सुरा सप्तक
कवत्त
दारू री दिन रात, विदग्ग की बातां बाचो।
व्हालां दो बतल़ाय, एक गुण इणमें आछो।
सूखै कंठ सदाय, घूंट इक भरियां गैरो।
जाडी पड़ज्या जीब, चरित नै बदल़ै चैरो।
उदर में जल़न आंतड़ सड़ै, पड़ै नही पग पाधरो।
किण काज आज सैणां कहो, इण हाला नैं आदरो।।1
काढी चतुर कलाल़, कहण री बातां कूड़ी।
सूगलवाडो साफ, दखां जिथ उपज दारूड़ी।
नीच चीज मँझ नांख, आसव रो घड़ो अणावै।
गुणियण बिनां गिलाण, विटल़ नैं पैक बणावै।
तर तर बखाण दारू तणा, नरां वडां मुख न्हाल़िया।
झूठ री नहीं इक जाणजो, खोटी के घर खाल़िया।।2
पीधां सूं उतपात, मिनख के वडा मचावै।
निबल़ो पडझ्या निजर, नीच संग नाच नचावै।
ओछी बातां आख, लाख री ईजत लेवै।
सदा गमावै साख, वाट पण ऊंधी बेवै।
सैण नैं गिणै अरियण समो, रेस देवण नैं रीसवै।
गुण एक इसो मानां गहर, दारू में नहीं दीसवै।।3
घूंट एक घट ढाल़, बोलै फिर देखो बाड़ो।
नीच ऊंच डर नाय, करै फिर कोय कबाड़ो।
भलपण सारी भूल, बिरड़ के काज बिगाड़ै।
दिल ढाकी सह दाख, असँक फिर जबर उगाड़ै।
आपनै सदा साचो अखै, कैवै बसती कूड़ियो।
सैण री सान लेवै सदा, दूठ मिनख दारूड़ियो।।4
निज नारी पर रोस, खीझियो नितऱो खावै।
जिण रो हर कज जोय, विदक दिन रात विगोवै।
आवै ओ अधरात, सदन तूफान सरीखो।
बटका भरतो बोल, तोत में रैवत तीखो।
कामणी डरप कानै रहै, बीहा रहे बाकोटिया।
सुरा री बात किण कज सही, खंच खंच भाखै खोटिया।।5
दरद गमावण दवा, केक नर दाना कैवै।
इण सारू ई आप, लुकी नै हाला लैवै।
गमै पैल तो गरथ, दूसरी सुध बुध देखो।
सोल़ो लगै सरीर, छेद फिर काल़ज छेको।
रोग रो जोग जुड़ियो रहै, सुरापांन रै स्वाद में।
साम रै दिया नाही सरै, मरै बिनां ई म्याद में।।6
करण हथाई काज, भाव सूं बैठै भेल़ा।
तण तण ऊंची तांण, सज्जन मन करण समेल़ा।
बण यारां रा यार, जांण घण हेत जतावै।
पुरसै कर कर प्यार, खार पण ढकियो खावै।
ऊठसी जदै करसी अवस, धन लारै झट धूड़िया।
छीपिया नहीं रहसी छता, देखो नर दारूड़िया।।7
~~गिरधरदान रतनू “दासोड़ी”