श्री करनी सुख रूप

लाठी लोवड़ियाल़ री, काठी जिणरी मार।
लागै पण लाधै नहीं, वीसहथी रो वार।।
पग पग पातक पेखियौ, जगै जगै पर झूठ।
इण सूं धर जांगल़धणी, अंब अराधूं ऊठ।।
करनी! जरणी धरणि री, तरणी करणी पार।
दुखहरणी बरणी इहग, सुख करणी संसार।।
खेंचरनी भुचरनी मां, दलणी दुष्ट हजार।
करनी बरनी मुकुटमणि, सरणी-अशरण-सार।।
भव-वैतरणि मझ तरणी, ऊतरणी किम पार।
करनी असरण सरणि मां, जरणी कर उपकार।।
सकलअमंगलहारिणी, मंगल करनी मूल।
श्रीकरनी नभ-चारिणी, आवड़ वपु अणमूल।।
श्री करनीसुख रूप है, आवड़ तणौ सरूप।
गढां मढां अर गामडै, बैठी विध.विध रूप।।
दीन, अकिंचन दास का, एक आसरा मात।
श्री करनी करुणामयी, विपदाहर विख्यात।।
रहै खिवैया रात दिन, मैया करनी मीत।
नैया पार लगावनी, भैया रह निश्चिंत।।
~~नरपत आसिया “वैतालिक”