सिंधु-सौरभ – डॉ. शक्तिदान कविया

।।दूहा।।
दीवै सूं थांनक दिपै, पुसप सुगंध प्रमाण।
मोती ज्यूं दरियाव मझ, सिंध में त्यूं सोढाण।।1।।
पाळ धरम रण पौढियौ, खळ दळ जूंझे ख़ास।
सिंध में दाहिरसेन रौ, अमर हुवौ इतिहास।।2।।
धरा सिंध अवतार धिन, लीनौ झूलेलाल ।
चावौ ‘चेटी चंड’ रौ, सुभ उच्छब हर साल।।3।।
सिंधी भगतां में सिरै, राजै टेऊराम।
प्रेम प्रकासी सत्पुरुष, निकस्यौ चहुं दिस नाम।।4।।
साहू जांमां जमर सज, दोखी कर दहवाट।
हड़वेची बेहूं हमें, धर पूजीजै धाट।।5।।
पँखेरुवां रौ पाळगर, नैणू भगत निराट।
उण तपसी रौ आज ही, धरमी थांनक धाट।।6।।
साधू पूजै सकल ही, माधूलाल हुसैन।
आप मुंऔ बाळक उठ्यौ, हुवौ न दूजौ व्है न।।7।।
ध्यान म्यान में ध्यानगर, धर उजवाळी धाट।
थाप्यौ आसण खैरथल, नीपण भगत निराट।।8।।
शिष्य भयौ सतरांम रौ, कंवरराम सुभ कांम।
सिद्ध भगत संगीत सुण, गुण रेहड़की गांम।।9।।
सिंधु रिळमिळ सूफियां, हाली नेक हिलोर।
गूंज्यौ नारौ गजब ही, जिये सिंध रौ जोर।।10।।
सिंधड़ी वूठां मेह सूं, धारोळा व्है घाट।
रीतां गीतां रेलणी, वहै नेह री वाट।।11।।
चारण री चेतावणी, सांप्रत जगै समाज।
सिंधी वैत चया सबद, उण कवि शेख अयाज।।12।।
शिव-मंदिर देवल सगत, सिद्ध निमाणौ साह।
रबूसाह त्यों रतनगर, बीबी मिठां बडाह।।13।।
थांन मांनसरिया थपै, महंदर तणा महल्ल।
खारोड़ै धरा खरा, भेळा इतरा भल्ल।।14।।
धुवड़ बारठ घणकरा, थळवट धोरा थाट।
आदू देथां रौ उतन, धरा सुरंगी धाट।।15।।
मघारांम भगतां मणी, खत्री दीपलै खास।
अटळ भरोसो ईसवर, निरख्यौ धाट निवास।।16।।
हरि रा हजार हाथ है, अवल भरोसो एक।
माळा फेरी धिन मिठी, देथी आंबू देख।।17।।
खंगार पीर हुवौ खरौ, सोढां वंस सधीर।
धर जाहेलो धाट में, वणी समाधी वीर।।18।।
चन्दौ पीर भयौ छतौ, कालूंझरी मुकाम।
करामात परचै कियौ, अथाग नीर अमाम।।19।।
हल्ल हंसली नित हुतै, ‘दुजू पीर’ दाखंत।
कथां समाधी काटियै, रसां नाम राखंत।।20।।
पीर पिथोरै पोतरां, मांनै धाट तमांम।
जांणौ ‘रावत पीर’ ज्यों, ‘समरथ’पीर सुनांम।।21।।
हरियां खाहाणै हुई, झीबां वधू सुझल्ल।
मिरमां देथी धाट मझ, आखै सती अवल्ल।।22।।
गरू हेमचंद गोत रौ, रूड़ौ मजनारांम।
खिपरौ अर खारोहड़ौ, तवै भगत गुण तांम।।23।।
मोती गुणेसगर महंत, आखाड़ै अमराण।
छतौ रांमगर छाछरै, जबरौ सांमी जाण।।24।।
~~कवि डॉ. शक्तिदान कविया
धरा सुरंगी घाट से साभार
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