टाबरियां रो संकट

लारलै पांच-सात-दस महीनां में अखबारां री खबरां अर अठी-उठी घटती घटणावां री बोहळायत रै बीच अेक तथ इयांकलो उभर’र सामी आयो है, जिणरो चिंतण करतां गैरी चिंता में पड़ज्यावां। कानां नै सुणेड़ी पर भरोसो कोनी हुवै तो आंख्यां नै सामै दीखती अर कागजां पर लिख्योड़ी पर भेरोसो कोनी हुवै। मन अर मगज तो जाबक काम करणो छोडद्यै। मिनखा-सभाव अर मिनखा-परगत रा विरोळकारां जकी बातां मिनख अर मानखै नै समझण सारू बताई, अबार तो बै बीतेड़ी बातां सी लागण लागगी। मिनख-मनोविज्ञान वाळां री बातां ई टेम चूकती सी लागै। विकास री आंधी दौड़, तकनीकी री ताबड़तोड़ अर मा-बाप री भागदौड़ रो नतीजो ओ है कै परिवार नाम री संस्था रो सित्यानास होवण लाग रियो है। ढंगढाळो इयांकलो है कै नयी पीढी रो बाळपणो पलक झपकतां किसोर अर जवान हुवतो ई दीखै। आ त्वरा जवानी में किसी रुकै, बितरी ई बेगी प्रौढ अर बूढापै सूं गळबांथां घाल लेवै। कैवण रो मतलब ओ है कै लोकमानस, लोकधारणा अर आपणी परापरी मान्यतावां रै हिसाब सूं जका मापदंड उमर अर समझ, उमर अर आंगिक विकास, उमर अर अल्हड़ता सारू गढेड़ा हा, वांरी प्रासंगिकता दिनोदिन खतम ई समझो। समै सूं पैली स्याणा होवता टाबर खुद रै साथै परिवार, समाज अर सामाजिक तानैबानै साथै खतरनाक खेल खेल रिया है। टेम रैवतां नीं चेत्या तो इसी हुवैला कै खाय न कुत्ता खीर। इण बात नै सावळसर समझण सारू आपनै फ्लैशबैक में लेज्याऊं अर फटाफट आपरै पैली देख्याभाळ्या कीं बिडरूपा चितराम आपनै भळै दिखाऊं-

अेक आठवीं जमात में भणणियो टाबर, उमर 12-13 साल रो हुवैला। टाबर आपरै घरै, आपरै कमरै में कम्प्यूटर माथै इंटरनेट चलावै। रात रा रोट्यां जीमण रो बगत हुग्यो। टाबर री दादी टाबर रै कमरै में जावै, पोतै रै सिर पर हाथ फेरै, लाड करै अर कैवै- बेटा! मोड़ो हुग्यो, रोटी जीमलै। ‘आऊं दादी, बस पांच मिनट!’ कैवतो टाबर दादी नै भेजद्यै अर खुद पाछो अंतरजाळ रै जंजाळ में फंसज्या। दादी कई ताळ उडीक-उडीका’र दुबारा आवै। सागण ई बात। ‘थूं चाल दादी, आयो ई’ कैय’र पाछो कोनी आयो। अबकाळै दादी आपरै माइतपणै रै हक सूं पोतै माथै रीस करती उणरो हाथ पकड़’र माड्याणी उठावण री खपत करै। पण गजब ढहज्यावै। कमरै में अेक ‘धड़ाम’ करतो धमाको हुवै अर दादी रा आंतडा़-ओझरा बिखर ज्यावै। पोतै रै हाथां आपरी दादी री जीवणजेवड़ी काळ रो गास बणै। खबर पढतां ई थरणां कांपण लागज्यावै। आठवीं में भणतो घर रो लाडलो टाबर, घर में उण सारू सबसूं प्यारी उणरी दादी। रोटी जीमण रो आगह करती आपरी दादी रै गोळी मार दी। इस्यो के हो बीं इंटरनेट में कै रोटी अर रिस्तां सूं मोटो अर महताऊ बण’र वां पर भारी पड़्यो। सोचणो लाजमी है। दो-अेक घटणावां ओर देखो। चिंतण अर चिंता बाद में भेळी ई कर लेस्यां।

