सुकवी गजदान सुणावै रे

khushiyan

सब सज्जनां मन होय सौराई, दुष्ट दौराई दूरै।
भेळप-संप रखै सब भाई, प्रेम भलाई पूरै।
(तो) सुकवी गजदान सुणावै रे, चित चारण वो दिन चावै।। 01।।

हर घर माँहीं हेत-हथायाँ, कुटिल मितायाँ कड़खै।
अणहद माण मिलै घर आयाँ, रंच न जायां रड़कै।
(तो) सुकवी गजदान सुणावै रे, चित चारण वो दिन चावै।। 02।।

कन्या कोख कटै ना कोई, धन्या आग न धावै।
न को डाकटर नकटाई सूं, मूँघी दवा मंगावै।
(तो) सुकवी गजदान सुणावै रे, चित चारण वो दिन चावै।। 03।।

माईतां रो माण मोकळो, जाया-आया जाणै।
बिनणियाँ अर बेट्यां बेहूँ, एक बरोबर आणै।
(तो) सुकवी गजदान सुणावै रे, चित चारण वो दिन चावै।। 04।।

भ्रष्टाचार विहूणू भारत, अनाचार नह आणै।
सद अर शिष्ट आचार सदाई, ठावा रहै ठिकाणै।।
(तो) सुकवी गजदान सुणावै रे, चित चारण वो दिन चावै।। 05।।

पोसाळां सँस्कार पोखणी, शिष्य-गुरू सरसावै।
ग्यान गोखणी गिरा गर्व सूं, भ्रम-तम तोड़ भगावै।
(तो) सुकवी गजदान सुणावै रे, चित चारण वो दिन चावै।। 06।।

अबला सूं सबला बण औरत, कामीडाँ पर कड़कै।
लंपट जार लँगूर अलेखूं, धक-धका-धक धड़कै।
(तो) सुकवी गजदान सुणावै रे, चित चारण वो दिन चावै।। 07।।

कविताचोर रहै नह कोई, चितचोरी मन चावै।
धन-साधन रा चोर धाड़वी, इळ पर आँख न आवै।
(तो) सुकवी गजदान सुणावै रे, चित चारण वो दिन चावै।। 08।।

काळा धन रा चाळा वाळा, पाळा जाय पिंयाळै।
जग रा जाळा झाळा ज्यांनै, पावक झाळ प्रजाळै।
(तो) तो सुकवी गजदान सुणावै रे, चित चारण वो दिन चावै।। 09।।

सेवक नेता अफसर सारा, करसा किसबी कारू।
मन सुध काम करै सब मिल-जुल, होय न हिम्मत हारू।
(तो) सुकवी गजदान सुणावै रे, चित चारण वो दिन चावै।। 10।।

पिरथी सिरै हिन्द जस पूगै, जय-जय हिंद जबानां।
उर-अंजस अपणाय सुणावां, गुणसबदी जसगानां।
(तो) सुकवी गजदान सुणावै रे, चित चारण वो दिन चावै।। 11।।

~~डा. गजादान चारण “शक्तिसुत”

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