शिव वंदना

।।छंद – नाराच।।
तरंग गंग मस्तकै:! सुपूजितं समस्तकै:!
पिनाक चाप हस्तकै:! पुनश्च पाप ध्वस्तकै:!
गले भुजंग, भस्म अंग, आशुतोष शंकरं!
नमामि नामि! त्वां भजामि! स्वामि -पार्वतीं हरं!! १

नटाधिराज नायकं! भवं !पिता विनायकं!
पिशाच भूत पायकं! जगत्पतिं विधायकं!
महाकपालि!अस्थिमालि! शूलपाणि सुंदरं!!
नमामि नामि! त्वां भजामि! स्वामि पार्वतीं हरं!! २

स्मशानभस्मधारिणे! हिमालये विहारिणे!
कपर्दि! पाप हारिणे! मदांध दैत्य मारिणे!!
निवारकं मनोमलं स्मरारि देव सुंदरं!
नमामि! नामि! त्वां भजामि! स्वामि पार्वतीं हरं!! ३

सुकंठ व्यालराज माल! नैन लाल लाल है!
सुरम्य बाल चंद्रभाल औ जटा विशाल है!
मृगेन्द्र खाल आसनं कपाल धारकं करं!
नमामि! नामि! त्वां भजामि! स्वामि पार्वतीं हरं!! ४

फुलात गाल! ले डमाल! डाक ताल तांडवं!
त्रिलोक पालकं कराल काल हे शिवं भवं!
कृपाल! तू दयाल बालपालकं दिगंबरं!
नमामि! नामि! त्वां भजामि! स्वामि पार्वतीं हरं!! ५

उमाकलत्र! पंचवक्त्र! बिल्वपत्र रीझिए!
सर्वत्र अत्र तत्र हो कुपात्र हुॅं न खीझिए!
कृपा सुछत्र दास पे धरो विभुं गुणाकरं!
नमामि! नामि! त्वां भजामि! स्वामि पार्वतीं हरं!! ६

महेश! व्योमकेश!शर्व ! रूद्र! चारूविक्रमं!
अनंत! वामदेव! नीलकंठ! भीम! भैरवं!
जगद्गुरुं वृषांक! उग्र! वीरभद्र! इश्वरं!
नमामि! नामि! त्वां भजामि! स्वामि पार्वतीं हरं!! ७

अहो उदार! वेद सार! धार घंटिका-कटिम्!
मनोजमार! ॐकार! निर्विकार! धूर्जटी!
उबारिये ! अनीश्वरं! पशुंपतिं फणिधरं!
नमामि! नामि! त्वां भजामि! स्वामि पार्वतीं हरं!! ८

सुसेवितं सपादलक्ष सिद्ध यक्ष किन्नऱं!
स्थिता सदाशिवासुवक्षकक्ष हे चिदंबरं!
विरूप- अक्ष है “नपो” समक्ष रक्ष किंकरं!
नमामि! नामि! त्वां भजामि! स्वामि-पार्वतीं हरं!! ९

~~©नरपत “वैतालिक”

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One comment

  • ओमपाल सिंह आसिया

    छंद नाराच शिव स्तुति आपकी एक अद्भुत और अद्वितीय रचना है । साधुवाद आपका नरपत सा आसिया खाण । आपके उज्जवल भविष्य की कामना करता हूँ ।

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