श्री नरसिँह अवतार की स्तुति – कवि श्री रविराज सिंहढायच (मुळी सोराष्ट्र)

।।बिकट रूप नरसिंघ बणे।।

।।दोहा।।
समय एक प्रहलाद सूँ, कीन असुर अति क्रौध,
कोट बिकट चहुँ दिश करी, जबर घेरी बङ जोध.

पिता दैत निज पुत्र से, बौलत है तिही बैर,
कहै राम तव नाथ कित, तुरंत लैहूँ अब टैर.

कठीन थँभ धखी लाल करी, बाहु खड्ग बिकराल,
हरि बतावहूँ हाल मोही, करौँ पुत्र तब काल.

।।छंद – रेणकी।।
सुनियत अत भ्रमत नमत मन हरिसन, भगत मुगत भगवत भजनं,
सुरपत पत महत रहत रत समरत, सत द्रढ व्रत गत मत सजनं,
धत लखत रखत जगपत उर धारण, सुरत पुकारण श्रवण सुणै,
भट थट असुरांण प्रगट घट भंजण, बिकट रुप नरसिँघ बणै,
जिय बिकट रूप नरसिंघ बणै।।1।।

कडडडड ब्रहमाँड इकि सह कडकत, अडड अडड दधिजल उछलं,
धड धड धर धमक थडड भय भूधर, खडड मेरु शिव ध्यांन खुलं,
तड तड सुर दुंद धडक असुरा तन, गडड हास्य अट हडड गणै,
भट थट असुरांण प्रगट घट भंजण, बिकट रुप नरसिँघ बणै।।2।।

थररररर थंभ फटत धर थर हर, फरर कोट फर हरर फनं,
डर डर मुख वकर भयंकर देखत, झरर तेज झर हरर तनं,
कर कर जन अमर समर खय कर कर, डर डर दैत सु प्राण दणै,
भट थट असुरांण प्रगट घट भंजण, बिकट रुप नरसिँघ बणै।।3।।

कट कट रट भृकुट त्रकुट मुख भयकट, लपट झपट द्रग त्रगट ललं,
झट पट अंग ऊलट पलट कर झंपिय, चपट चोट अति दुपट चलं,
परगट झट पटक हिरण कश्यप प्रभु, खट खट घट नख फटत खणै,
भट थट असुरांण प्रगट घट भंजण, बिकट रुप नरसिँघ बणै।।4।।

धक धक धक धधक धधक रुधिरन धक, थरक ऊझक झक शेष थियं,
शक पक मग अरुण अरक रथ चुकिय, हक बक थक सब असुर हियं,
चक मक उर चमक दमक दैखत चख, भभक भभक रव घोर भणै,
भट थट असुरांण प्रगट घट भंजण, बिकट रुप नरसिंघ बणै।।5।।

घणणणणण शंख दुदूँभी घौरण, भणण वेद मुख ब्रह्म भणै,
झणणणण झणकार झरन फूलन झड, हणण दैत गण अगण हणै,
बणणण बल बाहू गणण कुण बिक्रम, रियण नाद जय जय रयणै,
भट थट असुरांण प्रगट घट भंजण, बिकट रुप नरसिँघ बणै।।6।।

झळझळ अति कमळ न्रमळ मुख झळकत, भळळ तेजबळ प्रबळ भवं,
पळ पळ चल बिचळ रमा नहीँ पैखत, नकळ अकळ हरि रुप नवं,
फल फल मुनि देव सकळ द्रग देखत, पल मह खल दल नाश पणै,
भट थट असुरांण प्रगट घट भंजण, बिकट रुप नरसिंघ बणै।।7।।

जन जन धुनी सजन भगत जन जन प्रति, प्रसन वदन प्रहलाद परं,
तन तन निज शरन चरन निज जन तिहि, धरन उरन शिर भूजन धरं,
प्रमि तन श्रुति भनन सनन सत वन प्रभु, घन “रवि”कवि जय शब्द घणै,
भट थट असुरांण प्रगट घट भंजण, बिकट रुप नरसिंघ बणै।।8।।

।।कळश छप्पय।।
नाथ जयति नरसिंघ, बिकट तन रुप बणावण,
नाथ जयति नरसिंघ, निपट खल झुँड नशावण,
नाथ जयति नरसिंघ, जपत जन कष्टहि जारन,
नाथ जयति नरसिंघ, बाहु बल दुष्ट बिडारन,
त्रय लोक श्याम समराथ तुंही, वेषहि अदभुत्त धर वयं,
कृत अमित नाथ “रवि”कवि कहत, नाथ जयति नरहरि जयं,

~~कवि श्री रविराज सिंहढायच (मुळी सोराष्ट्र)

पुस्तक: श्री नर्मदा लहरी (संपादन/प्रकाशन: श्री शंकरदानजी जेठीभाई देथा लिमडी कविराज)

प्रेषित: कवि प्रवीण मधुडा राजकोट

Loading

One comment

  • रणजीत सिंह सौदा

    आप की ये चारणी साहित्य की सेवा और प्रचार प्रसार के लिए बहोत बहोत धन्यवाद कविराज प्रविण भाई
    आई सोनल आप की खूब प्रगति करे ऐसी माताजी से प्रार्थना करता हू
    नम: सोनलम आई पादारविंदम♨️️✡️

Leave a Reply

Your email address will not be published.