श्री हरि काव्याष्टक

छंद त्रिभंगी

सुंदर छबि प्यारी, त्रिभुवन न्यारी, अनँत अपारी, उपकारी|
अगणित नरनारी, शरण उगारी, भव दुखवारी, ऊतारी|
सिखवत बुधि सारी, विषय बिसारी, रटत उचारी, त्रिपुरारी|
जय हरि वृतधारी, जन दुःख हारी, अतिसुखकारी, अवतारी||१

निज जन सुख दाता, सब जग त्राता, रहत विधाता, गुणगाता|
समरत सुखशाता, विमल विख्याता, भक्तिमाता, धमताता|
रति पति मद हाता, रंग निज राता, ध्यान लगाता, कामारी|
जय हरि वृतधारी, जन दुःख हारी, अतिसुखकारी, अवतारी||२

समरत जेहि श्वेता, समुह समेता, सुक्रत निकेता, उर्धरेता|
हरिपद अति हेता, चैतन चेता, विमल अभेता, ब्रह्मवेता|
जेहि अनँत अधेता, पार न लेता, त्रिभुवन में ता, गति न्यारी|
जय हरि वृतधारी, जन दुःख हारी, अतिसुखकारी, अवतारी||३

सुख संपत दरिया, अति रंग भरिया, पद चित धरिया, उद्धरिया|
कलि सतजुग करिया, बहु दुख हरिया, जन मन ठरिया, जाठरिया|
सब तजि अनुसरिया, सोहि उगरिया, विषय बिसरिया, संसारी|
जय हरि वृतधारी, जन दुःख हारी, अतिसुखकारी, अवतारी||४

जय चैतनधामी, सब जग स्वामी, भजन अकामी, शिर नामी|
जिह रीत उदामी, लखि निज खामी, नासत वामी, भय पामी|
सहजानंद स्वामी, अंतरजामी, अगणित नामी, उपकारी|
जय हरि वृतधारी, जन दुःख हारी, अतिसुखकारी, अवतारी||५

मेटण भव मरणा, अभरण भरणा, असरण सरणा, सुखकरणा|
दुख दुक्रीत हरणा, ब्रहिजन वरणा, जगत उधरणा, अति जरणा|
जन उर छबि धरणा, ग्यान निझरणा, लखि द्रग करूणा, नरनारी|
जय हरि वृतधारी, जन दुःख हारी, अतिसुखकारी, अवतारी||६

जय घरम के नंदा, कट भव फंदा, वृषकुल चंदा, गोविंदा|
केवळ सुख कंदा, मुख अरविंदा, न लहत गंदा, नर मंदा|
मुनिवर समरंदा, हरख भरंदा, भ्रम निकंदा, कृत भारी|
जय हरि वृतधारी, जन दुःख हारी, अतिसुखकारी, अवतारी||७

नटवर नवरंगी, चलत त्रिभंगी, ललित कलंगी, शिर चंगी|
तनु लहर तरंगी, प्रेम प्रसंगी, अचल अभंगी, ऊमंगी|
कलि जन कूसंगी, किय सतरंगी, मुनिब्रह्मरंगी, बलिहारी|
जय हरि वृतधारी, जन दुःख हारी, अतिसुखकारी, अवतारी||८

कलस छप्पय

जय जय हरि दिनेश, वेश नटवर प्रिय बानी|
भक्ति धर्म कुमार, पार कीन्है भव प्रानी|
व्रत नैष्ठिक महावीर, धीर जन चरन उपासे|
प्रति दिन अधिक प्रताप, दरस जिह पाप बिनासे|
सुख सिंधु बंधु दीनन सदा, लीजै चरन लगायके|
घनश्याम हरि निश दिन बसो, ब्रह्ममुनि उर आयके||

~~सदगुरू ब्रह्मानंद स्वामी कृत

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