श्री राम वंदना

।।दोहा।।
राम रतन धन साँच धन, ज़र बीजा सब झूट।
गरथ रहै जिण गांठ औ, उण रे मौज अखूट।।१
।।छंद-मधुभार।।
करुणा निकेत, हरि भगत हेत।
अद्वैत-द्वैत, सुर गण समेत।।१
हरि! वंश हंस। अवतरित अंश।
नाशन नृशंश। दशकंध ध्वंश।।२
वर प्रकट वंश! ईक्षवांकु अंश!
पृथ्वी प्रशंश! वरदावतंश।।३
रघुनाथ राम। लोचन ललाम।
कोटीश काम। मनहर प्रणाम।।४
मुखहास मंद। कारुण्य कंद।
दशरथ सुनंद। दुखहरण द्वंद।।५
वर वदन चंद। केहरी स्कंध।
जय जगतवंद्य। छल हरण छदं।।६
प्रभु वसन पीत। पावन पुनीत।
तूं भगत मीत। किम कथूं क्रीत।।७
विद्रुम प्रवाल, मणि-कंठ माल।
राजत रसाल, भल जटाभाल।।८
प्रभु प्रणतपाल। दुखहर दयाल।
निरखत निहाल। करियो कृपाल।।९
सरसिज सुश्याम। तन है तमाम।
प्रभु पाहिमाम। मोहि राम राम।।१०
नित भजत नाम। नर हो निकाम।
तिन के तमाम। करता सुकाम।।११
अभिराम आप। छबि अमित छाप।।
पुनि हरण पाप!, अवधेश आप!!१२
अगणित अनंग। युत आप अंग।
सिय लखन संग। रघुराय रंग।।१३
विपिनं अवास, सुर संत खास।
तूं असुर त्रास, सिय हिव निवास।।१४
सर चाप संग, अभिराम अंग।
भव धनुष भंग, रघुनंद रंग।।१५
नव कंज नैन, मुख मधुर बैन।
सुषमा सु ऐन, सुख सकल दैन।।१६
रमणीय रूप, अतिशय अनूप।
विष्णु स्वरूप, भुवि व्योम भूप।।१७
बाहु प्रलंब!, करुणा कदंब।
सुर सौख्य स्तंभ, ओ!अवध अंब।।१८
घट घडण घाट! निरगुन निराट।
विष्णु विराट! हरि हेत हाट!!१९
राजाधिराज! जगती जहाज।
सुखकर समाज!भय भगत भांज।।२०
मन एकमेव! देवाधिदेव!
अद्भुत अभेव!! श्री राम सेव!!२१
नररूप नाथ!, हरि धनुष हाथ!
गुण-अमित गाथ!, सिय लखन साथ!!२२
भुवि हरण भीर!, गुण निधि गंभीर!
श्यामल शरीर!रणधीर!वीर!!२३
पावन पवित्र! सुभ सच्चरित्र!
मुनि संत मित्र! चित हरण चित्र!!२४
श्रुति शाश्त्र सार!, कौशल कुमार!
धुरि धर्म धार!, अद्भुत! अपार!!२५
प्रिय सिया प्राण!, सुर संत त्राण!
भुवि आप भाण!, सुखमय सुजाण!!२६
गोतीत !गूढ! आनंद अखूट!
मति मोर मूढ!जग सर्व झूठ।।२७
क्रोधित कराल!, कुल दनुज काल!
सुर-शत्रु-शाल! लोचन सुलाल!!२८
शारदा शेष। सुर मुनि सुरेश।
वरणत विशेष। हर पल हमेश।।२९
सुर संत सिद्ध!पूजित प्रसिद्ध!
गति देण गिद्ध!पाहि प्रसीद!!३०
दासानुदास! हनुमत हुलास!
सिय हिव निवास! सुग्रीव खास।।३१
कुंचित सुकेश। वर-मुनि सुवेश।
रामं रमेश!श्री कौशलेश!!३२
आजानुबाहु!शत्रु सुबाहु!
मारीच मार! कौशल कुमार!!३३
त्रय ताप भंज! मुख मधुर कंज।
प्रभु प्रखर पुंज! मुनि मन निकुंज।।३४
मुख पंख मोर। श्यामल सुगौर!
कौशल किशोर!चित लेत चोर!!३५
लोचन सुलोल! कोमल कपोल!
मुख मधुर बोल। अद्भुत अमोल!!३६
त्रिगुणात्मकाय। त्रय-विक्रमाय।
सुर मुनि सहाय। श्री राघवाय।।३७
मन रहत मीन। नित चरण लीन।
दुख हरण दीन। नर रूप लीन।।३८
जानकी जीव। अनुपम अतीव।
श्री राम राम। प्रभु पाहिमाम।।३९
भल लखन भ्रात!जय जगत तात!
गुण नृपत गात! हरि पकर हाथ।।४०
।।कलश छप्पय।।
भय हर! हे सुर भूप, राम वपु श्याम खरारी।
दशरथ सुत दनुजारि, आप नर-तनु अवतारी।
केवट शबरी गीध, त्रिया गौतम ऋषि तारी।
अरज करुं अवधेश, बेर मत कर मम बारी।
कर जोड़ विनय अनुनय करूं, तूं राखै दशरथ तनय।
सुत नरपत नें शरणें सदा, अच्युत हरि दीजो अभय।।
।।दोहा।।
इत उत भटके फुदकता, जग वन चरै विकार।
मन कांचन मृग मारिए, श्री राघव सरकार।।
~~©नरपत आसिया “वैतालिक”