सुंधा मढ ब्राजै सगत

छपन क्रोड़ चामुंड अर, चौसठ जोगण साथ।
नवलख रमती नेसड़ै, भाखर सूंधा माथ।।१

झंडी लाल फरूकती, जोत अखंडी थाय।
मंडित मंदिर मात गिरि, राजे सुंधा राय।।२

रणचंडी दंडी असुर, सेवक करण सहाय।
बैठी मावड़ बीसहथ, सगती सुंधाराय।।३

डाढाल़ी दुख भंजणी, गंजण अरियां गात।
भाखर सुंधा पर भवा!, चामंड जग विख्यात।।४

नमो त्रिशुली!खड़गिनी, पाणि-धर खल मुंड।
बीस भुजी वागीसरी, गिरि सुंधै चामुंड।।५

सुंधा गिरि आठूं पहर, भगत जनां री भीड़।
बांटै वैभव बीसहथ, पुनि काटै दुख पीड़।।६

लाल धजाल़ी लाल री, प्रतपाल़ी दिन रात।
चिरताल़ी चामंड भज, सुंधावाल़ी मात।।७

संकट काटण सेवगां, दूथी रा दिन रात।
वरद हाथ रख बीसहथ, मो पर सुंधा मात।। ८

किरपाल़ी करूणा करो, आननि अरुण प्रभात।
दारूण संकट दास रा, मेटौ सूंधा मात।। ९

कुम कुम मय कर सिर धरो, अंब आप अवदात।
बाळक री औ बीणती, सुध मन सुंधा मात।। १०

डाक डमालरु डैरवां, निश दिन होय निनाद।
सुंधागिरि नाचै सगत, अंबा आद अनाद।।११

ऐं ह्री क्लीं चामुंड मां, विच्चै नमूं विशेष।
रक्षा कीजौ रैणवां, बहतां देस विदेस।।१२

नरपत री निस दिन करौ, बाई अंबा बाल़।
सुंधा मढ ब्राजै सगत, तूं भव संकट टाल़।।१३

~~©नरपत आसिया “वैतालिक”

Loading

Leave a Reply

Your email address will not be published.