सूंधाराय रा छंद

।।दूहा।।
विकट पहाड़ां बीच में, विमरां विमल़ बणाय।
ओपै शिखरां अंबका, गिर-सूंधै सुरराय।।
।।छंद – त्रिभंगी।।
सूंधै सुरराई ओपत आई, गिर गूंजाई गणणाई।
कीरत कंदराई धर पसराई, संत किताई सरणाई।
करवै कविताई उर उमँगाई, संकट माई काप सबै।
जय जय चामुंडा वैरि विखंडा, फरकत झंडा आभ फबै।।1
अरि दल़ जो अड़िया झाटां झड़िया, मूरख रड़िया रडबड़िया।
चंड-मुंड सा चड़िया, भू रण भिड़िया, पाव उखड़िया धर पड़िया।
केहर चढ खड़िया जस गल जड़िया, दुष्ट अजड़िया शूल़ दबै।।
जय जय चामुंडा वैरि विखंडा, फरकत झंडा आभ फबै।।2
भूतेसर भांमण जय जग जांमण, कांनड़ कांमण रूप भल़ै।
दीपै नभ दांमण कड़कै सांमण, कंसड़ रांमण दैत दल़ै।
सबल़ापण सांमण प्रभुता पांमण, थिर नभ थामण बिनुं थँभै।
जय जय चामुंडा वैरि विखंडा, फरकत झंडा आभ फबै।।3
मैखासुर मारण धर पख धारण, भार उतारण भोम तणा
सुरपत कज सारण हर दुख हारण, तरणी तारण नको मणा।
जाल़ा जग जारण बुद्ध बधारण, जगत सुधारण भगत जबै।
जय जय चामुंडा वैरि विखंडा, फरकत झंडा आभ फबै।।4
नित ही नवखंडा आप अखंडा, मात ब्रहमंडा बीच मही।
मुरलोकन मंडा खल़ कर खंडा, तन्न प्रचंडा जदै थही।
भांमी भुजडंडा जोगण झुंडा, तूं रच तंडा रास तबै।
जय जय चामुंडा वैरि विखंडा, फरकत झंडा आभ फबै।।5
चंडी चिरताल़ी बूढी बाल़ी, भाखर भाल़ी रास रचै।
किलकै जिथ काल़ी दे दे ताल़ी, निरत उजाल़ी रात नचै।
तीह ठौड़ तिकाल़ी देख कपाल़ी, जोग उथाल़ी रीझ जबै।
जय जय चामुंडा वैरि विखंडा, फरकत झंडा आभ फबै।।6
डमरू डहकारा, घुरत नगारा, बहु झणकारा झींझ बजै।
होवै होकारा वार ही वारा, सद सिंणगारा सगत सजै।
धरणी धमकारा सुर नर सारा, प्रभ अपारा पेख पबै।
जय जय चामुंडा वैरि विखंडा, फरकत झंडा आभ फबै।।7
अंतै अभिलासी दे उजियासी, अरज उपासी छंद अरपै।
स्हायक सुखरासी विघन विनासी, दरस पिपासी तो दरपे।
गिरधर गुण गासी, अहनिस आसी, उरां हुलासी करत अभै।
जय जय चामुंडा वैरि विखंडा, फरकत झंडा आभ फबै।।8
।।छप्पय।।
गिर-सूंधै सुरराय, शिखर राजै सुररांणी।
विकटं अनड़ां बीच, विमर निज वास बणांणी।
बहु उथियै वणराय, खल़क नित निरझर खाल़ा।
जोगण चौसठ झूल़, खमा बिच खेतरपाल़ा।
नित रमै रास नवलख उठै, सेवा सुर नर सेवियां।
गीधिये परस पावां गुणी, दरस किया सह देवियां।।
~~गिरधरदान रतनू दासोड़ी