स्तुति – अज्ञात कवि

स्तुति
मढ हूँत बेग पलाण मखत्ती,बावन झूल सहेत बखत्ती
हेकण ताल़ी बाघ हकत्ती, सीस उबेल़ण आव शकत्ती।

साख बीससत काज सरन्नी, बेद किसो जिण जाय बरन्नी
धाबल़ लोवड़ ताय धरन्नी, कवि उबारण आव करन्नी।

शीश चाड जणा साद सुणीजेभारी हुवै कामल़ी भीजे
देबी आय बेग सुख दीजे,किनियाणी अब जेज न कीजे

राज तणो ओ ब्रद सुरराई,धरे साद पीथल़ चौ धाई
शाह नाव डूबंत सहाई आय गमावो मो दुख आई।

सिंभ निसंभ जिसा संधारण,महिषासुर नामी खल मारण
कान हनै हेकण किण कारण,चारण बण दुख भंजिय चारण।
(अज्ञात कवि)

(संकलन: श्री भूदेव आढा)

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