सोनल स्तुति – अजय दान लखाजी रोहडिया

।।दोहा।।
सोनल कर सिर पर धरो, सकल हरो संताप।
शुद्ध बुद्धि मम उर भरो, कृपा करो इम आप॥
।।मत्तगयंद सवैया।।
आज परे हम पे दुःख दारुण , लाज तजी निज काज सँवारे।
देव कहाय, भये पर दानव, मानव के सद् गुण बिसारे।
काह कहें न कह्यो कछु जायजु, है सबही विधि हिम्मत हारे।
सोनल मात सहाय करो हम पापी तथापि है पुत्र तिहारे॥1
फैल फितूर मे फूल रहै अरु, भूल अतूल भरे हम भारे।
खेलत खेल खुले खल सों मिल, ऐसे है हाल हवाल हमारे।
काल कराल के गाल में कालहि, जावनों पें न जराहि बिचारे।
सोनल मात सहाय करो हम पापी तथापि है पुत्र तिहारे॥2
फूल से फूल रहै पर शूल से बोलत लागत है बहु खारे।
काम के खास गुलाम ललाम प्रलाप कलाप अलापन वारे।
दाम के दिव्य दलाल कमाल के लालच लागि रही निज लारे।
सोनल मात सहाय करो हम पापी तथापि है पुत्र तिहारे॥3
चाल सके न थके सब चालक, क्रोध के पंथ पे पैर पसारे।
रोज चला करते हम रोफ से, ना तकरार से नेक हू न्यारे।
हो मद में मदमस्त हमेश ही, घूमत झूमत ज्यो घन कारे।
सोनल मात सहाय करो हम पापी तथापि है पुत्र तिहारे॥4
चंचल चित्त की चाल कुचाल पे, ब्याल कराल करोरन वारे।
लाभ कुलाभ कछु नही लेखत, लेश न लाज ह्रदै बिच धारे।
नेक अनेक कही नहीं मानत, डोलत लोभ तरू चढ डारे।
सोनल मात सहाय करो हम पापी तथापि है पुत्र तिहारे॥5
नेम अनेक करे न निभे पर, दामिनि ज्यों घन में पुनि बारे।
मो मन मात रहै दिन रैन यूं, लेश अलीक न लाल उचारे।
देर करो न दया कर दास के दूर करो दुख दारिद सारे।
सोनल मात सहाय करो हम पापी तथापि है पुत्र तिहारे॥6
फूट अखूट में जाय फसे हम, है जु अटूट टरै नही टारे।
कूट हि कूट के पूर भरी यह, कूट के बारहि कैसे निकारे।
चाट परी शठता की अरु घट, झंझटता को कहाँ लो पुकारे।
सोनल मात सहाय करो हम पापी तथापि है पुत्र तिहारे॥7
नाँय गिनें नभ तारक पै अति, औगुन आप गिनै न हमारे।
जानत हो करनी जनकी सब, धाय धसी तरणी मँझधारे।
अन्य न को अवलंब हमें जग, अंब कृपा कर पार उतारे।
सोनल मात सहाय करो हम पापी तथापि है पुत्र तिहारे॥8
।।कलस छप्पय।।
है सब ही विधि हीन, पूत हम पतित तिहारै।
कहे जाय किम कलुष, मात है अमित हमारे।
नहीं होय निस्तार, जान मन लीन्हो जग में।
बढत जा रहै बहुत, अबहु निज पग अघ मग में।
हम पापी तुम पाप हर, बिरद आप कर यह खरो।
कर जोड “अजय” जननी कहै, यातें निज पातक हरो॥
कवि: स्व. अजय दान लखाजी रोहडिया कृत
सौजन्य: नरपत आसिया “वैतालिक”