🌹शारदा स्तुति🌹- कवि स्व. अजयदान जी रोहडिया कृत

🌸दोहा🌸
किंकर सिर पर कमल कर, कर के विघ्न विदार।
करत स्तुति कर जोर कर, सुरसती कर स्वीकार।।१
🌸छंद रेणंकी🌸
निरमल नव इन्दु बदन विलसत भल, द्रग खंजन मृग मद दलितम्।
कुम कुम वर भाल बिन्दु कल भ्राजत, तन चंदन चरचित पुनितम्।
झल़कत अरू झल़ल़ झल़ल़ चल लोलक, लसत सु श्रवण ललाम परम्।
शारद कर प्रदत सुक्ति यह सुखकर, किंकर पर नित महर करम्।।१
दमकत सिर मुकुट दिव्य दिनकर सम, मन मोहिनि उर माल लसे।
लख लख रति रम्य रूप जेहि लाजत, तडित विनिन्दित तन विलसे।
तिन पर नित नवल विमल धवलांबर, विविध तरह अरू धरत वरं।
शारद कर प्रदत सुक्ति यह सुखकर, किंकर पर नित महर करम्।।२
सरसत जिहि स्फटिक माल लिय ललितम, तरुण अरुण कर कंज अतिम्।
बिलसत पुनि बीन कलित मन हुलसत, ग्रहित पुस्तकं गहन गतिम्।
जिन कर जस विशद वरद जग व्यापक, प्रणित अमित मति देत परम्।
शारद कर प्रदत सुक्ति यह सुखकर, किंकर पर नित महर करम्।।३
हरषित जिहि चढत हंस पर मनहर, बन निज जन मन महि विहरम्।
सदगति सुख सुमति देत संपति धृति, सुरत करत तिन काज सरम्।
नव नव अरु ज्ञान भरत उर निरमल, निविड अबुधि हर तम निकरम्।
शारद कर प्रदत सुक्ति यह सुखकर, किंकर पर नित महर करम्।।४
सुमिरत जिहि सरव जिनहि सुर -सैनप, सुर-गुरु, सुर-पति सहित शचिम्।
प्रसरित गुन करत रहत सुपुनित नित, श्रुति सु स्मृति अरु शाख शुचिम्।
धनपति पद कंज मंजु मन ध्यावत, धरत ‘रू ध्यान त्रिशूल धरं।
शारद कर प्रदत सुक्ति यह सुखकर, किंकर पर नित महर करम्।।५
विनवत वसु अष्ट, वरिष्ठ विनायक, बिमल बिरद जिन जग विदितम् ।
दिनकर नित नमन करत हिमकर नत, धरमराज धर्मिष्ट युतम्।
पुनरपि सह सिद्धि रिद्धि हिलमिल जिन, पुनित चरन मँह आय परम्।
शारद कर प्रदत सुक्ति यह सुखकर, किंकर पर नित महर करम्।।६
अरचन मुनि अमित मुदित मन अनुदिन, षोडस करतम् विधि सहितम्।
पुनि पुनि ॠषियन मिलि पढत स्तवन तव, किन्नर विधाधर कलितम्।
सविनय हिम शुद्ध सिद्ध गण चारण, जयति जननी जय जय उचरम्।
शारद कर प्रदत सुक्ति यह सुखकर, किंकर पर नित महर करम्।।७
परसत नर असुर नाग पद पुहुकर, लहत परम पद सह ललितम्।
बालक नवयुवक वृध्ध ब्रह्मचारी, वानप्रस्थ गृहस्थ युतम्।
मांगत यहि” अजय” मात अनुग्रह कर, मम चित मति कृति कर मधुरम्।
शारद कर प्रदत सुक्ति यह सुखकर, किंकर पर नित महर करम्।।८
🌸कलछप्पय🌸
जय जय सरस्वती जननि, भीम भय भक्त विभंजन।
जय जय सरस्वती जननि, ह्रदय निज जन नित रंजन।
जय जय सरस्वती जननि, कलुष कलि कलह निकंदन।
जय जय सरस्वती जननि, असुर, सुर, नर, मुनि वंदन।
वर बाल ब्रह्मचारिणी विदित, मोद देन मंगल करन।
कर जौरि “अजय”विनवत सही, सुबुधि देहू अशरण शरण।।
~~कवि स्व . अजयदान जी लख दान जी रोहडिया मलावा, सिरोही