजा मूळ अंग्रेजी में, नीचै राजस्थानी पद्यानुवाद अर हिंदी में भावार्थ म्हारै नाम सूं छपिया। ‘ह्यूमन सीजन्स’ कविता नैं मिनखां री मौसम’ शीर्षक सूं म्हैं अनुवाद कर प्रेरणा में छपाई। डिंगळ रै साथै हिंदी में कवितावां, मुक्तक आद प्रकाशित हुया। भारत के वीर सिपाही, जिन्दगी-आशा निराशा के हठीले बंध घेरी, किसी की तस्वीर, नई पीढ़ी के नाम अर प्रेमप्रकृति विषय रा मुक्तक लिख्या, छप्या। ब्रजभाषा री रचनावां पाठ्यक्रम में पढी-घनानंद, बिहारी, रहीम, पद्माकर इत्याद रै प्रभाव सूं विद्यार्थी-जीवण में मोकळा कवित्त, सवैया, व्यंग्य-विनोद विषय रा भी लिख्या।

आकाशवाणी जयपुर सूं काव्य गोष्ठियां में भाग लियो। राजस्थानी वार्तावां, डिंगळ काव्यपाठ अर आज री राजस्थानी री वार्तावां, कवितावां सन् 1958 सूं ईज प्रसारित होवणी सरू हुयगी। पैली बार म्हारी जनमभोम में पंचायत री तरफ सूं रेडियो आयो जद गांव री सभा कोटड़ी (पोळ) में बैठ जयपुर सूं म्हारो कार्यक्रम ‘बरसाळा बीसी’ रा दूहा अर ‘बाघै कोटड़ियै रा दूहा’ आसाजी बारहटकृत सुणनै अचंभो अर हरख अनुभव कियो। म्हैं गांव गयो जद बुजुर्ग बोलिया कै जाणै भींत रै लारै सूं ईज आवाज आवै। संचालक गणपतलाल डांगी जद म्हनैं पूछियो कै आपरो गांव किसो है ? तो म्हैं कैयो-‘गांव बिराई, तहसील शेरगढ’। ओ सुण जनता राजी हुयी।

म्हारै मित्रां मांय साहित्य में रुचि राखणिया-हिंदी, उर्दू, राजस्थानी सगळा विषयां रा तरुण हा। अंतरप्रांतीय कुमार साहित्य परिषद् जोधपुर में श्री नेमीचंद जैन भावुक री प्रेरणा सूं परिचै रो दायरो बधियो। गोकुलभाई भट्ट विशेषांक (सन् 1960) में म्हारी कविता ‘भलैरो गोकुलभाई भट्ट’ छपी। ‘मिमझर’ नाम री चार कवियां री राजस्थानी कविता पुस्तक ईं परिषद् री तरफ सूं छपी, जिणमें दूसरे नंबर माथै म्हारी कविता ही। प्रो. गणपतिचंद्रजी भंडारी उण पुस्तक रो संपादन कियो हो। संस्कृत पढ़ण में ई रुचि ही। म्हैं बारवीं कक्षा में पढ़तो उण बगत संस्कृत में स्वरचित श्लोक बणाय एस. एम. के. कॉलेज जोधपुर में मंच सूं सुणाया हा। श्री उदयराजजी उज्ज्वल म्हनैं संस्कृताचार्य पं. नित्यानंद जी शास्त्री (राजस्थांनी सबदकोस रा परिष्कारकर्ता) रै घरे ले जाय वै श्लोक वांनै सुणवाया। वां प्रसन्नता सूं कैयो टाबर री तोतली जबान ई मीठी हुवै सो टाबरपणे में रचियोड़ा श्लोक सरावणजोग है। 12 दिसंबर, 1958 (संवत् 2015 वि. मिगसर सुद 1) नै सुणाया वां लययुक्त संस्कृत श्लोकां री बांनगी:

मेघा मुंदति प्रवंदति नादम्, तडिस्य नृत्यं कमनीय वियते।
नाना सुवर्णे: वलयित वितानं, प्रत्यूष काले अति सुष्ठुदृश्यम्।।
उष्णेन तपिता उर्विमसह्या, सुखदः पुनश्च मधुमास तत्रः।
स्तोत्र श्रुत्वा पुरुहूत त्वरितं, जीमूत प्रतना ग्रहितम अगच्छत।।

* अैड़ो सौभाग्यशाली शिक्षक जिणसूं डॉ. शक्तिदान कविया सबसूं ज्यादा प्रभावित हुया अर उण प्रभाव रो कारण?
-मिडिल स्कूल मथानिया में सीतारामजी लाळस, ज्यांरै मुख सूं सुणियोड़ी उक्तियां-‘जिह्वा जानाति छन्दम्’, संतवाणी रा दूहा, ऐतिहासिक दूहा, पिंगळ रा कवित्त, डिंगळ गीतां रा प्रसंग सहित उदाहरण सुणनै सीखिया। हाई स्कूल बाळेसर में मुख्य अध्यापक कान्हसिंहजी खीची (गांव इन्द्रोका) जका संस्कृत-हिंदी रा शिक्षक हा। भक्तहृदय, अनुशासन प्रिय, काव्यप्रेमी, सत्यवादी, नियमित दिनचर्या वाळा आदर्श शिक्षक हा। वां ई म्हनैं प्रोत्साहित कियो। प्रति शनिवार छात्रावास प्रांगण में किणी विषय माथै वाद-विवाद प्रतियोगिता, कविता-पाठ रो कार्यक्रम तय कर म्हनैं उणरो प्रभारी बणावता। जोधपुर विश्वविद्यालय में श्री पी. एन. श्रीवास्तव (प्रकाशनारायण श्रीवास्तव) जका पैली अंग्रेजी रा लेक्चरर हा, हास्य-व्यंग रा लोकप्रिय उर्दू शायर हा। वै नप्या-तुल्या सबदां में परामर्श देता। म्हारा सगळा महताऊ पत्र, चाहै कठै सूंई नौकरी रो साक्षात्कार हुवो, राज्यपाल आदि रा पत्र हुवो सब वारै मार्फत ई आवता हा। वै खुद साईकिल पर बैठ लगभग तीन किलोमीटर म्हारै निवास पुगावण आवता। वै म्हारै पितातुल्य हा। औ तीनूं शिक्षक आज ई म्हारै सारू देव-समान स्मरणीय है।

