श्री गणपति चालीसा

श्री गणपति चालीसा
दोहा
एक रदन!करिवर वदन, सदन ज्ञान! शशि-भाल!
विघ्न हरन मंगल करन, शिव गिरिजा के लाल!! १
महागणपतिम् विमल अति, यति मति गति दातार!
तव पद रति रिधि सिधि पतिम्, जयति जयति सुखसार!! २
चौपाई
श्रीगणेश जय!जय गणदेवा!
मात भवानी पितु महादेवा!१
गणाध्यक्ष गजमुख शिवपायक!
द्वैमातुर ! सुर संत सहायक!२
लंबोदर!हेरंब! विघ्नहर!
शूर्पकर्ण! इक-दंत! मनोहर!३
पृथुलकाय!मोदक-आहारी!
गिरितनया शिव गोद विहारी!!४
धूम्र वर्ण !मुदमंगलकारी!!
पिंगल-नयन!प्रणत भय हारी!५
मूषकवाहन!षण्मुख भ्राता!
श्रुति लेखक!वांछित-फलदाता!६
धन वैभव दीर्घायुष दाई!
सुमति सौख्य सौभाग्य प्रदाई!!७
वक्रतुंड!गजशुंड! दयाला!
लंबकर्ण! भक्तन प्रतिपाला!८
स्वस्तिक-चरण! हरण भय भारी!
अशरण शरण! सुवन त्रिपुरारी !!९
बुद्धि विवेक ज्ञान शुभ दायक!
गुणपति! वरमति!विघ्नविनायक!!१०
दूर्वा-दल-अर्चित! गण-नायक!
गद्य-विधायक-श्रुति-परिचायक!११
पृथुतरजठर!जयति विघ्नेशा!
सिद्धिविनायक!काटहु क्लेशा!!१२
दुष्टारिष्ट-विनाशक! दानी!
चिंतनार्थप्रद! जय गुणखानी!१३
भक्त-पाप-नाशी! सुख राशी!
विकट! चतुर्भुज!जय अविनाशी!!१४
सूर्य-कोटि-सम-प्रभा तुम्हारी!
श्रुति-स्मृति-यज्ञ-विभूषित!वारी!१५
सुमुख!कपिल! गजवक्त्र !विधाता!
धूम्रकेतु!वरदायक! त्राता!!१६
कवि! बुधिपति!चातुर! अतिज्ञानी!
विद्या-निधि! वारिधि-शुचि-बानी!!१७
विघ्न-विभंजक!हर-दु:ख हंता!
अंबिकेय! आनंद-अनंता!!१८
विद्याधर-वंदित! सुखकर्ता!
रोग-मृत्य-दु:ख-दारुण-हर्ता!१९
भुक्ति-मुक्ति-दायक! भुजचारी!
रिधि सिधि दोय आप घर नारी!!२०
महाकाव्य-नाटक-प्रिय!स्वामी!
महागणाधिप ! अंतर्यामी!!२१
घूम्रवर्ण!गजकर्ण! गजानन!
चंदन कुम कुम तिलक सुपावन!२२
मस्तक शिशु शशि सुंदर सोहे।
रत्न मुकुट अतिशय मनमोहे!!२३
तिलक ललाट!त्रिपुंड विशाला!
कर डमरू! परशु! करवाला!२४
कुंडल लोल रुचिर अभिरामा।
करि-वर-वदन!सदन गुणग्रामा!२५
सिंदूर लाल विलेपित भालम्!
व्याल-सूत्र उपवीत विशालम्!!२६
झरत शीष अविरल मदधारा!
मणि मौक्तिक माणिक गलहारा!!२७
स्वर्ण मेखला-कटि-शुभ-धारी!
अद्भुत छबि! है नाथ तिहारी!!२८
रूप अलौकिक!अति मनहारी!
आदि-पूज्य-प्रभु आपदहारी!२९
अंग पीतपट मलमल सोहे!
नादप्रतिष्ठित!वंदन तोहे!!३०
भीड़ जुरी भक्तन की भारी!
दश दिगपाल खडे़ प्रतिहारी!३१
स्वर्ण सिंहासन आप पधारो!
सकल मनोरथ हमरे सारो!३२
सुर नर किन्नर ऋषि मुनि ध्यावै!
सुमिरत गणपति दु:ख विनसावै!!३३
बाजत चंग मृदंग मंजीरा!
शंख घोर रव! होत गंभीरा!!३४
ढोल नगारा नौबत बाजा!
स्तवन गान !रत साधु समाजा!!३५
नारद आदि विशारद-सारे!
महिमा कहि कहि “नेति” उचारे। ३६
आरति होय रही सुखकारी!
हरसुत! जय जय !होत तिहारी!३७
नित शुभ लाभ सुलभ तिन केरो!
चरण-कमल-चाकर-जो तेरो!३८
शिव गौरी के सुत अति-प्यारे।
करहु काज सब सिद्ध हमारे।।३९
निधिपति! प्रियपति!जय!बहुनामी!
पातु! माम! “नरपत “प्रणमामी!!४०
दोहा
महागणपतिम् विमलमति, रिधि सिधि पति सुखसार!
रख ” नरपति” रति चरण प्रति, अतिशय जगत उदार!! १
~~©डा. नरपत आशिया “वैतालिक”