शिव वंदना प्रबीन सागर से

।।छंद त्रिभंगी।।
गिरिजा के स्वामी, अंतरजामी, निर्मल नामी, सुखकारी।
लाई रति अंगा, नाचत चंगा, धरी उमंगा, अति भारी।
सुख संपति दायक, पूजन लायक, भूतहि नायक, भयहारी।
तनु पें गजखाला, ओढ बिसाला, मुंडनमाला, गलहारी।।१
गोरे तन भारी, विभूति धारी, हर्ष अपारी, हियधारी।
विग्रह करि भारी, त्रिपुरा जारी, कीरत भारी, विस्तारी।
भलके ससि भाला, वपु विकराला, विलसत व्याला, भयहारी।
नेहे नित अंगा, रहतहि नंगा, पीवत भंगा, अति भारी।।२
अंधक के नाशन, उमा विलासन, मरघट आसन, नितधारी।
तपसीतन धारन, अधम उधारन, प्रेम पसारन, सबकारी।
कीटादिक केते, प्रानीजेते, पोषक तेते, मुदधारी।
वाहन वृषधारी, करुनाकारी, जटा अपारी, सिरधारी।।३
रतिनाथ प्रजारे, द्रगकी झारे, क्रोध अपारे, मनधारी।
हरनोटा चाहक, त्रिपुरादाहक, नेह निबाहक, नरनारी।
लक्ष्मीदिक सिद्धि, पुनि नव निद्धि, आदि रूद्धि, अभिकारी।
हठयोग प्रकासी, विघन विनासी, जन अभिलाषी, सुखकारी।।४
रजताचल वासी, तंत्र प्रकासी, ह्रदय हुलासी, अघहारी।
वरदान दिवैया, गंग धरैया, हूक हरैया, अतिभारी।
नाथन के नाथं, जोरि हाथं, सातो साथं, रतिलारी।
यह अरज उचारी, दिल सो धारी, लहौ उगारी, करधारी।।५
~~प्रबीन सागर