सातवीं जमात रो अेक टाबर, उमर कोई 11-12 रै लगैटगै। पोसाळ में गुरुजी किणी बात सारू टोक दियो, डांट-फटकार लगादी। टाबर उणसूं इतरो आहत हुयो कै उणनै आपरो जीवण हराम लागण लागग्यो। इण काची उमर रो बो टाबर जीवण री बजाय मरण नै अंगेज लेवै अर घर में आपरै कमरै में फांसी रै फंदै सूं लटक पोसाळ री टोका-टाकी सूं पिंड छुडा लेवै। इतरो ई नीं मरणै सूं पैली आपरी मौत रो कारण बतावण सारू, आपरी आखरी इच्छा बतावण सारू अर आपां सगळां नै सोचण नै मजबूर करण सारू अेक ‘सुसाइड-नोट’ लिखै। मीडिया उण सुसाइड-नोट नै सगळै प्रसारित करै। ‘सुसाइड-नोट’ री भासा, भाव, टाबर रै मन में पळती प्रतिशोध री भावना अर नोट लिखण रै पाछै उणरै मंतव्य माथै विचार करां तो चितबगना हुज्यावां। पढै जको ई चिंता रै हिंडोळै चढज्यावै। ईं अबोध उमर में टाबरां री इयांकली घटणावां हर कोई नै बेचैन करै। अेक-आध और देखो।

जमात नवमी रा टाबरिया। बायां-भाया भेळा भणै। भेळा रमै, बातां करै। कदे-कदास लड़-भिड़ ई लेवै। अेक दिन दोपारां री छुट्टी रो टेम। पोसाळ में बणी पाणी री टंकी लारै गोळी चालै। धमाकै सूं सगळा चिमकै अर दौड़’र घटणा-थळ पर पूगै तो देखै कै अेक टाबर रै हाथ में पिस्तोल है। उणरी गोळी सूं सामनै जमीन पर पड़्यै टाबर री जीवणलीला पूरी हुगी। गोळी चलावणियो टाबर बिल्कुल बेखोफ खड़्यो है। उणरै चेहरै पर कोई डर ना पछतावो। पुलिस आवै, पूछताछ में नवमी में पढणियो 13-14 साल रो बो टाबर गोळी चलावण रो कारण बतावै, उणनै सुण्यां कान खुस’र हाथ में आज्यावै। गोळी चलावण रो कारण नीसरै दोवां रै बिचाळलै ‘रोमांस’, प्यार, अफेयर में तीसरै रो तड़को। गोळी चलावणियै टाबर री दलील सुणो- ‘‘साळो म्हारी गर्लफ्रेंड रै नेड़ो आयग्यो हो। बीं पर डोरा डाळतो। बा ई म्हनैं छोड’र बींरै ई साथै बिलमगी। म्हारै आ बात जची कोनी अर म्हैं मारग साफ कर दियो।’’

इयांकली ई अेक जाणकारी और साझा करतां इण समस्या री जड़ कानी जोवण री खेंचळ करस्यां। अबार अेक दिन कीं शिक्षक-साथियां रै साथै बैठ्यां स्कूलां-काॅलेजां रै माहौल री बातां चालगी। मिडल स्कूल रो प्रधानाध्यापक अर म्हारा मित्र बीच में ई म्हांनै टोकता बोल्या कै थे सैकण्डरी, सीनियर सैकण्डरी अर काॅलेज री बात करो। म्हारी आठवीं री पोसाळ में ई ओ ई कबाड़ो है। बां बतायो कै लारलै दिनां औचक बस्ता जांच में छठी सूं आठवीं रै टाबरां सूं वांरा बस्ता हा जियां रा जियां ले लिया अर सघन जांच करीजी। बस्तां रै मांय जकी लिखित सामग्री मिली, बा इतरी डरावणी है कै टाबरां रै माइतां री नींद उचट ज्यावै। छठी, सातवीं आठवीं रा टाबर क्लास में भणाई री जाग्यां ‘लव-लेटर’ लिखै। निजू डायर्या लिखण रो अेक न्यारो ई चाळो चाल्यो है। प्रधानाध्यापकजी बतायो कै लगैटगै 10 मांय सूं दो टाबरां रै इयांकला कागज लिख्योड़ा मिल्या। कइयां रै बस्तां में अेक-दूजै रा कागज संभाळ’र राखेड़ा मिल्या। बां कागजां में चाहत रै साथै शिकायतां ई लिखेड़ी मिली। के-के बतावां। खैर!