* मौलिक सिरजण रै साथै-साथै राजस्थानी री अनेक महताऊ कृतियां रो आप सांतरो संपादन कियो है, इण संपादन रै लारै आपरी कांई सोच रैयी, खास कर प्राचीन राजस्थानी साहित्य ग्रंथां रै संपादन में इतरी रुचि रो कारण?
-सम्पादन रो काम बौहळे भाषा-ज्ञान अर छंदां री पाठशुद्धि सरीखी घणी मैनत अर अनुभव वाळो काम है। जिण भांत रूंख री जड़ अथवा भवन री नींव आधार हुवै, उणी भांत उत्तरकालीन अपभ्रंश सूं ऊपनी आपणी डिंगळ-मारूभाषा-राजस्थानी री संस्कृति रो सबळो, सांगोपांग अथवा अनूठो अर अंजसजोग खजानो राजस्थान रै संस्थानां या निजी संग्रहालयां में बेतरतीब, कटी-फटी, आधी-अधवीटी या पूरी तरै सूं सुभट आखरां सूं उतारो करियोड़ी हथरादू पोथियां में भळहळतो लखावै। पुराणी लिखावट में आखरां रा रूप अर सबदां रा रूप अलग ढंग सूं मांडीज्योड़ा मिळे। कथाप्रसंग का वरणाव रै प्रसंग मुजब अरथ सोचतां उच्चारण करणो हुवै। लघु-दीरघ मात्रा गुजरात में आज भी ‘बापू’ नै ‘बापु’ लिखै, उणी भांत पुरांणी पोथियां में ‘बिरजलाल’ नैं ‘वीरजलाल’, रिखबचंद नैं रीषबचंद’, शिवलाल नैं सीवलाल’, किसनो या चिमनो लिखती वेळा केसनो, चेमनो लिखीजतो। शिवाजी सारू सेवोजी मरेठो बोलीजतो हो। जुड़मा आखर तो लिखण रो रिवाज ई नीं हो। उदाहरण :

हुय रीष हुड़ाहड़ पाव हथझड़, घूमत बधड़ मेछ घड़ा।
तस रूप तड़तड़ नीझक नझड़, तूटत अंतड़ रौद तड़ा।

ऊपर लिखी दोनूं ओळियां में 8 सगण (।।S) रो प्रयोग एक झड़ में हुवै, इण सारू ज्यूं अट्ठ-आठ रो रूप। कम्म-काम रो रूप है, पण जूनी लिखावट में अठ, वट, कम सरीखा आखर है। इण बात नैं ध्यान में राखतां ऊपर लिख्यो. पद्यांश नैं इण रूप में पढणो पड़ै-

हुय रिक्ख हुड़ाहड़ पाव हथझ्झड़, घूमत बध्धड़ मेछ घड़ा।
तस रूप तडत्तड़ नीझक नझ्झड़, तूटत अंतड़ रौद तड़ा।।

सूरजप्रकास, अवतार चरित्र, पाबूप्रकास, सोढायण, राजरूपक सरीखा महान् ग्रंथां रो संपादन पाठ री प्रचलित पद्धति या परंपरा सूं अजाण कदैई सही ढंग सूं नीं कर सके। कवि, कवी दोनूं रूप एक ही दूहै में मात्रा रै नेम मुजब लघु-गुरु बणै। फेर ग्रंथ री कथावस्तु नैं समझणी, शब्दार्थ व टिप्पणियां आज री नवी पीढी सारू असंभव है। म्हैं ‘लाखीणी’ री लोककथावां में आद सूं अंत तांई गद्य री सही लिखावट, दूहां में मात्रिक प्रयोग रो भरपूर
मैनत सूं सरूप सुधारियो है। म्हारी सन् 1966 में संपादित ‘सोढायण’ री मूळ प्रति रो प्रथम अर अंतिम पृष्ठ रो फोटू छपियो, उणनैं आज रा नवा शोधार्थी सही तौर सूं पढ ही नीं सकै। इण कारण म्है संपादन में दिवंगत पूजनीक रचनाकारां नैं सही रूप में प्रस्तुत करण रो फरज निभायो है।

एक महताऊ जाणकारी देणी चाहूं कै राजस्थानी साहित्यकारां में महाकवि बांकीदासजी संस्कृत, फारसी, डिंगळ, ब्रज, अपभ्रंश, इतिहास, पुराण इत्याद अनेक विषयां में पारंगत हुता, पण वै ‘जोद्धार’ नैं ‘जोध्रार’ लिखता, खजानां नैं ‘षजानां’ लिखता, ‘ड़’ नैं ‘ड’ लिखता ‘ळ’ नैं ‘ल’ दोनूं रूप ‘ल’ में ही मानता, जाणणहार सही पढ लेवतो। आज रो कोई टाइपिस्ट उणनैं एकसी लंबी ओळी में महाजनी मुड़िया लिपि री जाणकारी बिना छापण सारू टाइप नीं कर सके। म्हारै जैडौ आदमी टाइप वाळे रै कनै बैठ डिक्टेशन देवै जद बात बणै। इतरो बगत, इतरी मैनत अर छपावण रो खरचो कुण करै। अकादमियां री सीमित अवधि अर मोटो खरच। बांकीदासजी रै हाथ सूं लिखियोड़ो सातसौ पानां में ‘महाभारत री कथा : सार संग्रह’ अज्ञात ग्रंथ पड़ियो है। भारत सरकार तांई सीधै-सादै साहित्यकार री तो पौंच नहीं। संपादन रो महत्त्व इण सारू है कै भविष्य में छंद पढणिया, रचणिया अर अरथ करणियां रो लोप होवती जिनावरां री प्रजाति ज्यू लोप होवण रो खतरो है। कोई सरकार या संस्था इण कांनी ध्यान दे सकै तो सरस्वती री साची सेवा होसी।

