चौहान सूरजमल हाडा बूंदी

बून्दी का राव सूरजमल हाडा (सूर्यमल्ल) प्रसिध्द महाराणा सांगा की महाराणी कर्मवती का भाई था और सांगा के स्वर्गवास के बाद दो छोटे राजकुमार विक्रमादित्य और उदयसिंह की रक्षा व सम्हाल रणथम्भौर के किले में रहकर करता था। महाराणी कर्मवती भी वहीं रहती थी। राणा सांगा के बाद रतनसिंह द्वितीय मेवाड़ का महाराणा बना तो उसने कोठारिया के रावत पूर्णमल को रणथंभौर भेजकर बादशाह महमूद का रत्न जटित ताज और बेशकीमती कमरपट्टा, जो कि उसने महाराणा सांगा से हारने के बाद उनको भेंट किया था, अपने पास मंगाना चाहा, जिसे देने से महाराणी ने मना कर दिया तो इस बात से रतनसिंह सूर्यमल पर कुपित हुआ। इससे पहले भी सूर्यमल द्वारा महाराणा के टीके में प्रसिध्द घोड़ा “लाल-लश्कर” और “मेघनाद” हाथी को नही भेजने के कारण वह खार खाये बैठा था। उस समय बून्दी राज्य मेवाड़ के अधीन था तब महाराणा ने सूर्यमल को चित्तौड़ बुलाया परन्तु धोखे से मारने की आशंका को भांप कर सूर्यमल टालम टूली करके नहीं गया। अंततः वि. सं १५८८ की गर्मी के प्रारम्भ मे ही महाराणा रतनसिंह शेर की शिकार के बहाने से बून्दी की तरफ रवाना हुआ तब सूर्यमल का भी महाराणा से मिलना अनिवार्य हो गया। दोनों का मिलाप बूंदी से दस कोस दूर “बाजणा” मे हुआ। महाराणा मस्त हाथी पर सवार था और उन्होंने हाथी को सूर्यमल पर झौंका परन्तु अपनी सतर्कता से सूर्यमल बच गया। महाराणा ने कहा कि हाथी का का कसूर था, अब हाथी पर नही बैठैंगे व घोड़े पर बैठकर रावत पूर्णमल को इशारा किया कि सूर्यमल को मार दे, परन्तु पूर्णमल से कुछ नही हुआ तब महाराणा ने अपना घोड़ा सूर्यमल पर झपटाकर तलवार से भयंकर वार किया। उसी समय पूर्णमल ने भी एक तीर मारा जो सूर्यमल की छाती फोड़ कर निकल गया। सूर्यमल ने घाव लगने के बाद भी दौड़कर पूर्णमल को कटार से मारा। जब महाराणा ने पूर्णमल की मदद करने हेतु दूसरा वार सूर्यमल पर करना चाहा तो उसने कटार का एक हाथ उनकी छाती में ऐसा मारा कि महाराणा भी मारे गये।
प्रसिद्ध इतिहासकार श्यामलदास जी लिखते हैं कि मारे जाने के समय पहला वार किसका और किस तरह हुआ इसके लिए कुछ नही कहा जा सकता परन्तु यह सत्य है कि उसी समय तीनों ही वीर मारे गये।
(वीर विनोद भाग द्वितिय प्र. खंड पृ. सं. 4 व 8)
“मुंहता नैणसी री ख्यात” (ग्रंथांक 48) संम्पादक बद्रीप्रसाद साकरिया, राजस्थान प्राच्य विद्या प्रतिष्ठान जोधपुर के पृ. सं. 92 व 97 पर।
बात हाडा सूरजमल नारायणदासौत री राणाजी रतनसी सांगावत रो मामलो हुऔ तिण समै री में यह घटना और विस्तार पुर्वक लिखी है एंव वीरविनोद में भी नैणसी की ख्यात का ही लेख है।।
इस रोमांचक छलाघात में सूर्यमल ने जिस बहादुरी के साथ महाराणा को अपनी कटार से मारा उसका वर्णन जैसा प्रसिध्द संत अलूनाथ जी बापजी नें किया है वैसा ही नैणसी की बात व ख्यात मे मिलता है।
।।गीत।।
अलुआंणै पगै अंगि उघाड़ै,
विणि हथियारां वसत्र विणि।
जेसाहरौ दिअंबर जाणै,
जाते दीठौ घणै जणि।।1।।
वटुऔ तेग कटारी वींटी,
खाटी रही ऊपरै खाट।
मुड़तौ आखड़तौ सूरजमल,
विण पैठो छांडे खित्र वाट।।2।।
मछरीकै आयै सूरिज मल,
भुजिडंडे न कियौ भाराथ।
हाथै नह मिऴियौ हाथुकै,
हिऴियौ डंड लगाड़ै हाथ।।3।।
रचनाकाल वि. सं.1588
।।गीत।।
चहुवांण तणां पुरसा तन चौरंग,
त्रिजड़े आंक वऴै तिरछै।
सुजड़ी सुरिजमालि रतनसी,
पाड़ियौ उडियौ हंस पछै।।1।।
सिर खंड गयै भगवती सूरा,
भ्रमतै देह न कर भ्रमियौ।
केवी गह समरसी कऴौधर,
गै आतमा पछै गमियौ।।2।।
सुत नारायण वहंते सारै,
अदभुत गति दाखै अपलि।
चंचल गयै सैलगुर चकरवति,
मारीयौ राइ कटारमलि।।3।।
आवाहै प्रतिमाऴी आहवि,
सघण सहै समसेर सर।
गै वप नाथ महारिप गिऴियौ,
नमो पराक्रम सूर नर।।4।।
प्रेषित: राजेन्द्रसिंह कविया (संतोषपुरा – सीकर)