ऊपर म्हैं च्यार घटणावां रो जिकरो आपरै सामी कर्यो है। च्यारूं ई घटणावां छठी सूं नवीं कक्षावर्ग रै अर 10 सूं 14 रै आयुवर्ग रै टाबरां सूं जुड़्योड़ी है। आ उमर आपणी निजरां में अबोध, मासूम अर बेफिक्र खेलण-खावण री उमर है। इण उमर में तो प्यार-प्रेम, रोमांस रो काम ई कोनी। मरण-मारण री बात, आहत होय अपघात करण री बात, परकत रै उपादानां अर चिड़ी-कागलां रा चितराम कोरण री बजाय ‘लवलेटर’ लिखण री बात, इंटरनेट पर चेटिंग करतां बाधक बणती दादी रै गोळी मारण री बात, आं सगळी बातां पर समाज नै सावळसर विचार करणो पड़सी। कुणसी इयांकली परिस्थितियां आयगी, जकी आपणै टाबरां रो बाळपणो निगळगी अर डकार तक नीं ली। इण सारू जबाबदार कुण है ? माईतां री कितरी जबाबदेही है ? समाज अर समाजू व्यवस्था री कितरी जिम्मेदारी है ? अै सगळा सवाल आपणै सामी जवाब री उडीक में खड़्या है।

गैराई सूं विचार करां तो मिनख दो भांत सूं सीखै। पैली है ‘तुकमतासीर’ अर दूजी है ‘देखत-सीखत’। तुकमतासीर तो जलम रै सागै खून में, वंश-परंपरा में आवै, इयां मानीजै। अर जे विज्ञान री मानां का मनोविज्ञान री मानां तो कीं चीजां तो मिनख रै मूळ सभाव में है। समै रै साथै वांरो विकास हुवै। पण बोहळी चीजां इयांकली हुवै जकी टाबर आपरै माईतां सूं, घर-परिवार सूं, संगी-साथियां सूं, परिवेश सूं अर पोसाळ सूं सीखै। पैली तो आपणै अठै संयुक्त परिवार हुया करता। टाबरां नै आपरै साईना-दाईनां सूं लेय’र बडे-बूढां ताणी सगळी उमर अर अनुभव रा लोग उणी घर में अेक साथै अपणायत रै साथ मिल ज्याता। कोई उणनै छोटी सी गळती पर टोकतो-डांटतो तो दूजो पाछो पुचकार लेवतो। टाबर नै आपरी गळती रो अहसास ई हो जावतो अर डांट-फटकार रो लेवल मन री गांठ बणण री सूरत में नीं जावतो। क्योंकै टाबर नै जे बींरो पिता का काको कीं कैवतां डांटतो तो उणी बगत उणरो बडो बाप, दादो, दादी आद उणनै पुचकारता अर प्यार सूं समझावता कै दुबारां इयांकलो काम मत करजे। टाबर नै इणसूं जीवण रा संस्कार अर ग्यान मिलतो। पण आज अेकल परिवारां मांय माता-पिता अर अेक टाबर का पछै दो टाबर। टाबरां रै बिचाळै ल्होड़-बडाई दो अर तीन बरस, ज्यादा सूं ज्यादा च्यार बरस। बाप टाबरां रै उठ्यां पैली काम पर जातो रैवै अर वांरै सोयां पछै पाछो आवै। कठै-कठै दोनूं मा-बाप कामकाजी, दोनूं ई दिनूंगै आप-आपरी भागदौड़ में, आॅफिस री टेंशन में अर आपसी उळझनां में उळझेड़ा घर सूं निकळै अर रात पड़्या पाछो बावड़ै। टाबर कोई आया का बाई रै भरोसै पळै। मा-बाप रो प्यार-दुलार कदे-कदास ई मिलै। दादा-दादी अर नाना-नानी साल में अेक-दो बार मिलै।

