श्री करनी सवैया – अज्ञात कवि

जानि सके न बड़े मुनि वृन्द बखानि सके न गिरा गुन ग्वैरहि ।
वेद बताय सके न यथा विध टारि टरै न सनातन स्वैरहि ।
आनंद के घन मे चमकै दमकै जमकै चपला जिम च्वैरहि ।
धिन्न है तो महिमा जगदम्ब निरंजन के बिच अंजन व्हैरहि।।१।।

सुन मो मन तेरि न शक्ति इती जुपै ध्यान कबू दृढ व्हे धरिहै।
नहि बुद्धि को काम जो सोचे जिन्हे, कवि ता गुणगान कहा करिहै।
वह ज्ञान हुते पर राजति है नहि कान कुभावन के करि हैं।
बनि आयो सोई अब भेंट कियो यह जानि कृपा करनी करि हैं।।2।।

वेद पुराण सदा निगमागम गावत है तुमरो यश माई।
शंभु गणेश सुरेश धनेश धरैं तव ध्यान समाधि लगाई।
और जो नारद शारद शेष नहीं महिमा तुमरी लखि पाई।
चाहत है भकती तव दासिय देहु कृपा करि देवल जाई।।3।।

किंदरनी दरनी अरनी चख पें झरनी झरनी झरनी ।
गोधरनी धरनी अध ऊरध मो वरनी वरनी वरनी।
खेचरनी चरनी थिरनी तिथ है तरनी तरनी तरनी।
भय हरनी हरनी जन संकट श्री करनी करनी करनी।।4।।
~अज्ञात

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