समानबाई के सवैया

करसै है कमान अहेरिय कान लौं,
बान तैं प्रान निकालन में हैं।
दरसै गुस्सै भर्यो स्वान घुसै,
झुरसै तन तो जगि ज्वालन में हैं।
तरसै दृग नग पै ढिग तो,
मृगी लगी लौ लघु लालन में हैं।
बरसै अँखियां दुखियाँ अति मो,
सरसै सुख स्वामि सम्हालन में हैं।।

करियो करूणा करूणाकर हो,
करूणीय कुरंगिन काल फँसी है।
हरियो अतीव ही संकट मो,
जग-जीवन जीवन आस नसी है।
धरियो तो दया शिशु शीश अति,
कली निकली बिन ही बिकसी है।
भरियो वनमालिय नांव को भाव,
खिली कलिका विनसी तो हँसी है।।

जकरानो चहै तन जाल तन्यो,
अकरानो चहै अहिराज डसानो।
बिकरानो चहै पल पारधि तो,
निकरानो चहै जिया खाल खिचानो।
घुररानो घनो हरिनीको ये श्वान,
क्षुधा हरनी चहै आमिष खानो।
कर आनो न देर गरीबनवाज,
निभानो गरीबनवाज को बानो।।

अहि जाल रू ज्वाल अहेरिय श्वान,
अदैरिय घैरिय ऐनिय जानों।
मम बाल बिहाल अकेले परै,
जहँ स्याल बिडाल कराल प्रमानो।
मुहि ब्याध की ब्याधि अगाधि बढी,
अरू आधि बचे न बचे यह मानो,
नटनागरता ज्यों उजागर होय,
कृपा करि कै परे कूदि कै आनों।।

समानबाई ने नानाविधि भगवान की कृपा प्रसाद से संकटो में बचे भक्तों का सम्यक वर्णन किया है। दीनबन्धु दीनानाथ के बड़े व गरीबनवाज बिरूद की सरस सरल व असीम अशेष व्याख्या की है। धन्य है समानबाई भक्त कवियत्री।

~~राजेन्द्रसिंह कविया (संतोषपुरा-सीकर)

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