* आप ‘सोढायण’, ‘लाखीणी’, ‘कवि मत मंडण, ‘मांन प्रकास’ जैड़ी प्राचीन साहित्य री पांडुलिपियां नैं संपादित करण रो अनुकरणीय काम कियो है। इण क्षेत्र मांय आवण वाळी बाधावां अर चुनौतियां बतावतां नवागत संपादकां सारू सावचेती रा सबद. . . .
-एक ई नाम रा कवि अर ग्रंथ नायकां रा एक सरीखा नाम मिलै, सो असल में ग्रंथ रो रचनाकार तथा प्रेरक या चरितनायक कुण है, ओ अनुसंधान बहुपठित विद्याव्यसनी कविकोविद बिनां जिको-तिको आदमी नीं कर सके। एक ही रचना री कुल छंद संख्या एक प्रति में आधी-अधूरी हुवै तो दूजी हस्तप्रतियां तूं पाठ-संपादन रो तरीको अपणावणो पड़े।

‘मांन-प्रकास’ जैड़ै ऐतिहासिक महत्त्व रै अज्ञात ग्रंथरी मूळ प्रति रा अंश ठौड़-ठौड़ सूं एकठा करण री लगन राखी। महाराज मानसिंहजी रै मेहराणगढ वाळे हस्तलिखित संग्रह अथवा कवि महादानजी मेहडू रै वंशजां रै घर में ही प्रति नहीं मिळी। सीतारामजी रै ‘राजस्थांनी सबदकोस’ री ढाई सौ पृष्ठां री भूमिका अथवा डॉ. मोहनलालजी जिज्ञासु रै चारण साहित्य रै इतिहास रा दोय भागां में ग्रंथ रो नाम तक नी मिळे। विस्तृत भूमिका, कवि वंश परिचय, शब्दार्थ इत्याद रै साथै छंदां री सही सटीक प्रस्तुति बिना पढणहार समझ नीं सकै। इण कारण पांडुलिपियां रो पढणो-समझणो अर प्रामाणिक संपादन इण धरती रै काव्य रूपी कळपवृच्छ री जड़ां नैं सींचणी अर सुरक्षित राखण री खरी सखरी खेचल है। ओ ऋषिऋण-परिशोध री पवित्र परंपरा कांनी श्रद्धा सूं पावंडा भरण रै समान सकारथ अनुष्ठान रो सीगो है।

* आपरै समकालीन लेखक अर कवि मित्रां री जोगती जाणकारी दिरावो, समकालीन सिरजण में आपरी पसंद रा कवि कुण है अर क्यूं है?
-समकालीन लेखकां अर कवियां री संभागवार सूची बिना नाम गिणावण में सुजोग लेखकां नैं उपेक्षा भाव सूं पीड़ा या निराशा हो सके। इण कारण मरुभोम रा सुख्यात अर सुपरिचित दिवंगत साहित्यकारां में सत्यप्रकाशजी जोशी, डॉ. नारायणसिंहजी भाटी, रेवतदानजी चारण, गजाननजी वर्मा, मोहम्मदजी सदीक, डॉ. नृसिंहजी राजपुरोहित, श्यामसुंदरजी श्रीपत, भंवरदानजी झिणकली, प्रेमजी प्रेम, कानदानजी कल्पित, ब्रजलालजी कविया, मूळदानजी देपावत तथा वयोवृद्ध में देवकरणजी इन्दोकली, उदयराजजी उज्ज्वल, कन्हैयालालजी सेठिया, डॉ. मनोहरजी शर्मा, पद्मश्री सीताराम जी लाळस सरीखा मनीषी अमर-कीरत रा अधिकारी बण चुक्या। राजस्थान तो साहित्यकारां रो रतनाकर है, जठै हुवा है अर फेर होसी, ओ भरोसो है। सरस्वती सूं आ ईज अरदास है।

* राजस्थानी अर हिन्दी दोनूं भासावां रै कवियां समै री साद सुण र छंदमुक्त कविता रै झंडै हेठै जावणो अंगेज लियो, ता-पछै ई आप छंदोबद्ध रचना रा ई हामी बण्या रैया अर छंदोबद्ध काव्य रो ई सिरजण करता रैया, कांई आपनैं मुक्तछंद कविता पंसद कोनी?
-आज गांवेडू भांयकै में समझदार सूं लेय खीलोरी नै ई पूछलो कै थारै अठै बडेरां में कोई कवि हुयो या आज भी है तो वो वां मिनखां रा ईज नाम गिणासी जिकै दूहा, सोरठा, देवी देवतावां री स्तुति, किणी रा भूंडा या भला गीत या सबदी बणाया है। जद कविता रै प्रति राजन्य वर्ग री नासमझी अथवा अरुचि हुई अर विदेसी राज री विकृत व्यवस्था, कुसंस्कारां रै पाण कविता री कद्र घटी तो वो दरद या शिकायत जनभाषा में इण भांत सुणीजती :

गीत टकै छंद पावले, दुहा अधेलै दोय।
कविता सूं ओपत कठै, हळ सूं ओपत होय।।
कवराजा खेती करौ, हळ सूं राखौ हेत।
गीत जमीं में गाड दौ, राळौ ऊपर रेत।।
रही घणा दिन राज रै, वेईजत वरतीह।
जाती करै जुहारड़ा, धणियां सूं धरतीह।।

राजस्थान रो समूचो इतिहास, ख्यातां, ऐतिहासिक काव्य, नीति रा सोरठा, लोकोक्तियां, व्यंग्य-विसर रो असरदार आधार वा कविता है, जकी सुणतां ई अणपढ मिनख रै ई कंठां हुय जावै। ज्यूं प्रचलित झड़ां है :

