सूर्यमल्ल जी मीसण रा मरसिया – रामनाथ जी कविया
मिल़तां काशी माँह, कवि पिंडत शोभा करी।
चरचा देवां चाह, सुरग बुलायौ सूजडौ।।१।।
निज छलती गुण नाव, मीसण छौ खेवट मुदै।
अब के हलण उपाव, सुकवी भरतां सूजडौ।।२।।
करता ग्रब कविराज, मीसण नित थारौ मनां।
सुरसत दुचित समाज, सुकवी मरतां सूजडौ।।३।।
दै गरूड खग मौड, मेर पहाडां मांनजै।
मीसण कवियां मौड, सूरग पहुँतौ सूजडौ।।४।।
देस कविंद दुजाह, रहिया सो आछा रहौ।
सामंद गुण सुजाह, तौ मरतां बिनस्यौ तदिन।।५।।
करवा अपकाजाह, सप्पूती धारै सकल़।
रजवाडा राजाह, सब जग जांणै सूजडा।।६।।
थई मृत्यु थारीह, कुंण मेटै किरतार सूं।
खतम लगी खारीह, सुणता कानां सूजडा।।७।।
जिणसूं उजल़ जात, दिस दिस सारै दीसती।
रैणव थारी रात, सुकवि न जनम्यौ सूजडा।।८।।
थूंक्यौ थूथकारोह, गाडण बीकाणै गुड्यौ।
ह्वै जग है कारोह, सुकवी मरतां सूजडौ।।९।।
जल़ कायब जस जोग, ऐ सब साथै ऊठियां।
भामी कीरत भोग, सुरग सिधांता सूजडा।।१०।।
~~रामनाथ जी कविया