श्री हिंगलाज मनावत होरी
दोहा
अंबा जगदंबा जननि, पूजित नवकुल नाग!
फागुन में रंग खेलती, उर धर अति अनुराग!!१!!
उड़ै अबीर गुलाल शुभ, बजै ढोल अरु थाल!
फागुन में अंबा रमें, शोभा बनी विशाल!!२!!
लाल सुकुंकुम थाल भर, सिंदुर लाल कपाल!
लाल चुनरिया ओढ माँ, छिडकै लाल गुलाल!!३!!
मत्तगयंद सवैया
लाल हि चूनर, कोर ‘रु लाल हि लाल हि कंचुकि लाल हि डोरी!
सिंदुर लाल सुबिंदी कपाल , ‘रु लाल हि भाल सुकुंकुम रोरी!
लालमलाल उछाल कियौ नभ भोर रु सांझ समे रंग ढोरी!
थाल अबीर गुलाल लिए कर,श्री हिंगलाज मनावत होरी! १
बाल शशी शुभ भाल विराजत, पाटलमाल गले धरि गौरी!
नौलख संग बिनोद करै उर मोद भरै रसरंग ठिठोरी!
अंबर लाल पताल हु लाल हुई महि लाल ; थी जो कल कोरी!
थाल अबीर गुलाल लिए कर श्री हिंगलाज मनावत होरी!! २
शोणित बीज;विलोचन-धूम्र विदारि दियै पल में बरजोरी!
चंड रु मुंड संहार , पछार दियो ,महिषासुर को सर फोरी!
मात ! महारण लाल करी धर दानव मान दियो तू मरोरी!
थाल अबीर गुलाल लिए कर श्री हिंगलाज मनावत होरी!! ३
बौर रसाल सुश्वेत मनोहर किंशुक केसर को रंग घोरी!
पीत प्रसून कियो सरसों अरु पल्लव पात हरो रस बोरी!
मेघ-शरासन के सतरंगन संग रमे सति! दक्ष-किशोरी!
थाल अबीर गुलाल लिए कर श्री हिंगलाज मनावत होरी!! ४
बादर तान वितान कियौ पुनि जाजम चादर दूब बहोरी!
बुंद तुषारन रत्न लुटावत मात परै नभ स्वर्ण कटोरी!
वा छबि देखि हुओ मन मुग्ध तथा रस लुब्ध जिया ज्यूं चकोरी!
थाल अबीर गुलाल लिए कर श्री हिंगलाज मनावत होरी!! ५
देव ;गंधार; बहार; बिलावल;पंचम; रामकली; नट; गौरी!
दीपक;मेघमल्हार;बसंत;हिंडोल; श्री;भैरव; देस; हिंडोरी!
नारद शारद बीन बजावत तुम्बरु गान करै जय तो री!!
थाल अबीर गुलाल लिए कर श्री हिंगलाज मनावत होरी!! ६
चंग मृदंगम झांझ पखावज बीन सितार बजै पुरजोरी!
डैरव डाक डमाल बजै मुरली मुरचंग लई मति चोरी!!
तान मनोहर गान सुनि गुलतान भयो न कहो जग को री?
थाल अबीर गुलाल लिए कर श्री हिंगलाज मनावत होरी!! ७
डाकिनि शाकिनि भूत पिशाचिनि दानव दैत्य भगै धुनि घोरी!
नौबत झालर शंख बजै रसरंग निनाद मच्यौ चहुकोरी!
फाग महा अनुराग पगो लखि भाग जगो सब देवन को री!
थाल अबीर गुलाल लिए कर, श्री हिंगलाज मनावत होरी!! ८
त्यागि बिमानन को असमानन आन जुरी सुर किन्नर टोरी!
अस्तुति गान करै, तव अग्र सदैव खरै अज विष्णु अघोरी!
दीन अकिंचन की अवलंबन आनंद बांट रही भर झोरी!!
थाल अबीर गुलाल लिए कर, श्री हिंगलाज मनावत होरी!! ९
चौसठ जोगन, बावन भैरव , देव जुरै त्रय -तीस करोरी!
फाग उमंग ;लखि-उछरंग हुए सब दंग गुमान को छोरी!
बानि बखानि सकै नहि वा छबि, कैसे बखान करे मति मोरी!
थाल अबीर गुलाल लिए कर श्री हिंगलाज मनावत होरी!! १०
मात अघात न मोर जिया लखि रंग मनोहर फागुन को री!
भाव तरंगन संग जुड़ै तब चित्र कवित्त रच्यौ रसबोरी!
भूल छमा करिकै सुनियौ जननी ” नरपत्त” कहै कर जोरी! ”
थाल अबीर गुलाल लिए कर श्री हिंगलाज मनावत होरी!! ११
छप्पय
सगत नवेलख, कोटि पंच दस षट चामुंडा!
संग खेलत माँ रंग, दुष्ट खल दानव दंडा!
बाजत चंग मृदंग, रंग दश दिश है छायौ!
हुए सुलोचन भृंग, पद-कमल मन मंडरायौ!
शुभ फाग रच्यौ राजेश्वरी, देवी हम पर रीझिए!
कवि नरपत तव दरसन चहै, हे माॅं कीरपा कीजिए!! १
दोहा
छिड़कत लाल गुलाल नभ, सायं प्रात: काल!
हिंगलाज शिवसहचरी, नरपत कियौ निहाल!! १
कोहलागिरि वासी हुकुम, करो , न बनों कठोर!
दरस पिपासु, दास को, दो चरनन में ठौर!! २
~~©डा नरपत वैतालिक