सो सुधारण ! सो सुधारण !!

काबुल रो मालक मुगल कामरान आपरी विस्तारवादी नीत सूं बीकानेर रै राव जैतसी नै धूंसण सारू आपरी एक लांठी सेना रै साथै बीकानेर माथै चढ आयो। उणरी फौज बीकानेर रै पाखती डेरा दिया अर ‘सौभागदीप'(बीकानेर रै किले रो नाम) रै सौभाग नै अभाग में बदल़ण री चेष्टा में प्रबल हमले री जुगत बैठावण लागो-

मालक काबल मुलक रो, कमरो लीध कटक्क।
जुद्ध करण नृप जैत सूं, आयो लांघ अटक्क।।

अठीनै राव जैतसी ‘सौ मण धान री मुठ्ठीक बांनगी’ सरूप आपरै उण जोधारां नै भेल़ा किया जिकै बीकानेर री आण माथै निशंक कुरबांण हुवण सारू हर घड़ी त्यार हा।

दोनां कांनी आप आपरा दावपेच लगा रैया हा। राव जैतसी ‘रातीवाहो’ (रात्रिकालीन युद्ध) करण री तेवड़’र आपरै जोधांरां नै गायां रै सींघां माथै चराकां कै मसालां बांध’र उण गायां नै एकै साथै भिड़काय’र मुगलां रै डेरे कानी घालण अर साथै ई आक्रमण करण रो आदेश दियो।

रातीघाटी रै मैदान में बीकानेरियां कानी सूं अचाणक हुयै इण हमलै अर च्यारां कानी चराकां रै चड़ूड़ चानणै सूं मुगल डरग्या अर उणां अंदाजो लगायो कै ऐ आदमी घणा है अर आपां शायद कमती, इणसूं आपां फालतू में मारिया जासां सो मुगल आखड़ता पड़ता पड़ छूटा।

बीकानेर री गौरव गाथा च्यारां कानी गूंजी। समकालीन कवि खेतजी गाडण लिखै कै जिणगत एक किरसाण हल़-जोतण सूं पैला आपरी पुल़छ सुधारै अर्थात ज्यूं सूड़, अड़सूड़ आद कर’र खेत में अणभै आपरै बल़ध टोरै, उणीगत इण वीर रणखेत में आपरा घोड़ा मुगलां माथै ठेलिया-

सौभाग सुधन सत्र सीस संग्रहण,
सार धार हल़ सुत्र संभाल़।
फेरिया तुरी धमल़ पर फेरण,
वीकहरै रण खेत विचाल़।।
कटक मुगल घड़ां वड करसै,
कल़हण क्रितक तणै भलकार।
हकसा वदल़ कमध हींसापति,
जैत जोतिया जैत जुवार।।

इण गौरवशाली घटना सूं च्यारां कानी बीकानेर रै सुजस री सौरम पसरी अर कवियां कीरत कथा में केई रचनावां लिखी।
रातिघाटी रै जुद्ध में परास्त हुय’र मुगल कामरान, राव जैतसी सूं भयातुर हुय’र बड़गड़ां-बड़गड़़ां नाठतो जावै हो। किंवदंती है कै जद उवो छोटड़िया गांम सूं निकल़ै हो कै अचाणक उणरै छत्र री किरण(किलंगी) पड़गी पण उवो जैतसी रै शौर्य सूं इतरो डरग्यो हो कै उठै ठंभ’र उणनै उठावण री हिम्मत ई नीं कर सकियो। उण आपरै मारग बैवणो ई ठीक समझ्यो।

ओ गांम बीकानेर रा संस्थापक राव वीकाजी, जीवराजजी सूंघा नै इनायत कियो। कैवै है कै ओ गांम पैला छोटा मोयल(चहुंवाण) रो हो। जद ओ गांम सूंघां (चारणां री एक जाति) नै मिलग्यो तो उण चारणां आगै इच्छा व्यक्त करी कै –
“इण गांम रो नामकरण जे, थे मेरे नाम सूं कर दिरावो तो म्हनै खुशी हुसी अर आ बात ई कायम रैसी कै कदै ई अठै छोटो मोयल रैवतो।”

संवेदनशील चारणां उणरी आ इच्छा पूर्ति करदी अर गांम रो नाम छोटड़िया राख दियो। घणै दिनां तांई ओ गांम मौखिक रूप सूं चारणां रै अधिकार में रह्यो। कालांतर में राव जैतसी सुधारणजी जीयावत नै इण गांम रो तांबापत्र दियो।

किंवदंती है कै जीवराजजी सूंघा घोड़ां रा वौपारी हा। उणांनै ओ गांम घोड़़ां रै बदल़ै दिरीज्यो हो। बात आ है कै जीवराजजी आपरा घोड़़ा लेय’र गुजरात सूं इन्नै आया अर उणां वीकाजी नै आपरा घोड़ा दिया। वीकाजी उण दिनां इतरा समरथ नीं हा कै उण घोड़ां रो मोल रोकड़ी चूका सकै। जणै उणां घोड़ां रै बदल़ै जीवराजजी नै ओ छोटड़ियो गांम दे दियो। चूंकि वै गुजरात रा काछेला चारण हा जिणां सूं अठै रा चारण रोटी व्यवहार तो राखता पण बेटी व्यवहार नीं। जीवराजजी सोच्यो कै पछै ऐड़ी धरती में रैवण रो कांई फायदो जठै वंश री बेल फखत म्हांरै तांई ई बधसी। म्हारै साथै अठै कोई गिनायतचारो नीं करै तो हूं अठै क्यूं रैवूं?

