सोनल स्तवन – अजय दान जी लखाजी रोहडिया

यह रचना सोनल मां को सांबरडा गांव में जब रामसिंह जी लक्षमण सिंह जी गढवी ने समस्त चारण समाज के साथ निमंत्रित किया था तो माताजी के स्वागत के लिए स्व. अजय दान जी लखाजी रोहडिया मलावा ने मां सोनल की वंदना में रची व पढ़ी थी।
🌺दोहा🌺
करनी निज जन हित करन, सोनल धर्यो स्वरूप।
नित उत्तम निरमल ह्रदय, दे उपदेश अनूप॥1
“व्यसन तजो सद्गुण सजो”, हरि हर भजो हमेश।
कर कुलोभ नहि तन लजो, औसर अजों है शेष॥2
लगो न लारे लोभ के, भगो न करत भलाहि।
ठगो न खाली ठाठ कर, जगो न पर घर जाहि॥3
करो काम कुल कर्म के, धरो ह्रदय मँह धीर।
नरों ना लजावों नीर को, हरो पराई पीर॥4
पढौ हरिरस प्रेम से, बढौ न रहु प्रिय बैठ।
चढौ उन्नति पथ सदा, कढौ कुमन की ऐठ॥5
सोन आई सद् बोध इम, दिन दिन निज जन देत।
“अजय”आज जा तें भये, चारन पुनः सचेत॥6
🌺छंद -रेणकी🌺
चारण प्रिय पर्म धर्म जब तज कर, करन कर्म प्रतिकूल लगे।
कारण इन कु-मन सुमन भय दिन दिन,दया दान सब दूर भगे।
मारन मद मोह ताहि मय तन्मय, यह लख नवलख चिंत्य करम।
करनल दुःख दूर करन सोय दारूण, धर पर सोनल रूप धरम्॥1
निरमल मति अंग गंग सम उज्जवल ,वचन वारि अघ ओघ दलम।
निश्छल जिहि कान पान कर खल दल, काल व्याल तें तुरत टलम।
अविचल गति गहन सरल चित अविरल,हरि हर जो गुणगान करम।
करनल दुःख दूर करन सोय दारूण, धर पर सोनल रूप धरम्॥2
कर कर संगठित प्रीत उर भर भर, फिर फिर जाति सुधार करे।
धर धर उर धीर पीर जन हर हर, नर नर में नित ज्ञान भरे।
वर वर उपकार मात इम दर दर, घर घर किंकर जात करम।
करनल दुःख दूर करन सोय दारूण, धर पर सोनल रूप धरम्॥3
थर थर अघ थरर थरर थर थरकत, कर निज दरसन निपट करम।
सररर सर सरर द्वैष पुनि डर कर, सरर सरर सर सकल हरम।
घर घर तज नगर डगर गिरि सर सर, फूट देख जिन दूर फिरम।
करनल दुःख दूर करन सोय दारूण, धर पर सोनल रूप धरम्॥4
सुन सुन उपदेश क्लेश सिर धुन धुन, हो अनमन हयरान भगे।
छिन छिन सदभाव भक्ति मय पुनि पुनि,निज जन मन में आन लगे।
दिन दिन जिन गान करत गुण गिन गिन, चढ उन्नति गिरि कर शिखरम।
करनल दुःख दूर करन सोय दारूण, धर पर सोनल रूप धरम्॥5
नटखट घट निपट कपट पटु लंपट, मन महि अवघट घाट धँसे।
चट पट डट इष्ट इष्ट नित रट रट, अब रसना अभिराम लसे।
खट पट कट जाय “अजय” कह झट पट, अमिट बुद्धि सोय ह्रदय भरम।
करनल दुःख दूर करन सोय दारूण, धर पर सोनल रूप धरम्॥6
🌺छप्पय🌺
करनल किय मन सोच, अमित निज जन अकुलावत।
इष्ट भ्रष्ट व्है आज, गुण नहीं हरि के गावत।
करत कलुषमय काम, दाम में तन मन दीन्हो।
जन्म पाय जग मांय, अरू अति अपयश लिन्हौ।
या तें उपदेशन हमें, सो करनल सर्वेश्वरी।
“अजय “सु -मढडा गढ मही, अब सोनल ह्वै अवतरी॥
~~स्व अजय दान जी लखाजी रोहडिया मलावा कृत।