सुमिर मन शंकर मंगलकारी!

सुमिर मन शंकर मंगलकारी!
अलख निरंजन, भव भय भंजन, त्र्यंबक हर त्रिपुरारी!१
जय शशिशेखर, जटा गंगधर, भेष भयंकर भारी!
व्याल सूत्र उपवीत धरे तन, आक, धतूर अहारी!२
व्याघ्र चर्म भस्मांग शुशोभित,मुनि मानस मनहारी!
नीलकंठ लावण्यमहोदधि, गिरि कैलाश विहारी!!३
कर पिनाक डमरु डम डिम डिम, भूत प्रेत ले भारी!
नाचत शिव नटराज मनोहर, संग ले गिरिजा प्यारी!४
गाल फुलावै तुरही बजावै, रव भीषण भयकारी!
अदभुत नरतन करत अघोरी, जग जा पर बलिहारी!!५
सांब सदाशिव जटी पिनाकिन, करै वृषभ असवारी!
देव दनुज नर किन्नर सेवित, महिमा शिव की भारी!!६
आशुतोष हर अवढर दानी , करुणाकर कामारी!
दीनबंधु भव कृपासिंधु शिव, नरपत शरण तिहारी!!७
~~©नरपत वैतालिक