शारदा स्तुति

वीण धरण वंदै वसू, श्वेत वसन हँस साज।
हरण कुमत नित हेतवां, करण मँगळ सत काज।।
वीणा धर वांणी विमळ, वांणी तूं वरदाय।
बुद्ध बगसांणी वीदगां, सज हँस आंणी साय।।
।।रोमकंद।।
उर दैण उगत्तिय जोड़ जुगत्तिय, दांन सुदत्तिय बांण दहै।
कवि कीरत कथ्थिय साज सुमत्तिय, लम्ब सूं हत्थिय भीर लहै।
कर वीणबजत्तिय काज करत्तिय, पांण धरत्तिय दास परै।
सिमरू सुरसत्तिय साय सगत्तिय, हंस चढत्तिय दोस हरै।।१
शुकळा पट धारण हंस सवारण, वाणिय हारण तूं विपदा।
घट ग्यांन बधारण औगण गारण, बात सुधारण तूं वरदा।
पह संत पुकारण आय उबारण, तुंही उतारण पार तरै।
सिमरू सुरसत्तिय साय सगत्तिय, हंस चढत्तिय दोस हरै।।२
गुण ऊजळ गातिय बुद्ध बधातिय, मात जगातिय हूंस मनां।
इम देर न लातिय आतिय आतुर, टेर सुणातिय पात तनां।
भव बीह भगातिय तूं जग भातिय, सांझ प्रभातिय तो सिमरै।
सिमरू सुरसत्तिय साय सगत्तिय, हंस चढत्तिय दोस हरै।।३
नरपाळ तनां सुरपाळ नमै नित, वाहर ज्यां प्रतपाळ वणै।
अघटाळ सचाळ सँभाळ करै इम, जाळ पँपाळ तूं मेट जणै़।
मुगताहळ माळ मराळ चढै मुद, खाळ खळां दळ क्रोध खरै।
सिमरू सुरसत्तिय साय सगत्तिय, हंस चढत्तिय दोस हरै।।४
दुरबुद्ध विनासण रीझण दासण, वेद पुरातणमे वरणी।
कवि कंठ निवासण हे कमलासण, काव्य प्रकासण तूं करणी।
अलँकार विकासण पे अनुसासण, विश्व हुलासण ग्रंथ वरै।
सिमरू सुरसत्तिय साय सगत्तिय, हंस चढत्तिय दोस हरै।।५
ब्रहमंड मँडाणिय तूं ब्रहमांणिय, वांणिय वाचण तूं विमळा।
पुस्तक प्रमांणिय ले निज पांणिय, कीध सुरांणिय बोत कळा।
गह राग रचांणिय गायक गाणिय, साच दिराणिय सीख सिरै।
सिमरू सुरसत्तिय साय सगत्तिय, हंस चढत्तिय दोस हरै।।६
वर दैण तुंही सुर दैण तुंही वळ, सैवत सध्धर पाव सबै।
पख जाहर तोर हुवै हर पूरण, जांमण निज्जर भाळ जबै
गुण गाय गिरध्धर एक गिर धुर, ध्यांन कवेसर तूझ धरै।
सिमरू सुरसत्तिय साय सगत्तिय, हंस चढत्तिय दोस हरै।।७
।।कवत्त कल़स रो।।
श्वेताम्बर सिंणगार वीण सुर मधुर वजावै
कर पुस्तक किरपाळ बाळ विद्वान बणावै
मुगताहळ गळ माळ मात करुणा ळी मोहै
पदमासण प्रतपाळ सदा सचियाळी सोहै
दुरबुद्ध हरण करणी दया धीरट वाहण धारणी
गीधियो सरण तोरी गिरा सको काज नित सारणी
~~गिरधर दान रतनू “दासोड़ी”