मरतै मोडै मारिया, चोटी वाळा च्यार।
xx
रजपूती रैयी नहीं, पूगी समदां पार।।

मौखिक अर वाचिक परम्परा में राजस्थानी साहित्य री आत्मा रो उजास दरसै, जनकंठां में गूंजै, गोरा हटजा रा गीत, साधारण मिनखां रा असाधारण गुण ग्रामीण कवियां गिणाया, वै पीढियां तांई चालै। ‘धन अंटे अर विद्या कंठै’। अनुप्रासां री झमक, नादसौन्दर्य, मोतियां रा गजरा ज्यूं देवी-देवतावां, सूरां-सापुरसां, सिधां-साधकां, ऊंठ-घोड़ां रै सजावटी सिणगार, आबू रा छंद, पाबूजी रा छंद, नसीहत री नीसाणियां, संबोधन रा सोरठां में भांत-भांत री छवियां अनेक अपढ लोगां नैं कंठस्थ याद है। अरथ याद नीं तोई मीठी अलंकृत छटा मन मोहै। छंदमुक्त यानी अकविता रचनाकार खुद पानौ लेय पढै, परिजनां नैं ई याद नीं रैवै। ऋग्वेद री ऋचावां सूं काव्य री कळियां पराग रै पुष्प समान लगोलग आपरी सोरम नैं सासती प्रवहमान राखी है। म्हारो अेक सोरठो इणरी साख भरै :

कंठां हुवै न कोय, आप रची खुद ओळियां।
जूना छन्दां जोय, पडै धरोहर री परख।।

* आपरी दीठ मांय जे छंदमुक्त कविता सारू अनुशासन री दरकार निगै आवै तो उण अनुशासन रा आधार बिन्दु काई हुवै ? कोई अेक आदर्श छन्दमुक्त कविता री ओळियां साख सारू. . . .
-असल में छंद तो कविता रो कलेवर नै लय उणरो आधार है। रस तो आत्मा है। कविता सारू संस्कृत में उक्ति प्रचलित है ‘या कविता सा कंठगता’ अथवा ‘जिह्वा जानाति छन्दम्’। कविता रा अनेक रूप हुवै ज्यूं संगीत में छह राग अर छत्तीस रागणियां। अंग्रेजी में कहावत है- ‘Poets are born not made’ अर्थात् कवि जन्मजात हुवै, बणाया नीं बणै। कविता मानखै री आत्मा रो संगीत व्है। पण दिल रो दरद दरसै वा कविता पाठक श्रोता री आत्मा नैं परसै। अंग्रेज कवि पी. बी. शैली री प्रसिद्ध कविता ‘टू ए स्काईलार्क’ में एक मरमभरी उक्ति है- ‘Our sweetest Songs are those that tell of saddest thought. ‘ इणरौ हिन्दी गीत में भावानुवाद-“हैं सबसे मधुर वे गीत जिन्हें हम दर्द के सुर में गाते हैं। ‘ गायन अर छंद में लय सब सूं महताऊ है। विद्वानां री तो अठै तक मान्यता है कै बिना छंद अर रस रै कविता संभव हो सकै पण बिना लय रै नीं। ” महाकवि दिनकर रै सबदां में :

मेरे उर की कसक हाय तेरे उर का आनंद हुई।
इतना ही है ज्ञात कि मेरी व्यथा उमड़ कर छंद हुई।

संस्कृत में घणकरी कवितावां में लय, छंद रो आधार व्है पण तुकांत जरूरी नीं। सतुकांत रचनावां में आदि शंकराचार्यकृत ‘भज गोविन्दम्’ शीर्षक वाळी कविता प्रसिद्ध है। विकासवाद रै सिद्धांत मुजब कविता में मुक्तक, क्षणिकावां, हाइकु, डांखळा, दुकड़िया, खोड़ा दूहा, सांकळिया दूहा, गीतां रा 84 भेद, ‘कवि कुल बोध’ में है, पण लोकप्रिय मंछाराम सेवग (जोधपुर) कृत ‘रघुनाथरूपक गीतां रौ’ है जो ग्रामीण क्षेत्रां सूं लेय भुज (कच्छ) री काव्य पाठसाळा रै पाठ्यक्रम तांई पूगो। अछंदी, मुक्तछंद, छंदमुक्त, रबड़ छंद इत्याद नाम छंदमुक्त कविता सारू सुणीजै। म्हारी धारण मुजब सही छंदमुक्त कविता वो ईज लिख सकै जको छंद री रचना कर सके। अज्ञेयजी, कन्हैयालाल जी सेठिया, महाकवि निराला, डॉ. नारायणसिंह भाटी, सत्यप्रकाशजी जोशी, प्रो. नन्द चतुर्वेदी सरीखा नाम इण तथ्य रा साखीधर है। जे लय रो आधार हुवै तो सुणण में छंदमुक्त कविता ई घणी चोखी लागै।

* आधुनिक राजस्थानी कविता री भावी दिशा बाबत आपरा विचार?
-आधुनिक राजस्थानी कविता री दशा अर दिशा बाबत ओ ईज सुझाव है कै रचना सूं पैली राजस्थानी, हिन्दी, उर्दू, अंग्रेजी कवितावां रो गहन अध्ययन जरूरी है। उण सूं निखार आवसी। जड़ रो महत्त्व पांतरणो भारी भूल है। राजस्थान रा मुहावरां री जाणकारी, कहावतां, लोकगीतां बातां-ख्यातां में काव्यात्मक गद्य में जको वर्णक काव्य है अथवा वैणसगाई अर अखरोट री आपणी मौलिक विशेषता है, उणनैं संभाळनै राखो। विषयां रो संसार आकास ज्यूं है, पण राजस्थानी रजकणां री रंगत रो असर आपरी न्यारी ओळखाण राखै, इण सारू परम्परा रै साथै जुड़ाव अर जागरूकता जरूरी है।

