ऐसा छोड़ने वाला नहीं मिलेगा
महाकवि सूर्यमल्ल मिश्रण जितने महान कवि थे उतना ही तेज उनका मिजाज था, झट से बिगड़ जाता था। राजकुमार भीमसिंह की बारात में बांसवाडा गए वहां बूंदी के आमात्य बोहरा रतनलाल की किसी बात पर नाराज़ हो गए और तुरंत वहां से प्रस्थान का मन बनाया। राजा रामसिंह ने मना किया मगर रूठ कर रवाना हो गए। जब रास्ते में रतलाम के राजा बलवंत सिंह ने यह सुना कि सूर्यमल्ल लौट रहे हैं तो उन्होंने पांच मील की दूरी तक सामने आकर महाकवि की अगुवाई की। मीसण को पुरी मान मनोव्वल के साथ राजा रतलाम लाये और बड़े सत्कारपूर्वक अपने यहाँ रखा। बूंदी से रूठे हुए थे इसलिए आराम के साथ रतलाम में कई दिन रहे पर पावस ऋतू के आगमन अवसर पर मयूरों को बोलते हुए सुना। कवि मन ने तत्काल ही अपना निर्णय सुना दिया कि “बूंदी जास्यां, म्हने बूंदी का मोरयाँ की हर आवे छे” (बूंदी जाउंगा मुझे वहां के मयूरों की याद आ रही है। ) इस पर राजा बलवंत सिंह ने कहा कि ‘नहीं’ इस तरह नहीं जाने दूंगा।
तीसरे दिन पूरा दरबार लगा कर राजा ने कहा-“सूर्यमल्ल जी आप यदि रतलाम में बिराजें तो मैं आपको दस हजार रुपयों की आय वाली जागीर दे सकता हूँ।” कवि ने राजा के प्रस्ताव को अनसुना कर दिया। जब यह बात बूंदी के राजा रामसिंह ने सुनी तो तुरंत स्वयं ने पत्र लिख कर हरकारे के हाथों रतलाम भेजा जिसमे बूंदी लौटने का आग्रह था। पत्र पाते ही सुकवि कूच की तैयारी करने लगे। इसी समय रतलाम के राजा ने भेरजी पासवान को कवि के पास भेज कर कहलवाया कि “बूंदी मत जाओ! और हमसे पच्चीस हज़ार की जागीर ले लो!” इस प्रस्ताव को भी कवि ने यह कहते हुए ठुकरा दिया कि “क्या करूँ राजा रामसिंह के बिना मेरा दिल नहीं लगता है।” अंत में राजा बलवंत सिंह ने अपने सामंत सबल सिंह और भीमसिंह को भेजा कि जाकर कवि को यहीं रहने के लिए मनाओ। दोनों ने आकर बहुत समझाया और अंत में यह कहा कि याद रखना ऐसा कोई ओर देने वाला नहीं मिलेगा। सुकवि ने तमक कर कहा कि “प्रथ्वी बहुत बड़ी है इसलिए वदान्य राजा तो ओर कहीं मिल जायेंगे पर आप लोग भी मेरी बात याद रखना कि मेरे जैसा नहीं लेने वाला (छोड़ने वाला) और नहीं मिलेगा।” इतना कहकर बूंदी के लिए प्रस्थान कर गए।