सूरां मरण सांम ध्रम साटै!!

राजस्थान रै मध्यकाल़ीन इतियास नै निष्पक्ष भाव सूं देखण अर पुर्नलेखन री दरकार है। क्यूंकै आज जिणगत युवापीढी में जीवणमूल्यां रै पेटे उदासीनता वापर रैयी है वा कोई शुभ संकेत री प्रतीक नीं है।
उण बखत लोग अभाव में हा पण एकदूजै सूं भाव अर लगाव अणमापै रो राखता। ओ वो बखत हो जद स्वामीभक्ति अर देशभक्ति एक दूजै रा पूरक गिणीजता हा। जिणांरै रगत में स्वामीभक्ति रैयी उणांरै ईज रगत में देशभक्ति रैयी। भलांई आपां आज इण बात नै थोड़ी संकीर्ण मानतां थकां व्यक्तिवाद नै पोखण वाल़ी कैय सकां पण आ बात तो मानणी ईज पड़सी कै उण मिनखां में त्याग, समर्पण, अर मरण नै सुधारण री अद्भुत ललक ही। इणी ललक रै पाण उवै आज ई खलक में आदरीजै।
उण बखत ऐड़ा मोकल़ा मिनख हुया जिकां बिखम परिस्थितियां में ऊंची ताणी नीची नीं। मोत नै साम्हीं देख अट्टहास कियो पण उदास नीं हुया। वै चावता तो हालात सूं समझौतो कर लेता अर आवण वाल़ी पीढ्यां रा पग बांध जावता पण उवां हीणी नीं भाखी जिणरो साखी आज ई अठै रो संवेदनशील मानखो है जिको इणांरो जस जनकंठां में पिरोय राखै।
ऐड़ी एक गर्विली गाथा है बीकानेर रै दो सपूतां-भोज रूपावत अर महेश सांखला री। बीकानेर रै इण दो महानायकां माथै अजैतक नीं रै बरोबर लिखीज्यो है।
दोनूं ई निकलंक खाग रा धणी हा। दोनूं ई मातभोम रै खातर मरण नै वरण सारू केसरिया कियोड़ा ईज राखता। भोजराज रूपावत, रूपाजी रिड़मलोत री वंश परंपरा में सादाजी रूपावत रा बेटा अर भेल़ू रा ठाकुर हा तो महेश सांखला जांगल़ू रा सांखल़ा पुनपाल री वंश परंपरा में कला सांखला रा सपूत हा।
सांखला जांगल़ू रा शासक रह्या। जांगल़ू नै पृथ्वीराज चौहाण री राणी अजांदे दहियाणी बसायो। अठै कीं दिन दइया शासक रह्या। जिणांरै मुदमुख केसोदादो उपाध्याय हो।
उणी दिनां रूण सूं गाडां गोल़ ले सीहड़दे सांखला रो भाई, रायसी सांखलो अठै आय गोल़वास रह्यो। इणरी बायां साथै दइयां रा कुंवरड़ा बोछरडायां करै। पण सांखला पतल़ा सो करै कांई?
उणी दिनां केसोदादै जांगल़ू री पोल़ आगै आपरै नाम सूं “केसोल़ाव” खुदावणो तय कियो पण दइया नटग्या। इण बात सूं रीसाय केसोदादै सांखल़ां साथै रल़, घात सूं दइयां नै मरा दिया। अठै रा शासक सांखला बणिया। जिकै ‘जांगल़वा सांखला’ बाजै।
कह्यो जावै कै दइयां री हाय सूं केसोदादो तल़ाई खुदावतो बिचै ई मरग्यो हो। लोग तो आ ई कैवै कै जा पछै केसोदादै री संतति में फूठरा मिनख जनमणा बंद हुयग्या–
कुछ काणा कुछ काबरा, केयक रेढारेड़।
दादा देखण आवजै, केसू थारो केड़।।
इणी रायसी री परंपरा में खींवसी, कंवरसी जैड़ा अजरेल हुया। इणी ऊजल़ परंपरा में महेश सांखला रो जनम हुयो।
उण दिनां बीकानेर माथै राव जैतसी रो राज। वो जैतसी, जिणां रातीघाटी रै जुद्ध में काबुल रै मुगल पातसाह कामरान नै आपरी तरवार रो तेज बताय बांठां पग देवण सारू मजबूर कर दियो हो-
करनादे रा कोटड़ा, कोटां काबल़ वट्ट।
