सूजै जिसो नह कोई शेखो !

सूजै जिसो नह कोई शेखो ! (सुजाणसिंह जैसा कोई शेखावत नहीं। )

राजस्थान री धरती रै जायां री आ तासीर है कै वो धर, धरम अर स्त्री रै माण सारू आपरो सीस शिव री माल़ में पिरोय गरबीजतो रह्यो है।

अगूण सूं आथूण अर उतराध सूं दिखणाद रै कूणै-कूणै तांई इण धर रा जाया मरण सूं नीं संकिया। मरण ई ऐड़ो! जिणरै पाण आवण वाल़ी पीढी उवां री वीरता रा दाखला देवै अर पाखाण पूतलिया थाप आपरो सीस झुकाय कृतज्ञता ज्ञापित करै। सही ई है जिणां नै सुजस प्यारो हुवै उवै प्राण नै प्यारो नीं गिणै-

सुजस पियारा नह गिणै, सुजस पियारा ज्यांह।
सिर ऊपर रूठा फिरै, दई डरप्पै त्यांह।।

ऐड़ै नामां री नामावली इतरी लंबी है, जिणां इण अवन नै आपरी मनसा, वाचा अर कर्मणा पावन करी अर जे कोई दूठ अपावन करण आयो तो उणरै आडो आय आपरो खांडो ताण सुजस खाटियो।

ऐड़ै ई नामां में एक हरोल़ नाम है सुजाणसिंह शेखावत रो। सुजाणसिंह शेखावत खंडेला रै पाखती आए गांम छपोली रा रायसोलत शेखावत श्यामसिंह रा सपूत अर दातार टोडरमल रा पोता हा।

उण दिनां दिल्ली माथै ओरंगजेब रो राज। महादूठ अर धूर्त पातसाह हो ओरंगजेब। जिण कितै ई हिंदवां रो धरम भिष्ट कियो तो कितरा ई अठै रा सांस्कृतिक गौरव नष्ट किया। उणरी आततायी नीति रा प्रमाण इतियास रै पानां में भरिया पड़िया है, जिणां नै पढियां आपांनै आपां री वीरता मगसी लागै पण उण मगसैपणै में ऐड़ा दाखला ई मिलै जिकै आपांनै गौरवानुभूति करावै।
ऐड़ी ई गौरवानुभूति री आभा सूं उजास पसरावणियो किस्सो है, सुजाणसिंह शेखावत रो।

दुष्ट ओरंगजेब, दाराबखां रै नेतृत्व में खंडेला रै जगमोहन मंदिर नै ध्वस्त करण सारू सेना मेली। मुगलां रा उण दिनां धाका पड़ता। उणांरै नाम सूं हिरण बांडा होवता सो विशाल सेना देख खंडेला रै राजा बहादुरसिंह शेखावत डरतै बांठां पग दिया।
आ बात ज्यूं ई पसरी कै राजाजी पगरखी हाथां लेय कठै ई लुकग्या है अर ‘जगमोहन’ जिको जगत री रक्षा करणियो है ! वो ओरंगजेब री विशाल सेना नै कातर नैणां सूं जोय रह्यो है। उणरी रक्षा किणी सपूत राजपूत रै मजबूत हाथां ई संभव है। आ बात जद सुजाणसिंह शेखावत रै कानां पड़ी। उण अजेज हरि रै हेज सूं बंधियै घोड़ी री लगाम ताणी–
उलेख्य है कै उण बखत वै मारवाड़ सूं परणीज’र आया ई हा। मंगल धुन रै साथै बधावो गाईजै हो। वर-वधू री रूपाल़ी अर मनहरणी छिब माथै गांम अर कड़ूंबो उचब रै आणंद में हिलोरां लेवै हो। ज्यूं ई आ खबर आभाचूक री उठै पूगी तो उण वीर कांकड़-डोरड़ा बंधियां ई घोड़ी री लगाम खांची क्यूंकै उणांनै लागग्यो कै माधव री मरजाद आज एक राजपूत ई बचा सकै! मोहन री करुण पुकार उणां रै कानां पड़ी कै-

झिरमिर-झिरमिर मेहा वरसै,
मोरां छतरी छाई।
कुल़ में है तो आव सुजाणा,
फौज देवरै आई।।

जद हरि ई आतताइयां आगै पाधर नश रो होय हाथ पाधरै करदे पछै विश्वासी मानखै रो विश्वास डगमगतो जेज नीं करै। पण जिणांनै धरम अर शरम प्यारी हुवै। उवै सदैव सत्करम रै मारग बैवता रैया है। सो सुजाणसिंह रै पेटै किणी लोककवि कह्यो-

कै न प्यारा छोरी-छोरा, कै न प्यारी जोय।
सूजा नै प्यारो देवरो, राम करै सो होय।।

उवै वीर आपरी घोड़ी चढ खड़ी। उवै घोड़ियां ई अलबेली अर स्वामीभक्त होवती। ऐड़ै देवअंशी घोड़ां सारू ई किणी कवि कह्यो है–

जंग नगारां जाण रव, अणी धगारां अंग।
तंग लियंता तंडियो, तोन रंग तुरंग।।
उजड़ चले उतावल़ो, रोही गिणे न रन्न।
जावे धरती धूंसतो, धन्न हो घोड़ा धन्न।।

शेखावत सूरमो जाय मुगलां सूं भिड़ियो। झड़ पड़ियो पण घणा देख मुड़ियो नीं-

माधव री मरजादा कारण, वीर मरण नै संभिया हा।
जद हाथ हरि रै ऊपर वै, वैर्यां उठता थंभिया हा।।