* राजस्थान री डिंगळ काव्य-परंपरा अर अबार राजस्थान में डिंगळ काव्य सिरजण विषय पर आपरी महताऊ टीप।
-डिंगळ काव्य-परंपरा राजस्थान री मौलिक निधि है। इण धरती री भाषा, साहित्य, संस्कृति, प्रकृति, पहाड़, धोरा, ऊंट-घोड़ा, रूंखड़ा, सरोवर, इष्ट अराधना, जावै लाख रैवै साख, प्राण सूं प्रण अर जान सूं आन प्यारी, नारियां रो सम्मान, लोकदेवियां, लोकदेवता, दातार-जूंझार सबरी साख डिंगळ काव्यधारा में दीपै। विषय रै मुजब जनभाषा में उक्तियां रचीजती। इणमें सबखी अर अबखी दोय शैलियां समै प्रमाण सुणीजती। ठेठ मरुवाणी ही डिंगळ रो सरूप है। संतोष री बात है कै आजादी रै बाद एक बार तो डिंगळ रो डमरू लुप्त-सो हुयग्यौ, पण सपूत-सूरमां-साहित्यकारां रै रगत सूं सींचियोड़ी वेल माथै महक भरिया डहकता पावन पुसप पाछा आपरी परमळ प्रगट करण लागा। बुजुर्ग कवेसरां री ओळ में केई ऐड़ा नवा कवेसर कीरत रो कंठहार दरसावता जूनां जेवरां ज्यूं उणी भांत घड़त-जड़त में दीपता दीवा लखावै। डिंगळ में लोक देवी-देवतावां रो विस्तृत अर विशिष्ट काव्य है, सो डिंगळ री धारा मंद भलाई हुवै, बंद हरगिज नी हो सके। ‘निरबीज भूमि कबहू न होय’।

* डिंगळ साहित्य / काव्य रै प्राचीन अर नवीन समै में छंद विषयवस्तु अर प्रतिपाद्य री दीठ सूं कांई बदळाव निगै आवै। कांई ओ बदळाव ओपतो है?
-समै रै मुजब विषय बदळाव जरूरी हुवै। साहित्य में वीरगाथा काल, भक्तिकाल, रीतिकाल अर आधुनिक काल री स्थिति सगळा सुजाण जाणै है। प्राचीन काव्य में लांठापणै री लोय दीपती। जमी रै कारण जुद्ध होवता, साका अर जौहर होवता। परदा प्रथा अर सती प्रथा रा ई कारण हुता। फेरूं ई समाज में वरण व्यवस्था रै ओळावै शास्त्रवेत्ता अर साहित्यकारां रै प्रति डाकू ई लिहाज राखता अर आशीष-दुराशीष रै परिणामां सूं डरता। डिंगळ कवियां वीरकाव्य, भक्तिकाव्य, नीतिकाव्य, अन्योक्ति काव्य, रीतिकाव्य, ऊंठ-घोड़ा अर सैन्य प्रयाण रै माध्यम सूं बीच-बीच में आपरी मान्यता अर संस्कृति रै महत्त्व नैं चेतावता रैवता। तद मिनख रै गुण-दोषां रै कथन अर प्रचार रो धारो हो। अपवाद रूप में महाकवि बांकीदास सामाजिक व्यंग रै रूप में अनेक दोहाबद्ध काव्य रचिया, ज्यां में चुगलखोर, विदर (दोगला) वर्ग, शोषणकर्ता वैश्य, जनानियां (मावड़िया) पुरुषां, कृपणां अर वेश्यावृत्ति रै विरुद्ध तीखो आक्रोश व्यक्त कियो है। विदर-छत्तीसी, चुगलमुख-चपेटिका, वैस-वारता, मावड़िया-मिजाज, वैसक-वार्ता, कृपण-पच्चीसी, कुकवि-पचीसी सरीखी रचनावां घणी मरमीली अर रोचक है। नवीन समै में लोकपूज्य देवता, राष्ट्र रा महान् सपूत, शहीद, ऐतिहासिक गौरव रा थंभ या राधा-कृष्ण रै लोकहितकारी रूप नै नवै अंदाज सूं उजागर कियो जावै। विशेष रूप सूं समाज में व्याप्त अन्याय, भ्रष्टाचार रै प्रति रोष, पर्यावरण-प्रकृति रै पक्ष साथै गोचर भूमि, गौसंवर्द्धन, इतिहास रो पुनर्लेखन, कैर-सतसई, खेजड़-पच्चीसी, नींबडै रा गुण, खेजड़ी रा छंद, त्रिकुटबंध सरीखै गीत नैं गांव रै पीचकै बेरै रै वरणाव में, ऋतुवां री रमझोळ, गीता रो डिंगळ अनुवाद, रूंख-रसायण, भारत-पाक या भारत-चीन युद्ध, नकली नेतावां रौ निरूपण, पाखंड खंडन, नशा-निषेध, इतिहास प्रसिद्ध जोधारां जूंझारां या साहित्य मनीषियां रै विषय में डिंगळ में अबार ई सरावण जोग सिरजण होय रैयो है।

* डॉ. मोहनलाल जिज्ञासू संपादित ‘चारण साहित्य का इतिहास’ रै विषय में आपरी राय। कांई उणमें कीं संशोधन, परिष्कार री दरकार निगै आवै?
-जाणी-अणजाणी कमियां रै बावजूद डॉ. मोहनलाल जिज्ञासु रो शोध प्रबंध ‘चारण साहित्य का इतिहास’ (भाग 1 अर 2) बुनियादी सामग्री अेकठ करण में घणो महताऊ है। गीतां रा उदाहरणां में प्रूफ री अशुद्धियां जरूर खटकै। यूं तो ‘राजस्थांनी सबदकोस’ में ई सैकड़ां सबद छूटग्या अर एक सबद रा अनेक रूप लिखण रै साथै शुद्ध संस्कृत रा ई सैकड़ां सबद है, पण जे ओ कोस उण बगत नीं लिखीजतो तो वर्तमान नवी पीढी रै सांम्ही राजस्थानी रा लाखूं सबद तो विलोप ई हो जावता। पूर्ण तो परमेसर है, मिनख री मैनत में थोड़ी-घणी खामी रह जाणी सहज-स्वाभाविक है।

