सिद्ध मिलियो सादूऴ रो

ऊदावतां रो नीमाज ठिकाणो चावो। कनै ई पांच-सात कोस माथै कांवऴिया खिड़ियां रो गांम। उठै रा खिड़िया रुघनाथजी सादूऴजी रा मौजीज अर मोतबर मिनख। साहित्य अर संगीत रा प्रेमी तो कऴाकारां रा कद्रदान। कांवऴिया आपरी दातारगी अर उदारता रै पाण चावी रैयी है-
के के अदवा ऊबरै, छिप छिप छांवऴियाह।
आज व्रण में ऊजऴी, कीरत कांवऴियाह।।
इण नीमाज ठिकाणै रा ढोली नरो अर बहादरो गायबी में प्रवीण तो साथै ई ठिकाणै री धणियाप रै कारण करड़ाण ई राखता सो बीजै जोगतै मिनखां नै शुभराज कम ई करता।
रुघजीसा रो अठै इंकातरै-बीजै आवण रो काम पड़तो रैवै। जे बीजै-तीजै नीं आवै तो ठाकर साहब खुद तेड़ायलै।
रुघजी जैड़ा आखरां रा कहणहार बैड़ा ई दिल रा दरियाव।
रावल़ै रै दरिखानै जाजम जमै। राणा(ढोली)आपरी मीठी रागां अर दूहां दुकड़ां सूं सभा रीझावै अर उण मोटमनां रा गीत गावै जिणां नाणै नै हाथ रो मैल मानियो-
अत्थ जिकां दी आपणी, हरख गरीबां हत्थ।
गवरीजै जस गीतड़ा, तांत तणक्कै सत्थ।।
रुघजी ई घोऴ करण में पाछ नीं राखता। रुघजीसा रै प्रभाव रै पाण रुपिया तो लेता पण ठौड़ रा भाटा होवण री ठसक राखता सो उणां री शुभराज बीजी नीं करता!!
राजा मानै सो राणी। रुघजी राणां री इण कमी कानी कोई घणो ध्यान नीं देता। जिणां रो ठाकर उठर आघ करै उठै बापड़ै आं राणां री कांई जनात जको रुघजीसा नै शुभराज नीं करै पण मोटो मिनख ऐड़ी छोटी-मोटी बातां री गिनर नीं करै।
एकर जोग ऐड़ो बणियो कै वि.सं–62 री बखत एकर धराऴ काऴ पड़ियो। लोगां रै दांतै अन्न रो वरगै वैर पड़ग्यो। रावऴै ई कोठार नीठण लागा। ठाकर साहब रंग-राग अर जाजम जमावणी भूलग्या अर राणां नै कह्यो कै-
“सुणोरै ऐड़ै काऴ में थांनै पाऴणा रावऴै रै ई बस री बात नीं है। बाजै माथै पग ऊपड़ै!! कोठै में होवैला तो खेऴी में आवैला सो दूध अर दूआरी दोनूं रैय जावै जको इयां करो थे सगऴा दिस-दिस में रावऴी बैन-बायां रै अठै मांगणी करण जावो। उण सीख सूं टबारो चलावो।”
रावऴो आदेश कुण उलांगै?
ढोली जिता काका-बाबां रा भाई हा जिकै दिस-दिस में बहीर हुया।
सांझ री बखत ऐ दोनूं राणा ई ऊमण-दूमणा ….. री तऴाई री पाऴ पूगा।
पाणी पी टुरण वाऴा ईज हा कै गांम कानी सूं आवता रुघजीसा ढोल्यां नै टकर्या।
जिकै ढोली उणांनै कठमनी शुभराज करता कै करता ई नीं वे देखतां ई-
“खमा अन्नदाता!!”
रुघजीसा पूछियो कै-
“हणै कठीनै सूं अर आगे कठीनै? “इयां माठमना कीकर!!
उणां पूरी बात बतावता कह्यो कै-
“हुकम रावऴी बैन-बायां रै अठै सीख-बाड़ी नै जाय रैया हां। कुसमै रो बखत पांगऴां नै कुण पाऴै?
रुघजीसा कह्यो कै “आजोका तो अठै ई रैवो। थांरो आपरो घर है। हथाई करांला अर सवारै री सवारै देखसा!!”
खोटो बऴध तो बुचकारो ई चावै !! एक भाई दूजोड़ै कानी जोयो अर कह्यो कै-
“कांई रै बैठी भैंस्यां खेत आयग्यो!! क्यूं नीं आज अठै ई तापड़धींग करां!! आपांरै तो कंठ तोड़णा!! अठै ई तोड़ां तो कांई अर आगै कठै ई तोड़ां तो कांई!!”