जगमोहन मंदिर री रक्षा करतां वीर सुजाणसिंह वि. सं. 1736 री बैसाख बदि 7रै दिन आपरै साठ सूरमां अर भतीजै भवानीसिंह साथै वीरगति पाई।

आ उल्लेखणजोग बात है कै उण धरमजुद्ध में सुजाणसिंह साथै उणांरो खास मरजीदान नाई भोल़ियो ई भेल़ो हो। भलांई उणरो नाम भोल़ो कै भोल़ियो हो पण वीर जुद्धभोम में आपरी तरवार रो तेज अर धरम सूं हेज बताय जिण अदम्य साहस रै सागै वीरता वरी, उवा लोक विश्रुत हुयगी। लोककवियां उण वीर री जात अर रात रा वारणा लेतां कह्यो–

सोनगिरि पर रहड़ू चालै
कर कर के गुमराई।
सुजाण सिंह कै साथ लड़ै
अरे भोळियो नाई।।
रे नाई का आछ्या मुंड्या
बिना पाछण मूँड़।
धन थारी जाई न रै,
धन थारी माई न।

इण वीर री वीरता रा वारणा तत्कालीन कवियां रै साथै ई परवर्ती कवियां ई लिया। कविवर मानदानजी कविया दीपुपुरा लिखै-

ढातां मंदर सिर दियो, आतां दल़ अवरंग।
इण बातां सूजो अमर, रायसलोतां रंग।।

तो दूजो कवि लिखै कै आज मिर्जा राजा जयसिंह, महाराजा जसवंतसिंह अर महाराणा जगत सिंह रै नीं रैवण सूं मुगलां नै कोई डर नीं रह्यो अर है जका छत्री न्हाठ छूटा या नीं जैड़ा है। ऐड़ी स्थिति में खुद मोहन सुजाणसिंह नै साद दी कै हमें म्हारी लाज थारै हाथां है। वा पुकार सुण सुजाणसिंह आयो अर पातसाह री फौजां नै विधूंसतो खुद ई परमधाम पूगो। सो मंदिर रुखाल़णियो सूजो नीं रह्यो तो उणरै भलां कोई देवल़ी नै देव मान’र पूजो भलांई पत्थर समझ’र उखाड़ो। वो तो देखण आवै नीं-

नहीं जयसिंह जसराज जगतो नहीं,
दे गया छत्री पीठ सह दूजा।
प्रथी पल़ट हुवै पाट मिंदर पड़ै,
साद मोहन करै आव सूजा।।
पाड़ पतसाह घड़ सवाड़ा पोढियो,
देव मंडल़ सरी नको दूजा।
मार मेछांण घड़ जोत सूजो मिल़ै,
पथर पाड़ो भलां कोई पूजो।।

कवियां सुजाणसिंह अर उणां रै भतीज भवानसिंह नै बिड़दावतां लिखियो कै काको-भतीज होडा-होडी कर’र कोड रै साथै देवालयां री रुखाल़ी करतां परमजोत में मिलग्या-

केसरिया पहर मौड़ माथै कस,
हंसै बिइसिया होडां होड।
कीधा भला देहुरां कारण,
काकै अनै भतीजै कोड।।

उणी साल पांच महीणां पछै ओरंगजेब मेड़ता रा मंदिर पटकण सारू आपरी सेना मेली। सुजाणसिंह रै दांई ईज आलणियावास रै राठौड़ राजसिंह प्रतापसिंहोत मरण अंगेज इण बात री साख कायम राखी कै-

धर जातां धर्म पल़़टतां, त्रिया पड़ंतां ताव।
तीन दिहाड़ा मरण रा, कहा रंक कह राव।।

उण दोनूं वीरां री सुजस-सोरम पसरावतां कवियां अठै तक लिख दीनी कै मरूधर में घणा ई जोधा जनमिया है पण सुजाणसिंह जैड़ो शेखावत अर राजसिंह जैड़ो राठौड़ बीजो निगै नीं आवै-

मारूधर में जलमिया, जोधा लाख किरोड़।
सूजै सो शेखो नहीं, राजड़ सो राठौड़।।

तो दूजै किणी कवि उण सूरां रो सिरोल़ो सुजस मांडतां लिखियो कै-

स्याम-सुतन पातल-सुत सझिया,
निज भगतां बाधो हर नेह।
देही साथ समाया देवल़,
देवल़ साथ समाया देह।।
कुरम खंडेलै कमंध मेड़तै,
मरण तणो बांधै सिर मौड़।
सूजै जिसो नह कोई शेखो,
राजड़ जिसो नहीं राठौड़।।

ऐड़ै वीरां रै पाण ई इण धरती रो माण कदीमी कायम रह्यो तो साथै ई ओ धीजो ई बंधियो रह्यो कै ‘धरती बीज नीं गमावै। कवियां सही ई लिखियो है कै रजपूती रूपी चावल़ छड़णा घणा दोरा है क्यूंकै ऐ चावल़ भाल़ां री अणियां सूं छड़ीजै अर ज्यूं-ज्यूं इणां नै सेलां सूं छड़ै त्यूं-त्यूं आ ऊजल़ हुवती जावै-

रजपूती चावल़ रती, घणी दुहेली जोय।
ज्यूं-ज्यूं छड़जै सेलड़ां, त्यूं-त्यूं ऊजल़ होय।।

रजपूती नै ऊजल़ी करणियै नरां नै नमन।

~~गिरधरदान रतनू “दासोड़ी”

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