* सरकारी अकादमियां रै काम-काज, रीति-नीति अर योगदान विषयक आपरो अनुभव अर आपरा महताऊ विचार. . . .
-म्हैं सन् 1980 में राजस्थान साहित्य अकादमी, उदयपुर संगम (बीकानेर) अर अबार ब्रजभाषा अकादमी में सदस्य हूं। वर्तमान राजस्थानी भाषा साहित्य एवं संस्कृति अकादमी, बीकानेर जको नवो रूप, नवी दीठ, भाषा री एकरूपता, शुद्धता, स्तंभा रो सिरजण, विविधता, उच्च स्तर, रोचकता अर ऊजळे भविष्य री जकी आसा जगाई है, वा विलक्षण, वरेण्य अर बधाईजोग है। प्रथम बार ओ (जीर्णोद्धार) सुधार-संवार-सिणगार दीपायमान हुयो है। अकादमी अध्यक्ष, सचिव, सम्पादक अर सदस्यगण सगळा अभिनंदनीय है।

* आपनैं विरासत में डिंगळ काव्य रो अद्भुत खजानो मिल्यो है, आप ई उणरी सार-संभाळ अर समृद्धि में अणकुंत अवदान दियो है। सवाल ओ है कै आगै इण थाती नैं हस्तांतरण करण सारू डॉ. कविया री कांई त्यारी है-वै सुपात्र अर विश्वासपात्र लोग जकां पर आप भरोसो करो।
-आजकाल री नवी हवा, नवै फैशन नैं देखतां निकट संबंधी तो अेडो दीसै कोयनी अर ट्रकां भरीजै इतरी हथरादू, उतारो कियोड़ी कॉपियां, रजिस्टर, प्राचीन ग्रंथ, विशिष्ट पत्राचारां री फाइलां, काव्यपाठ अर टेलीफिल्मां री कैसेट्स, देश-विदेश में लियोड़ा चित्र, अणछपिया आलेख इत्याद रो बेतरतीब ढेर है। शोध-संस्थानां में साहित्यिक सोच खतम-सी लागै। राजस्थान प्राच्य विद्या प्रतिष्ठान में ई सारी सामग्री कियां सौंपी जावै, बठै तो पांडुलिपि पढणै अर फोटोप्रति करावणी ई मुसकिल है।

* राजस्थानी भाषा री संवैधानिक मान्यता रै मुदै पर आपरी राय. . . .
-मान्यता रो मुद्दो केन्द्रीय सरकार सूं जुड्योड़ो है। मान्यता रै अभाव रो प्रभाव पत्र-पत्रिकावां अर राजस्थानी साहित्य रै पाठकां री संख्या अर सुरुचि पर पड़तो लखावै। आज राजस्थानी रै नाम सूं प्रचार पावणियां री संख्या तो बधै है पण भाषा री निकेवळी खूबियां नैं मंच माथै सवाल-जवाब में पारंगत साधकां री कमी लखावै। सगळा विषयां रो माध्यम राजस्थानी होसी, उण बगत सत्ताधीसां रै सांम्ही प्रतिवेदन देवतां मूंडो कैमरै कांनी करणिया राजनीतिबाज चापळ जावैला। दुख इण बात रो है कै आज फायदै री बात तो सब जाणै है, पण कायदै री बात विरळा ईज जाणै। मान्यता रो प्रयास जनजुड़ाव अर राजनीतिक दखल रो विषय है, इणरा प्रयास होवणा चाइजै। मायड़भाषा नैं मान्यता मिल्यां आपणी संस्कृति अर साहित्य री सांवठी विरासत री अंवेर रो संकट टळेला अर नवी पीढी री नूरवाणी में निखार आवैला। आज राजस्थानी री सगळी विधावां में साहित्य-रचना री बधोतरी अर निखार दीपतो लखावै। साहित्यकारां सूं ओ ईज कैवणो है कै मान्यता रो मुद्दो ऊपर बतायै लोगां पर छोडनै मां सारदा री आराधना अर साधना रो लक्ष्य धारियां जस री जोत तर-तर दीपायमान लखावसी। उदयराजजी ऊजळ री आ बात ई अंगेजणी जरूरी है। मेळ में मूंगारथ व्है, अमेळ में ईरखा-भाव। उदयराजजी ऊजळ कृत दोय दूहा पढणजोग है :

मन स्वारथ अभिमान सूं, करै बिगाड़ो केक।
डिंगळ बणग्या डाकटर, लिख-लिख हिन्दी लेख।।
डिंगळ-पिंगळ दोय, आंख धरा उतराद री।
हांणी एकण होय, दिस कांणी व्है देखतां।।

* कांई कारण है कै डिंगळ नै पिंगळ री इतरी रचनावां लोगां नैं कंठस्थ है अर आज री अछंदी कविता खुद कवि नैं ई याद कोनी।
-इण रो सीधो कारण ओ ईज है कै कंठै तो कवितावां हुवै, भाषण कै वारता नीं। इणरै उत्तर में म्हारी ‘कविता पंचक’ रचना रा दूहा उचित रैसी :

भाषण ज्यूं आखर भणै, रुचै न सुणियां रंच।
नित कविता रै नाम सूं, मिनख अड़थड़ै मंच।।
आजकाल कविता इसी, नी लय तुक अनुप्रास।
माडै पुरसै मोकळी, (जद) खारी लागै खास।।
कह बिहरावै हर कड़ी, बिना माप रा बैण।
सुण्यां किणी रै सिर-दरद, नींद किणी रै नैण।।

संस्कृत में कविता री संक्षेप परिभाषा है-‘या कविता सा कंठगता‘।

रचनावां री बानगी (शीर्षक माथे क्लिक करो)

