गीत झिणकलीराय शीलां माऊ रो

।।दूहा-सोरठा।।
होवै ना होडांह, सगत शीलां री सांपरत।
कीरत धर क़ोडांह, रीझ दिराई रतनुवां।।1
सतवट मारग साज, कुऴवट दीधी कीरती।
इऴ धिन कोडां आज, ऊजऴ रतनू आपसूं।।2
जाहर बातां जोगणी, मारवाड़ धर माड़।
रँग शीलां रखवाऴिया, जोर झिणकली झाड़।।3
।।गीत प्रहास साणोर।।
तूं शंकर रै सदन अवतार ले शंकरी,
पखो नित धार रखवाऴ पातां।
जगत में जाण जयकार मुख जापियो,
साच सुख सार ज्यां दियो सातां।।1
ताकड़ी बहै इम केहरी ताणवां,
सिमरियां भाणवां साय शीलां।
पाणवां शूऴ धर रचै हद प्रवाड़ा,
हाणवां उपाड़ै हियै हीलां।।2
धरा धिन रतनवां मात बण धीहड़ी,
दुरस जग बात आ बहै दीठू।
जोगड़ा साथ गंठजोड़ नै जामणी,
विमऴ जद जात तैं करी बीठू।।3
चाड सुण चढी तूं मदत झट चारणां,
हाड निज होमिया नकू होडां।
गाढधर झिणकली अरिदऴ गंजिया,
कीरती माडधर दीध कोडां।।4
ढाकणियो लोवङी पलै इम ढाकियो,
राखियो लोयणां कोप रातां।
जोय जैसाण रां भऴै नीं झाँकियो,
वीदगां भाखियो सुजस बातां।।5
गीत कथ कीरती रखण थिर गहरता,
डीकरां जीत नै धरा दीधी।
रूठ नै रुऴायो राव रणजीत नैं,
साख आदीत नैं लेय सीधी।।6
झिणकली तणा रखवाऴिया झाडखा,
गरब तैं गाऴिया विघनगारां।
वीदगां तणा धिन विमल़ दिन वाऴिया।
टाऴिया विघन चढ जमर तारां।।7
अमर अखियात आ इऴा रै ऊपरै,
गढवियां गुमर धिन बात गाढी।
सुमर कथ अंजसियो पी’र नै सासरो,
चमर कर लाख -नव सिंह चाढी।।8
खोखर खऴ खपाया उणिपुऴ खीझ नै,
कोप कुऴ केविया शीश कीधो।
चावऴ तैं चढाया वंश इऴ चारणां,
दोयणां गेह में ताप दीधो।।9
वसुधर ऊजऴी जात सह वीसोतर,
वऴोवऴ ख्यात री बहै बातां।
मात तन होम नै सांसणां मंडिया,
जाय ना जिकै ऐ जुगां जातां।।10
भणै कवि गीधियो गीत ओ भाव सूं,
चाव सूं यादकर तनै चंडी।
तुंही मम उबारै सोच अर ताव सूं,
जात री आब रख आभ झंडी।।11
~~गिरधरदान रतनू “दासोड़ी”