श्री हनुमानजी स्तुति – लींबडी राजकवि शंकरदानजी देथा

।।दोहा।।
संकट मोचन बिरदतें, शोभित परम सुजान।
प्रिय सेवक सियारामके, नमो वीर हनुमान।।

।।छंद मोतीदाम।।
नमो महावीर जली हनुमंत।
धीमंत अनंत शिरोमणी संत।।
नमो विजितंद्रिय वायु कुमार।
अकामि अलोभी अमोहि उदार।।

नमो जगवंध्य महा जतिराज।
कपी कुल ताज गरीब निवाज।।
नमो वरदायक वीर वरिष्ट।
उथापण आपद योग अरिष्ट।।

नमो समिरात्मज संकट हारि।
कपीश्वर सुग्रीव के प्रियकारि।।
नमो प्रभु काज उमंगि अपार।
छलांग मे सागर लंघणहार।।

नमो खल अक्षकुमार के मार।
विभीषण का करनार उध्धार।।
नमो हरि वंश उजालणहार।
दशानन दिल-पुरी दहनार।।

नमो शुधले सिय मेटण शोक।
उथापण रावण बाग अशोक।।
नमो अतलीबळ अंजनि नंद।
विधंशण नीच निशाचर व्रुंद।।

नमो जति लख्खन जीवतदाई।
शिलोचय द्रोण संजीवनी लाई।।
नमो सय प्रितम के प्रिय दास।
अदोष अबेध वपु अविनाश।।

नमो सुठी साहस शुर सुजान।
तपो बळ तेज प्रताप निधान।।
नमो रधुनाथ पदांबुजरागि।
शुची स्थितप्रग्न सुशील सुभागि।।

नमो शिव भक्तन के शुभकार।
ईकोदश रुद्रतणा अवतार।।
नमो दु:ख भंजन राघव दुत।
प्रभंजन पुत प्रभाव अभुत।।

नमो सुर-संतनको सुखकारि।
दयांबुध्धि दासन के दु:ख हारि।।
नमो सुमतिप्रद केशरी तन।
मिटावण मोह मदादिक मन।।

नमो अवधेश के भक्त अनन्य।
धुरंधर धम सहायक धन्य।।
नमो दुरितोध दरिद्र दु:खध्न।
पिशाचनि डाकिनी भुत भयघ्न।।

नमो शरणागत के सुख स्थान।
हरि-हर भक्तन के प्रियपान।।
नमो गुण ज्ञान विज्ञान अगार।
रधुपति लख्खन के रखवार।।

नमो वपु सुंदर कंचनवान।
महीधर मेरु समान महान।।
नमो बजरंगी रहावहु बेलि।
सुधारहु ये मम जिंदगी छेल्ली।।

कहे “कवि शंकर” दो कर जोरि।
हे मारुत लाज निभावहु मोरि।।

।।छप्पय।।
मारुति जबर महान, बली बंको बजरंगी।
समिरात्मज स्थितप्रग्न, राम चरणांबुज रंगी।।
आंजनेय अधहरण, देव दु:खीके दु:ख भंजण।
ईश अंश अति उग्र, गर्व दुर्बुध्धि गंजण।।
श्री राम भक्ति रिध्धी सिध्धी दियण, दपेज दर्पतोड़न दसन।
जगवंध प्रभु हनुमान जति, सदा रहो मो पर प्रसन्न।।

।।दोहा।।
पीडे नही पनोति के, कुग्रह नडॆ न कोई।
महावीर हनुमान को, हेते सुमरन होय।

~~लींबडी राजकवि शंकरदानजी देथा

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