डॉ. कविया रै प्रकाशित शोध-पत्रां री सूची

राजस्थानी भाषा में प्रकाशित शोध-पत्र
1. मातृभाषा में शिक्षण अर राजस्थानी जेएनवी वि. वि. जोधपुर 1967
2. राजस्थानी भाषा रै सवाल ललकार 1967
3. राजस्थानी भाषा री विशेषतावां लाडेसर 1968
4. लारला पच्चीस बरसां में डिंगळ काव्य जाणकारी 1968
5. चौमासै रौ चाव जो. वि. वि. पत्रिका 1970
6. करसां रौ करणधार : बलदेवराम मिर्धा स्मारिका 1977
7. डिंगळ कवि देवकरण इन्दोकली चारण साहित्य 1977
8. भक्तकवि अलूजी कविया जागती जोत (नवम्बर) 1981
9. भक्त कवि ईसरदासजी रा अज्ञात ग्रंथ जागती जोत (मई) 1982
10. पश्चिमी राजस्थान रा चारण संत कवि चितारणी 1982
11. राजस्थान रा तीज तिंवार माणक (अप्रेल) 1982
12. महात्मा ईसरदासजी माणक (जून) 1982
13. राज. में साहित्यकार सम्मान री परंपरा माणक (फरवरी) 1983
14. डिंगळ गीतां रौ सांस्कृतिक महत्व जो. वि. वि. पत्रिका 1983
15. राजस्थानी साहित्य में वीर रस माणक (जनवरी) 1984
16. सीतारामजी माटसाब : जूनी यादां जागतीजोत (दिसम्बर) 1987
17. जोधांणा रौ सपूत कानसिंह परिहार अभि. ग्रंथ 1989
18. सांस्कृतिक राजस्थान माणक (अगस्त-सितम्बर) 1989
19. राजस्थानी साहित्य में रांमकथा माणक 1992
20. प्रिथीराज राठौड़ अर डिंगळ गीत वैचारिकी 1993
21. राजस्थानी संस्कृति री ओळखांण माहेश्वरी स्मारिका 1994
22. बाला सतीमाता रूपकंवर क्षत्रिय दर्शन 1995
23. रंग-रंगीलै राजस्थान री संस्कृति माणक (अप्रेल) 1997
24. प्रेम अर प्रकृति रौ पारंगत कवि डॉ नारायणसिंह भाटी जागती जोत (अप्रेल) 2004
हिन्दी भाषा में प्रकाशित शोध-पत्र
1. सम्पत्ति का संप्रभुत्व प्रेरणा 1959
2. कविवर नाथूदानजी बारहठ प्रेरणा 1959
3. डिंगल में अफीमची आलोचना प्रेरणा 1961
4. आदर्श परम्परा के अवशेष अभयदूत 1962
5. गोविन्द विलास ग्रन्थ; एक विवेचन प्रेरणा 1964
6. महाकवि सूर्यमल्ल मिश्रण और निराला के वीरकाव्य का तुलनात्मक अध्ययन जोधपुर विश्वविद्यालय पत्रिका 1958
7. पी. एन. श्रीवास्तव के काव्य का मूल्यांकन ललकार 1968
8. भारतीय संस्कृति और डिंगल साहित्य संस्कृति प्रवाह 1969
9. मोतीसर जाति और उसका साहित्य राजस्थान अनुशीलन 1970
10. राजस्थान के जीवन और साहित्य का सौष्ठव जेएनवी वि. वि. पत्रिका 1970
11. राजस्थानी लोक साहित्य की विशेषताएं चेतन प्रहरी 1970
12. सूरज प्रकाश ग्रन्य; एक विवेचन तरुण राजस्थान 1970
13. विद्यार्थी और विद्रोह तरुण-शक्ति 1973
14. चारणों की कर्त्तव्यनिष्ठा और प्रतिष्ठा चारण साहित्य (अंक-1) 1977
15. डिंगल काव्य में गांधी वर्णन चारण साहित्य (अंक-2) 1977
16. राजस्थानी मर्सिया काव्य चारण साहित्य (अंक-3) 1977
17. राजस्थानी रामभक्ति-काव्य चारण साहित्य (अंक-4) 1977
18. डिंगल साहित्य में ऊर्जस्वी जीवन कर्मठ राजस्थान 1981
19. डिंगल शब्द की सही व्युत्पत्ति कर्मठ राजस्थान 1981
20. डिंगल काव्य में शोध एवं श्रृंगार का समन्वय वरदा 1982
21. मीरां की भक्ति साधना वरदा 1985
22. राजभाषा के लिए हिंदी ही क्यों? जिंकवाणी (जनवरी) 1985
23. रामनाथ कविया का एक पत्र वरदा (अप्रेल-जून) 1985
24. मारवाड़ के चारणों का ब्रजभाषा काव्य में योगदान ब्रज अरु मारवाड़ (स्मारिका) 1986
25. डिंगल काव्य में श्री करनी महिमा श्री करणी षटशती 1987
26. महाकवि दुरसा आढ़ा और उनकी अज्ञात भक्ति रचनाएं विश्वंभरा (जनवरी-जून) 1987
27. डिंगल भाषा में नाथ साहित्य नाथवाणी (जु.-दिस. ) 1988
28. गौरीशंकर ओझा का एक ऐतिहासिक पत्र वरदा (जुलाई-दिसम्बर) 1988
29. डिंगल में संवाद काव्यों की परम्परा वरदा (जुलाई-दिसम्बर) 1989
30. मोडजी आशिया की अज्ञात रचनाएं वरदा (अप्रेल-जून) 1990
31. दुरसा आढ़ा संबंधी भ्रामक धारणाएं एवं उनका निराकरण वरदा (अप्रेल-सितम्बर) 1991
32. मारवाड़ के सपूत जगदीश सिंह गहलोत राजस्थान इतिहास रत्नाकर 1991
33. डिंगल काव्य में वीर दुर्गादास मरु भारती (जुलाई) 1991
34. महाराजा मानसिंह के राज्याश्रित कवियों का राजस्थानी काव्य को योगदान स्मृति-ग्रंथ 1991
35. चारण-क्षत्रिय संबंधों के छप्पय राजपूत एकता (जुलाई) 2002
36. मेहा वीठू रचित राय रूपग राणा उदैसिंहजी नूं वरदा (अक्टूबर) 2002
