सोढाण रो सांस्कृतिक दर्पण-सोढाण सतसई

साहित्यिक अर सांस्कृतिक भोम रो नाम है सोढांण। सोढांण धाट अर पारकर भांयकै रो समन्वित अर रूपाल़ो नाम। सोढाण मतलब सोढां रो उतन। इण विषय में मारवाड़ रा विख्यात कवि तेजसी सांदू भदोरा लिखै-
अमरांणो अमरावती, धरा सुरंगी धाट।
राजै सोढा राजवी, पह परमारां पाट।।
आ उवा धरा जठै कदै ई सोढा राजपूत शासन करता। उणी सोढां री धरा सोढाण, जिणरी जाण आखै हिंदुस्थान में है। बिनां खोट जिणां कीरती रा कोट कराया। मनमोटां, पोटां भर द्रब बांटियो अर सुजस खाटियो-
आडा अमरकोट रा, जाडा थल़ां जुंहार।
वड दाता वैरो वसै, सोढां कुल़ सिंणगार।।
~~(तेजसी भदोरा)
ओ ई कारण है कै प्रभात री वेळा में राजा कर्ण अर विवाह री मांगलिक वेळा में सोढां रै सुजस री सौरम अवस आवसी-
कीरत विल़िया काहल़ा, दत विल़ियां दोढाह।
परणीजै सारी प्रिथी, (पण)गाईजै सोढाह।।
इणी कारण तो कविराजा बांकीदासजी लिखै कै ऊमरकोट रै राणां नै धिन है जिणां आपरो जमारो उदारता रै पाण सफल़ कियो-
राणा ऊमरकोट रा, गया जमारो जीत।
ज्यांरै मंगल़ धमल़ में, गवरीजै जस गीत।।
सोढाण वासी जाणता कै संसार में सह कीं पावण री विध जाणलो पण जे कवि री जबान माथै चढण री विध नीं आई तो सगल़ी बातां अकारथ है-
ऐतो सर्व पायो नाहक गमायो जनम,
जस ना बसायो जो पे रसना कवीन की।।
इण रो सीधोसीक अर्थ है कै कवि री रसना राजणियै नै अमरता मिलै-
कवि की जबान पे चढ़े सो नर जावै ना।।
भलांई लोगां कैय दियो हुसी कै जस कै गीतां कै भीतां!! पण झूठाजी आसिया कह्यो कै महलां री धवल़ कल़ी काल़ी पड़ जासी, उण माथलो कल़स जोखम जासी, हाथी रै टिलै सूं मंडप खांगो हुय जासी अर्थात भीतड़ा धूड़ भेल़ा हुय जासी पण गीतड़ा सदैव अमर रैसी–
कल़ी सेत व्रन पल़ट पड़ै जोखम कल़स,
खसै खुंभी हुवै मंडप खांगो।
भीतड़ा भाज ढह जाय धरती भिल़ै,
गीतड़ा न जाय कहै गांगो।।
इणी कारण इण सोढाण रो सुजस डिंगळ काव्य सूं लेय’र लोक काव्य में सरबालै सोभायमान है। सोढाण सांस्कृतिक अर साहित्यिक रूप सूं समृद्ध रैयी है। लोकगीतां री लाखिणी लड़ियां सूं लड़ाझूम इण भांयखै री मनवार अर मिनखपणो वारणाजोग है। मूलतः आ धरा ईज घणै लोकगीतां री जन्मदात्री रैयी है। जठै बोलण में जी अर ओलण में घी अनिवार्य है। जद ई तो किणी कवेसर कह्यो है कै जे किणी नै गृहस्थ जीवण री मौज माणणी है तो धाटेची धण परणीजणी चाहीजै-
उर चौड़ी कड़ पातल़ी, जीकारै री बाण।
जे सुख चाहै जीव रो, धण धाटेची आण।।
कवि तेजसी सादू इण धरा री नार, नर अर ‘लांबा’ नामक ताल़ाब री सुंदरता नै बखाणतां लिखै-
केहर-लंकी गोरियां, सोढा भंवर सुजाण।
बड़ झुकिया लांबै सरां, अइयो धर सोढाण।।