राव हकारै जैतसी, भागा कमरा थट्ट।।
जैतसी रै पसरतै सुजस अर बांकम सूं खार खाय वि.सं.1598 में बीकानेर माथै जोधपुर रा राव मालदेव आपरै महाक्रमी सूरां जैता-कुंपा री अगवाणी में हमलो करण सारू आपरी सेना साथै बीकानेर रै गांम सोवै में डेरा दिया अर दबाव बणायो कै राव जैतसी मालदेव रै झंडै नीचै आय जावै। जैतसी जैड़ो अडर इण प्रस्ताव नै नीं मानियो।
सेवट आ तय हुई कै एक’र बीकानेर रै सरदारां सूं सलाह करली जावै। जद ओ प्रस्ताव सरदारां रै साम्हीं आयो उण बखत केई सरदारां कह्यो कै- “ठीक रैसी। क्यूं फालतू में ई एक ई घर रो रगत बहायो जावै।”
आ बात सुण’र उठै बैठे किलेदार महेश सांखला माथो धूणियो। महेश नै माथो धूंणतां देख सरदारां पूछ्यो कै- “महेशजी माथो कीकर धूंणो? इण में कांई अजोगती है? सावल़ ईज है भाई नै भाई रो माथो नीं बाढणो पड़ै।”
आ सुण महेश कह्यो-
“जर जमी जोर री!
जोर गयां और री!!
रसा कंवारी रावतां,
वरै तिको ई वींद।
माथो तो मालकां रो है आपांरो नीं। लागै कै आपनै मरण रो भय है। जणै ई टाबरां दांई बातां करो! भाई ! किसो भाई? ई मालदेव रै बाप गांगैजी नै जोधपुर किण दिरायो? इणी मोटमनै जैतसी—
सांभल़ै वचन मन धिखै क्रन-समोभ्रम,
धरे अत फौज घण मछर धायो।
जैतसी वडै प्रब जाय गढ जोधपुर,
उबेलण राव नै राव आयो।।(खेतसी गाडण)
दूजै कानी ओ मालदेव उणरो ओसाप उतारण नै बीकानेर खोसण आयो है अर आप रातै कोइयां वाल़ा इणरी पगवाह सूं डरग्या!-
‘डर सूं शस्त्र नांखदे,
जिकै किसा रजपूत ?’
म्हैं अठा रो किलेदार हूं। किलो! म्हैं मरियां ई रावजी सूंप सकै। म्हारै जीवता़ं नीं। जिकै मरण सूं डरै, उवै अठै सूं कूच करै अर जिणांनै बीकानेर रै “सौभागदीप” रो दीपक जगमगतो राखणो है उवै केसरिया करै। गढ! रावजी अर रावजी रै बाप दादां रो है। उवै चावै तो किणी नै ई दे सकै पण गिदड़ भभक्यां सूं राजपूत गढ सूंपै ओ पीढ्यां नै कल़ंक है।”
सभा में एक’र तो नीरवता छायगी। कोई कीं नीं बोल्यो।
महेश पाछो बोल्यो-
सूरां रो मरण तो स्वामी रै सटै ईज जगत में सौभै। किणी सूर रै ऊभां उणरो स्वामी चलविचल़ हुय आपरी आन-बाण छोडण सारू सोचै तो आ उण सूर रै सारू मरण सूं बधीक है। महेश रै इण भावां नै समकालीन कवि सूजा बीठू कितरै सतोलै आखरां में पिरोया है कै महेश रै साम्हों ओ मरण महोच्छब रो अवसर आयो तो उवो असमर झाल गर्व रै साथै बोल्यो कै म्हनै मारूराव आ धरती माथै रै सटै सूंपी है-
यूं कहै महेस वडे प्रब आयै,
गह असमर दाखवै गही।
मह मो सांपी राव मारूवै,
माथा साटै जितूं मही।।
महेश सांखला रा ऐ सतोला आखर सुण सेवट भोजराज कह्यो-खमा! महेशजी री बात सोल़ै आना सही है, आपां मालदेवजी री झंडी नीचै नीं बल्कि रणचंडी करनी री झंडी नीचै रैवांला। जुद्ध करांला पण हीणो डाव नीं देवांला।