37. कुचामन ठिकाने की खूबियां राजपूत एकता (फरवरी) 2003
38. महाराजा मानसिंह की शरणागत वत्सलता राजपूत एकता (जुलाई) 2004
39. भक्तकवि ईसरदास बोगसा कृत सवैया विश्वम्भरा (जुलाई) 2004
40. स्मृतिशेष संत श्री हेतमरामजी महाराज स्मारिका 2005
41. डॉ. गंगासिंह के काव्य में सुभाषित एवं संवेदना स्मारिका 2005
42. महाकवि तरुण की काव्य साधना तरुण का काव्य संसार 1994
ब्रजभाषा में प्रकाशित शोध-पत्र
1. मारवाड़ के चारणन कौ ब्रजभाषा काव्य ब्रजमंडल-स्मारिका 1986
2. मरुभाषा कौ स्वातंत्र्योत्तर अज्ञात ब्रजभाषा काव्य ब्रज शतदल 1991
3. ब्रजभाषा कौ मानक रूप ब्रज शतदल 1991
4. जनचेतना के कवि : जसकरण खिड़िया ब्रजभाषा साहित्यकार दरपन 1994
5. काव्यमय पत्रन में ठा. जसकरण खिड़िया ब्रजभाषा साहित्यकार दरपन 1994
6. कवि ईसरदास का सर्वप्रथम ब्रजभाषा काव्य ब्रज शतदल 1999
7. मेड़तणी मीरां : विषपान के प्रमान ब्रज शतदल (जनवरी) 2001
8. दूध कौ रंग लाल हौ ब्रज शतदल लघु नीतिकथा 2003
डॉ. कविया नैं मिल्योड़ा पुरस्कारां री विगत
  • राजस्थान साहित्य अकादमी उदयपुर रो राजस्थानी पद्य पुरस्कार (1982)
  • राजस्थानी ग्रेजुएट्‌स एसोसिएशन मुम्बई रो पुरस्कार (1984)
  • भारतीय भाषा परिषद् कलकत्ता रो पुरस्कार (1985)
  • राजस्थान रत्नाकर, नई दिल्ली रो महेन्द्र जाजोदिया पुरस्कार (1986)
  • राज. भा. सा. एवं संस्कृति अकादमी, बीकानेर रो सूर्यमल्ल मीसण शिखर पुरस्कार (1986)
  • महाराणा मेवाड़ फाउंडेशन उदयपुर रो महाराणा कुंभा पुरस्कार (1993)
  • श्री द्वारका सेवानिधि ट्रस्ट जयपुर रो राजस्थानी पुरस्कार (1993)
  • साहित्य अकादमी, नई दिल्ली रो राजस्थानी अनुवाद पुरस्कार (1993)
  • साहित्य समिति, बिसाऊ रो राजस्थानी साहित्य पुरस्कार (1994)
  • घनश्यामदास सराफ साहित्य पुरस्कार, मुंबई (2003)
  • फूलचंद बांठिया पुरस्कार, बीकानेर (2003)
  • लखोटिया पुरस्कार, नई दिल्ली (2005)
  • कमला गोइन्का राजस्थानी साहित्य पुरस्कार, मुंबई (2005)
  • पद्मश्री कागबापू ट्रस्ट, गुजरात रो कविश्री कागबापू लोकसाहित्य अेवार्ड (2013)
  • राजस्थानी भा. सा. एवं सं. अकादमी रो महाकवि पृथ्वीराज राठौड़ पुरस्कार (2013)
शैक्षणिक पद अर अन्य दायित्व
  • जोधुपर विश्वविद्यालय में विभागाध्यक्ष एवं सीनेट एकेडमिक काउसिंल सदस्य
  • रिसर्च बोर्ड सदस्य एवं राजस्थानी पाठ्‌यक्रम समिति संयोजक
  • राष्ट्रीय सेवा योजना रा कार्यक्रम अधिकारी
  • राजस्थान साहित्य अकादमी उदयपुर-सरस्वती सभा रा सदस्य
  • राजस्थानी भाषा, साहित्य एवं संस्कृति अकादमी, बीकानेर-कार्यसमिति सदस्य
  • विश्वविद्यालयां अर राज. लोक सेवा आयोग री राजस्थानी पाठयक्रम समिति रा सदस्य
  • आकाशवाणी केन्द्र जोधपुर-कार्यक्रम सलाहकार समिति सदस्य
  • अपभ्रंश साहित्य अकादमी, जयपुर री एकेडेमिक काउंसिल रा मनोनीत सदस्य
  • चौपासनी शिक्षा समिति-कार्यकारिणी सदस्य।
  • विश्वविद्यालय में हिंदी अर राजस्थानी रा मान्यता प्राप्त शोध-निर्देशक।
  • मरुभारती, परम्परा, वरदा, विश्वम्भरा आद पत्रिकावां रा परामर्श-मंडल सदस्य
  • राजस्थान ब्रजभाषा अकादमी, जयपुर री सामान्य सभा रा सदस्य
राष्ट्रीय अर अंतरराष्ट्रीय कोशां में डॉ. कविया
  • Who’s who in the world (हू’ज हू इन दा वर्ल्ड)
  • Asia International (एशिया इंटरनेशनल)
  • Dictionary of International Biography (डिक्शनरी ऑफ इंटरनेशनल बायोग्राफी)
  • Indo-European Who’s who (इंडो-योरोपियन हू’ज हू)
  • Who’s who in Asia (हू’ज हू इन एशिया)
  • Learned India (लर्नेड इंडिया)
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~~विनिबंध सम्पादन: डॉ. गजादान चारण ‘शक्तिसुत’

प्रकाशक: राजस्थानी भाषा साहित्य एवं संस्कृति अकादमी, बीकानेर

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2 comments

  • Pushpendra Singh Jugtawat

    औ विनिबंध आद्योपांत पढण री मन में धारी है। गजादान साहब नै घणा रंग नै साधुवाद।

  • जगदीश मेघवाल

    कवी शक्तीदान कविता जी नै शत् शत् निवणं

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