आ सोचर वै वीकाजी कनै आया अर कह्यो कै – “ई तूठणै सूं तो रूठणो बधीक है। ऐड़ी निनामी धरती माथै म्हैं रैय’र कांई करूं? जठै म्हनै कोई चारण आपरी बेटी नीं दे अर नीं आपरै जोड़ म्हनै चारण मानै। सो गांम पाछो लिरावो अर म्हनै म्हारै घोड़ां रा दाम दिरावो।”

वीकैजी कन्नै उण दिनां इतरी भांज ही नीं सो वां करनीजी नै इण अबखी सूं उबारण री अरज करी।

करनीजी जीवराजजी नै बुलाय’र कह्यो कै- “वीकै गांम दियो है सो अठै आराम सूं बसो। गांम राखण में आपनै कांई हरज है?”

जणै जीवराजजी कह्यो कै- “म्हनै अठै कोई चारण ई नीं मानै। पछै म्हारा संबंध कीकर हुसी? जठै म्हारै सूं कोई संबंध जोड़ण री हांमल़ ई नीं भरै उठै रैवण रो मतलब है कै –

खुद रा चरण कंवाड़ी खुदरी, 
हाथां खुद पर वार हुवै।

उणां आगै कह्यो कै ठाकरां बेल बधो कै बेल म्हांरै तांई है।
आपरो ओ ईज आदेश कै म्है म्हारा पग आपै ई बाढूं तो आदेश सिर माथै चढाय’र मानूं।”

आ सुण’र करनीजी ई द्रवित हुयग्या अर बोल्या-
“नीं, नीं!
चारण तो एकै धारण है इणां में कुण छोटो अर कुण मोटो? कुण काछेला अर कुण मारू? ऐड़ी बात कोई ओछो मिनख ई करतो हुसी। मूल़ो पानां सूं ई फूठरो लागै। थारै साथै कोई दूजो संबंध जोड़ै कै नीं जोड़ै पण हूं म्हारी पोती तन्नै परणासूं।”

करनीजी आपरी पोती सांपू, जीवराजजी नै परणाई।

समाज सुधार री बात करणियां नै ‘घर सूं घसीजणो पड़ै।’ यानी कोई पण पहल घर सूं करणी पड़ै। करनीजी ई सामाजिक समरसता स्थापित करण अर ‘चारण एको धारण’ री अवधारणा नै परिपुष्ट करण सारू ई आपरी पौत्री सांपू रो ब्याव जीयाजी /जीवराजजी रै साथै कर दियो।

सांपू नै कोई घणो वैवाहिक सुख नीं मिल्यो। दुजोग सूं जीवराजजी अल्पायु में ईज परलोकवासी हुयग्या। उण समय उणांरै कोई संतान नीं ही। संयोग सूं सापू गर्भवती ही। जद जीयाजी री छेकड़ली जात्रा भोमका (श्मशान) कानी जा रैयी ही कै अचाणक उण बखत एक झखलर (तीतर) बोल्यो।

सुगनियां कह्यो कै – “ओ बोल रह्यो है कै ‘सो सुधारण ! सो सुधारण!!’ यानी सह बातां सुधरसी, सह बातां सुधरसी”

देवीय अनुकंपा सूं सापू नै पुत्ररत्न री प्राप्ति हुई। उण बाल़क रो नाम ‘सुधारण’ राखीज्यो।

जद कामरान री नाठतै री किलंगी अठै पड़ी उण बखत ‘सुधारणजी’ ई इण गांम रा मौखिक परापरी सूं जागीरदार हा।
उणां बीकानेर आय’र आ सूचना राव जैतसी नै दी कै- “कामरान आपसू इतरो डरियोड़ो हो कै उवो आपरी पड़्योड़ी किलंगी ई नीं उठा सक्यो।”

राव जैतसी छोटड़िया गांम रो रो तांबापत्र सुधारणजी रै नाम उणी बखत जारी कर दियो।

बीकानेर रै सांसणां रै विगत री बही’ में उल्लेख मिलै कै-
‘गा छोटड़ियो सुंघे साधारण जीयावत नूं महाराय जैतसी रो दत ने सं. 1671 री बही मांहे नारायण जेते गोपे रा दीकरा नुं मंडियो छै सांसण सुंघा श्री करणीजी रा दोहीतवाण छै सु पातसाह रो किरणियो खोसियो सुं गांव रे थान खेजड़ै सूं सुरू छै।’

इण बात री पुष्टि डिंगल गीतां सूं ई हुवै हैं। कवि चिमनजी रतनू चौपासणी लिखै –

किरणियो कलम कर खोसे खेजड़ कियो,
जयो मा तुरक हिंदवाण जपियो।

जठै किलंगी पड़ी उठै एक केलकियो(खेजड़ी का पौधा) ऊगग्यो। उणी जागा सुधारणजी सूंघा करनीजी रो थान थरपियो।
कालांतर में जोप’र उवो केलकियो एक मोटी खेजड़ी बणग्यो। जिकी आज ई करनी रै भक्तां सारू अगाध आस्था री प्रतीक है।
बात चालै कै जदकद ई कोई छोटड़िया रो चारण बीकानेर राजाजी रै अठै जावतो तो तो विजय री प्रतीक इण खेजड़ी रो लूंख(पत्तियां) अवस ले जावतो अर महाराजा ई उण लूंख नै घणी श्रद्धा सूं ग्रहण करता।

~~गिरधरदान रतनू “दासोड़ी”

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