सूरमदे सुजस

आलाजी बारठ भांडू के घर एक ही समय में दो महादेवियों का जन्म हुआ है। उनके पुत्र गोरजी के घर सूरमदे का जन्म हुआ, जिनकी शादी सूवेरी की तथा दूसरे पुत्र दूलजी के घर मालणदे का जन्म हुआ, जिनकी शादी महावीर टीकमजी कविया के साथ हुई। जिस प्रकार प्रणवीर पाबजी ने अर्ध फेरों में उठकर अपने प्रण की रक्षार्थ प्राण न्यौछावर किए उसी प्रकार टीकमजी ने अर्ध फेरों में उठकर अपने कर्तव्य का पालन किया।

सूरमदे ने अपनी गायों की रक्षार्थ मेहाजल़़ भाटी के अत्याचारों के खिलाफ जमर किया। उनके थांन पर अपनी वेदना मिटाने की मन्नत पूरी होने पर मंडोवर राव जोधाजी स्वयं आए थे और इस मन्नत पूर्ति के उपलक्ष्य में चांचल़वा गांव सांसण समर्पित किया था, जहां आज भी उनकी संतति रहती है। पूरे थल़ी इलाके में लोकदेवी के रूप में पूजित है।

श्री सेणलाराय सेवा संस्थान जुढिया के पूर्व अध्यक्ष आदरणीय तेजदानसा लाल़स चांचल़वा के आदेशों की पालना में “सूरम दे सुजस” लिखी। सगती सुजस माल़ा में से एक पुष्प आपके पठनार्थ एवं श्रवणार्थ-

।।दूहा।।
घर आलावत गोर रै, भांडू पावन भोम।
इल़ सूरमदे ऊजल़ी, कीधी रोहड़ कोम।।1
घरवट ऊजल़ गोर री, थल़वट ऊजल़ थाय।
सतवट सूरम शंकरी, ऊजल़ कुल़वट आय।।2
सिरै सुहेरी सांसणां, लाल़स कव वड लेख।
मोड़ वडो जिथ मात तैं, दुनी कियो प्रब देख।।3
जादम मेहाजल़ जठै, लोपी पुरखा लीक।
सांसण री सुरभ्यां सको, बहियो लेय बधीक।।4
मात सँदेशो मोकल़्यो, सुणियो नहीं सजोर।
झूलण झल़झाल़ां जबर, जिणदिन बैठी जोर।।5
मुरड़ मेहाजल़ मारियो, जादम विमुखो जोय।
जिण दिन जाहर जोगणी, हिव जगती में होय।।6
जोगण विपदा जोध री, सधर हरी सुरराय।
सांसण चांचल़वो सही, पेस कियो पड़ पाय।।7
परवाड़ा परमेसरी, गढवाड़ा नित गाय।
जठै अखाड़ा जोगणी, आप रचै नित आय।।8
वाणी बुद्ध दे बीसहथ, सुभ आखर सुरराय।
गीत सुजस गिरधर कहै, महर तूझ महमाय।।9

।।गीत-प्रहास साणोर।।
धिनो गोर आलोत रै प्रगट भांडू धरा,
चाढणी सरासर सुजल़ चंडी।
बराबर दिपै तूं हेमजा बीसहथ,
मुरधरा रोहड़ां जात मंडी।।10

सईकै चबदमै इकावन साल सुध,
मही धिन आलरी पवित मांडू।
सूरमदे नाम जन जाणियो सांपरत,
भवा तन धारियो आय भांडू।।11

सूरमदे शंकरी सुजस संसार में,
कार निज सेवगां तणा काढै।
सार में रखै निज सांभनैं सायल़ां,
वार झट बिखम री तुंही बाढै।।12

कुंवर हद सुहेरी जोड़ तो कान रो,
निडर नर रायसी जको नामी।
आपरो सुवर जो ओपियो अवन पर,
सधर सूं नजर भर वर्यो सामी।।13

अथग जल़ कूप में कियो तैं ईसरी,
सुथल़ इल़ जेण री भरै साखी।
चांचल़वै विराजी तूठ नै चंडका,
रीझ नैं भैर री बात राखी।।14

मेहाजल़ माचियो कुछत्र मही पर,
रुगट घरवाट री आण रेटी।
रसा पर भाटियां तणी वा रीत तज,
मछर में चारणां माम मेटी।।15

हेर उण सुरभियां हारली हेतवां,
हिवां जद गाम में हुवो हाको।
वारता सांभली बणी विकराल़का,
धारियो शूल़ कर करण धाको।।16

अंग में अगन जद ऊपड़ी अराड़ी,
जोत में भिल़ी जद परम जोतां।
चारण माम नैं राखियो चारणी,
बाघणी रूप में मिल़ी बोतां।।17

मारियो मेहाजल़ पलक में मावड़ी,
खलक रै जोवतां बडो खूनी।
सुछत्री तणी तूं भीर रह सदाई,
जगत में रखै थप बात जूनी।।18

जोवतां वेदना मिटाई जोध री,
कमध मन धारणा अडग कीधी।
मँडोवर छात पढ जाप मुख मातरा,
दुरस उर जातरा राव दीधी।।19

लाल़सा रुखाल़ी रखै नित लोहड़ी
थल़ी में प्रवाड़ो मान ठावो।
जामणी मालणा बिराई जेम ही,
चांचल़वै आपरो थान चावो।।20

दासुड़ी गीध कव सुजस ओ दाखियो,
भरोसो थेट सूं मनां भारी।
कंटका माग रा दुर कर कृपाल़ी,
सताबी नेहाल़ी काज सारी।।21

~~गिरधरदान रतनू “दासोड़ी”

Loading

Leave a Reply

Your email address will not be published.