दूजोड़ै ई कह्यो कै
“बात तो साची है आपांरै तो हऴजी वाऴो मूंढो है! रेत में ई रैणो है।”
दोनूं भाई रुघजीसा री कोटड़ी आयग्या। जाजमां जमी। दारूड़ा-मारूड़ा होया-
हयरस त्रियरस तांतरस, तातै मद री तार।
चित चिंता री झाल़ नै, चार बुझावणहार।।
झिल आधी रात तक झीणी सुर लहरियां गूंजती गी। दिन ऊगो। राणा संभण लागा तो रुघजीसा कह्यो –
” रै गैलां आजोका भऴै बैठा हो। कांई खतावऴ है? आज ई अठै बंतऴ करो। थांरो आपरो घर है।”
आंधो तो दो आंख्यां चावै!! राणा उणदिन ई उठै ठंभिया। गावणा-बजावणा होया। दिन ऊगो तो बापड़ा आगै री त्यारी करण लागा तो रुघजीसा कह्यो-
“रे थांनै आगै जायर कमतर तो ओ ईज करणो है कै भऴै कोई बीजै धंधै लागोला?”
“खमा ! हुकम कागां रै बागा होवै तो उडतां नीं दीसै। दीयै जेड़ा भाग होवै तो पछै रातींदो क्यूं होवतो। म्हांनै तो आगै ई ओ ईज काम करणो है!!” राणां कह्यो
तो रुघजीसा कह्यो – “तो वरसाऴो आवै जितै अठै ई रैवो। छभा करो। थांरो ई घर। शंकण री अंकै ई जरूरत नीं हे वा!!”
बाई जाऊं-जाऊं करै ही अर वीरो लेवण आयग्यो। राणा उठै ई जमग्या।
दूजै दिन रुघजीसा राणां नै बिनां बतायां चार पाखऴी बाजरी, कपड़ा-लत्ता आपरै आदम्यां साथै राणां रै घरै पूगता किया। आपरै आदम्यां नै कह्यो कै इणां रै घरै आ ईज कैजो कै राणां नै सीख में मिली है जको उणां भाड़ो देयर थांरै पूगती करी है। आदमी बाजरी अर गाभा पूगाय पाछा आया।
राणा आपरी मस्ती में मस्त। एक दिन तऴाई माथै संपाड़ो करण गया। आछट-आछट रा गाभा धोया, संपाड़ो किया। गाभा सूकाया। जितै उणां देखियो कै एक नीमाज रो आदमी तऴाई माथो ढूको। गांम रो आदमी देखियो तो इणांनै आपरा बाऴ-बच्चा याद आया। इणां आपरै घरां रा समाचार पूछिया तो उण आदमी बतायो कै-
“थांरै घरै तो लीला-लैर लागोड़ी है। कोई चिंता जैड़ी बात नीं है।”
इणां नै ई सुणर अचूंभो होयो कै कमाऊ तो म्हां जैड़ा है!! लीला-लैर लगाया किण? उणां कह्यो
“मसकरी मत कर तनै थारै इष्ट री आण है देखी जैड़ी कह!!”
उण आदमी कह्यो-
“साचाणी थांरै घरै चैन री बंसी बाजै। अंकै ई चिंता मत करो।”
इणां सोचियो कै मा मारै!! पण मारण नीं दैवै। सगऴी रावऴै री दया दीठ है बाकी ऐडै काऴ में कुण धान दैवै।
बखत बीतो। उतराध में बीजऴी पऴपऴाट कियो। राटक र वरसियो। च्यारां कानी जऴजऴाकार कर दियो। राणां रुघजी सूं रजा मांगी अर सीख देवण री अरज करी।
रुघजी राणां रै चींती सीख सूं सवाई देय बहीर किया।
राणा घरै पूगा। आगै देखै तो घरै, घर वरताऊ धान अर पैरण नै हर सदस्य रै नवा गाभा!!
इणां आप-आपरी घरवाऴ्यां पूछियो कै “ओ कांई रावऴै इनायत कियो?”
घरवाऴ्यां कह्यो कै “क्यूं कानां में कवा लैवो? थे ई मेलियो अर पूछो भल़ै हो!!”
दोनूं भायां एक-दूजै रै साम्ही जोयो अर समझग्या कै आ मेहरबानी रुघजी बाजीसा री ही। उणां री शब्द निर्झणी बैवण लागी।
एक भाई कह्यो-
भूप बासठै भूलगा, सको दान सनमांन।
रूघपत दे सादूऴ रो, धजबंध खिड़ियो धांन।।
जितै दूजोड़ै कह्यो-
कर नीचो कर नह कियो, कर ऊपर कर किद्ध।
सुत मिल़ियो सादूऴ रो, सकव रुघा तूं सिद्ध।।
किणी दूजै कवि तो आ तक कही कै- चानण, लूंभा चीरा, पीरू, रायमल आद सैति खिड़ियां रो सुजस रुघनाथ ऊजऴ कियो–
दूसरा सूर मोटा सकव, वांचै जस चहुंवैवऴा
सादूऴ तणा रुघनाथ सूं, ऐता खिड़िया ऊजऴा!!
~~गिरधरदान रतनू “दासोड़ी”