श्री करनी विजय स्तुति – श्री जोगीदान जी कविया सेवापुरा
।।छन्द त्रोटक।।
करणी तव पुत्र प्रणाम करै
धरि मस्तक पावन ध्यान धरै
कलिकाल महाविकराल समै
बिन आश्रय हा तव बाल भ्रमै।१।
हम छोड़ चुके अब इष्ट हहा,
रिपु घोर अरष्टि अनिष्ट रहा।
पथ भ्रष्ट हुये जग माँहि फिरैं
घन आपत्ति के नभ भाग्य घिरैं।२।
शुभ मार्ग हमें नहिं सूझत है,
मन माहिं अत्यंत अमूझत है
अनुशासन शासन आज उठै,
नक साँस न आवत साँस घुटै।३।
महमाय महा मरजाद मिटै
सकती तव वाहन नोज सिटै
करणी अब आय उबैल करो,
कर तोक त्रिशूल को शूल हरो।४।
छछि के तन तापन छोड़ छुटै,
जम रूप अमीन जमीन जुटै
कुल चारण प्राण बचाव करो
हरनी दुख को तन कष्ट हरो।५।
सुनके विनती सुसहायक हो ,
तन लाज तुम्हें तनदायक हो
जगदम्ब तुम्हें कर जोड़त हैं
सुख में तुमसे मुख मोड़त हैं।६।
भय पाय ज्यों खेेलत बाल भगै
लपके जननी दिशि गोद लगै
लखिये जो दशा हम लोगन की,
सुख भोगन की दुख रोगन की।७।
महमाय धिनो तुम माय रहो,
कोई पूत कपूत सपूत कहो
करणी लज है तव ओयण की,
दुखदायक मेटण दोयण की।८।
अति नास्तिक सिंधु भर्यो उर में
भ्रम भूल कुमोज भयातुर में
भयदायक दीरघ भोर भमै
हिय कष्ट प्रदायक खेद हमै।९।
जल जन्तु भयंकर रूप जुटै
प्रलयंकर पौन हहा प्रगटै
अति तुंग तरंग तुफान अड़ै
उत्पात अनेक उठै उखड़ै।१०।
अरि काम रु क्रोध रु मोह अभी
सिमटे तम रूप समीप सभी
मद मत्सर मक्र अड़े अकडै
प्रजलै़ बड़वानल़ ताप पड़े।११।
मन केवट मस्तर हौ मचलै
हिय व्याकुलता वस जीव हलै
करणी तव भक्ति कृपा करदे
हरणी दुख दीरघ को हरदे।१२।
अवनी उतपातन तैं उबरै
तरनी कुल चारण सिंधु तरै
दुरगा जग में अति उन्नति दे
गिरजा सुरगापुर में गति दे।१३।
कुछ और आधार नहीं करनी
तन की मझधार पड़ी तरनी
बहु कीरति वेदन में बरनी
दुख दीरघ दारिद की दरनी।१४।
हिय की सब व्याकुलता हरनी
करि कोप कुरोग दफै करनी
धर शोभित है शिव की घरनी
खमया-उमया रुखमा करनी।१५।
धरनी त्रयलोक तुही धरनी
भल भक्ति सुझाव हिये भरनी
झगड़ू पै दया झरना झरनी
करनी जय हो जय हो करनी।१६।
प्रिय पुत्र सुपाठक पाठ पढैं
चित गंग उमंग तरंग चढैं
करनी सब सिध्दि सुआकर दे
करनी शुभ की करनी कर दै।१७।
करनी सब दोष क्षमा करदे
वरदा जगदम्ब हमें वर दे
कविया कवि जोगियदान कहै
दिन रैन उमा तव दास रहै।१८।
~~श्री जोगीदान जी कविया सेवापुरा