सेवट आ ईज बात तय हुई के मालदेवजी नै मुंहतोड़ जवाब दियो जावै। जद आ बात कूंपा महिराजोत नै ठाह लागी कै बीकानेर रा बीजा सरदारां रो मतो तो रावजी नै आपांरी बात सूं राजी करण रो हो पण महेश सांखलै बल़ती में पूल़ो नांखियो। आडी रो देवाल़ हुयो। कूंपोजी रीसाय महेश नै समाचार कराया कै- “म्हे भाई-भाई राजी जणै तूं कुण है आडी रो देवाल़? म्हांनै फालतू में लड़ावै।”
आ सुण महेश समाचार कराया कै- “थे रावजी रै भाई पाप रा हो, म्हे धरम रा भाई हां। म्हे लूण खायो है। जठै रावजी रो पसीनो टपकसी उठै म्हांरो लोही झरसी। बीकानेर रो गढ म्हां मरियां मिलसी। म्हां जीवतां नीं।”
राव जैतसी मुकाबलो करण रो द्रढ निर्णय कियो अर गढ रो भार रूपावत भोजराज नै भोल़ाय खुद मालदेवजी रो मुकाबलो करण गया। आम्हां-साम्हां डेरा हुया। राव जैतसी पठाणां सूं घोड़ा लिया जिको कामदारां नै पईसा चूकावण रो कैयग्या पण कामदारां दिया नीं जणै उवै पठाण लारै सोवै गया अर रावजी सूं तगादो कियो। आ सुण रावजी घोड़ां जीण कराय बीकानेर आया अर कामदारां नै फटकारिया। पठाण ई अणी-पाणी वाल़ा हा सो रावजी नै आफत में देख रुपिया लेवण सूं नटग्या। लारै दो च्यार बीकानेर रा सरदारां डेरे में चाल सूं हाको करायो कै रावजी पाछा कोट में बुवा गया। उठै थोड़ी घणी भगदड़ मचगी। अठीनै रावजी रातोरात पाछा सोवै गया पण रात रै अंधारै रै कारण भूल सूं मालदेवजी रै डेरे में बड़ग्या। मालदेवजी अर उणां रा आदमी रावजी माथै टूट पड़िया। मोत नै साम्हीं देख जैतसी न्हाठा नीं, मुकाबलो कियो अर मालदेवजी रै धर्मविरोधी आचरण कारण वीरगत पाई। कवि सूजा बीठू लिखै कै मोत सूं डर’र न्हाठण नै तो न्हाठ सकता पण आ बात उणां सीखी नीं ही। आ बात मालदेवजी ई सीखी जिकै केई वल़ा न्हाठा-
गांगावत जिम मांम गमाड़ै,
करन-समोभ्रम जाय किम।
भाजण तणा ज महणा अणभंग,
जैत न सहिया माल जिम।।
आ खबर बीकानेर पूगी तो गढ में अफरातफरी मचगी। उण बखत भोजराज कह्यो कै-गढ तो रावजी म्हनै सूंपग्या सो म्हैं माथै सटै ई सूंपसूं। जिकै मरण सूं डरो उवै कुशल़ जाओ परा अर जिणां रै नैणां लाज है उवै तरवारां लेवै। हे गढ! तनै जितै डरण री जरूरत नीं है जितै म्हारो सिर साबतो है–
बोहड़ो जिकै मरण सूं बीहै,
रहज्यौ जिकौ ज साथ रहै।
सिर साटै देसी सादावत,
कोटम बीहै भोज कहै।।(राघव बीठू)
उण बखत विशाल सेना रै साम्हीं भोजराज रूपावत अर महेश सांखला आपरै मुट्ठीक मिनखां साथै जिण अडरता सूं मुकाबलो कियो वो आज ई इतियास रै पानां में अमर है तो आ बात ई अमर है कै उण बखत बीकानेर रै केई सरदारां मन माठो कियो तो केइयां घात ई करी। जिकां घात करी उणांनै फटकारतां किणी तत्कालीन कवि खारी बात कैयी पण दुजोग सूं उवा कविता पूरी नीं मिलै। जितरी मिली उवां इण भांत है–
गो रावत वड रंक,
गयो दूदो डंगाल़ी।
गो फाल़स हरराज,
गयो लिछमणियो छाल़ी।
गयो सूम सांगलो,
मोत निजरां जद आई।
गादड़ जगलो गयो,
…….
पण बीकानेर रै गुमेज नै कायम राखण सारू जिकै महावीरां मरण अंगेजियो उणांरो सुजस आज ई कायम है।
~~गिरधरदान रतनू “दासोड़ी”