इण धरा सुरंगी धाट माथै कवि श्रेष्ठ तेजसी सांदू रा फुटकर दूहा, सूजा देथा रा ‘सोढां रा झूलणा’, अज्ञात कवि रचित ‘भाखरसी सोढै रा दूहा’, जैमलजी झीबा रो ‘सोढे दौलतसिंह रो छंद’, महाकवि बाँकीदासजी री “हमरोट छतीसी” कविवर्य चिमन जी कविया री ‘सोढायण’, डॉ शक्तिदान जी कविया री ‘धरा सुरंगी धाट’ जैड़ी सधर रचनावां इण कोम अर भोम री साख भरै।
इणी श्रृखला में धाट रा वासी श्री संग्राम सिंहजी सोढा आपरी मातृभूमि रै गौरव नै मंडित करण वाळी रचना “सोढाण सतसई” रच’र उठै रै साहित्यिक, सांस्कृतिक अर सामाजिक परिवेश नै जिण ऐतिहासिक अर अपणायत री दीठ सूं उजगार करियो है, वो वारणा लेवै जैड़ौ है।
जूझारां, दातारां, तपेसरां अर कवेसरां री कमनीय कीरत “सोढाण सतसई” रै दूहे-दूहे में दीपायमान है। मध्यकाल़ सूं लेय’र वर्तमान तक रै गौरवमय पक्षां नै उजगार करण वाळी रचना धाट रै थाट सूं पाठकां नै सांगोपांग परिचै करावसी अर उठै रै रैवासियां रै मन में आपरी मातृभूमि रै प्रति मोद री भावना जगावसी, आ बात सोळे आना साची। संग्राम सिंहजी सोढा री आ रचना पढियां एक बात साव साफ हुवै के आदमी कठै ई रैवौ पण आपरी जनम भोम नै नीं वीसर सकै क्यूं कै-
मेह मोरां वन कुंजरां, आंबां रस सूवांह।
मात भोम नै कटुवचन, वीसरसां मूवांह।।
ओ ई कारण है कै ‘सोढा’ आपरी जनम भोम “सोढांण” रै सुजस नै कीकर भूल सकै? इणी कारण तो कवि उठै रै बांठै-बांठै री बधताई अर कण-कण रै किरकापणै नै ठेल़ ठिमर अर ठोस शब्दावली में बखाणियो है।
संग्राम सा उठै रै नामी नगरां रै सांस्कृतिक गौरव, दीपायमान देवियां, आमजन नै सुभग संदेश देवणिया संत-महात्मा, आपरी आन-बान सारू जान कुरबान करणिया जूंझार, टणकाई री टग कदीमी कायम राखणिया सूरवीर, ऊजल़ मन सूं औदार्य दरसावण वाल़ा दातार अर गोरां रो गर्व भंजण अर जनरंजण सारू आजादी री अलख रै आगीवाण नरां रो सुजस निपखै भाव सूं मांडियो है।
रचना ठावकी है। डिंगळ काव्य परम्परा नै पोखण वाळी है। ठेठ अर ठोस डिंगळ में सृजण सारूं संग्राम सिंह नै बधाई। आशा ई नीं विश्वास है कै आ पोथी इतिहासकारां, साहित्यनुरागियां, अर सांस्कृतिक क्षेत्र में काम करणियां सारू महताऊ सिद्ध हुसी।
शुभेच्छु गिरधर दान रतनू “दासोड़ी”
प्राचीन राजस्थानी साहित्य संग्रह संस्थान दासोड़ी तहसील, कोलायत
जिला, बीकानेर(राज.)
जय माता जी हुक्म मैं रघुवीर सिंह सोढ़ा जोधपुर
मैं सोढ़ा शाखा पर जितनी भी पुस्तके लिखी गई है उन सभी की एक एक पुस्तक खरीदना चाहता हूं तो मुझे यह बताने की कृपा करें कि यह पुस्तके कहा मिलेगी
मेरे मोबाइल नंबर 6377630504
Hkm मुझे भी पुस्तक खरीदनी है सोढ़ा शाखा की
यदि आपने खरीद ली है तो बताएं यह पुस्तक मुझे कहां मिलेगी