नौकरी पर काम करण वाळी बाई सूं टाबर कुणसा संस्कार अर कुणसी वंश-परंपरा रो पाठ पढै ? आ बात आपां खुद सोच सकां। टाबर कुण री गोद में बड़’र मचळै। कुणसूं जिद्द करै ? कुण उणनै मनावै ? कुण उणरी गळत बात नै ई साची बता’र बडोड़ां नै डांटतो उणरो भीड़ू बणै ? कुण उणनै प्यार सूं उणरी भूल रो अहसास करावै। कुण उणनै बडेरां री उदार अर उदात्त ख्याता-बातां री अखियातां सुणावै ? म्हारै साथै महाविद्यालय में प्राध्यापक अेक मेडम अेक दिन आपरै टाबर री शिकायत करतां बतायो कै अब उणरो बेटो पांच साल रो होग्यो अर जिद्दी होयग्यो। टाबर रो जिद्द कांई ? वो आपरी मम्मी रै हाथ सूं बण्योड़ो परांठो खावणो चावै। वो आपरी मम्मी सूं रोजीना कैवै कै सगळा टाबरां री मम्मियां खुद आपरै हाथ सूं खाणो बणावै अर खिलावै। म्हैं कैयो मेडम इणमें तो अजोगती अर जिद्द वाळी कांई बात ? तो मेडम रो जबाब सुण’र इतरी हैरानी हुई कै पूछो मत। मेडम कैयो कै ‘म्हनैं तो रोटी बणावणी आवै ई कोनी’। अबै सोचो टाबर ताणी घोड़ा बण’र उणनै पधेडि़यां चढावण री बातां तो घणी अळगी रैयगी, वो आपरी मम्मी रै हाथ री रोटी कोनी खा सकै। मेडम रै घरवाळो कठै दूजै प्रदेश में नौकरी करै। मेडम काॅलेज जावै। घरै ‘आया’ पूरै दिन उणरो ध्यान राखै। टाबर कियां संस्कार सीखसी ?

लेख री लंबाई नै देखतां सार रूप में बात करां तो कामकाजी जोड़ां नै आपरै टाबरां री सावळसर परवरिश करण सारू आपरै बूढै माईतां नै आग्रहपूर्वक साथै राखणा पड़सी। खुद नै आपरी दिनचर्या में टाबरां ताणी समै तय करणो पड़सी। खुद माईतां नै आपरी खींचताण अर तनाव नै टाबरां रै सामी तो कम सूं कम दूर राखणा पड़सी। टाबरां री बाळसुलभ जिद्द नै प्यार सूं पूरी करणी पड़सी पण हरेक जिद्द नै पूरी करण री भूल सूं बचणो पड़सी। आपां आपणी भाग-दौड़ में टाबर री वाजिब-गैरवाजिब हरेक जिद्द नै पूरी करण री भूल कर’र उणनै व्यावहारिक ग्यान सूं अळगो राखां। उणरो ई नतीजो है कै टाबर बेटेम स्याणा होवण लागग्या अर आपणै हाथां सूं निकळण लागग्या। घर में टीवी, इंटरनेट अर मनोरंजन रा ओर ई कई उपकरण हुवै। टाबर वांरो कितरो अर कियांकलो इस्तेमाल करै, इणरो समै-समै पर ध्यान आपांनै राखणो पड़सी। कणां-कणां टाबरां रा बस्ता अचाणचकै संभाळो, उणमें मिलण वाळी हरेक चीज री बारीकी सूं जांच करो। पोथियां अर काॅपियां में लिख्योड़ी सामग्री नै गौर सूं पढो। पूरै धीरज रै साथै टाबरां सूं उण बस्तै री हर चीज अर लिख्योड़ी बातां पर विचार-विमर्श करो। जे मारग सूं भटकतो लागै तो उणनै प्यार सूं समझाओ। आपणै अठै अेक मोटी आफत आ है कै आपां कैवतां संको करां अर लड़ता संको कोनी करां। मतलब ओ कै टाबर नै उणरी भूल रो ओळभो देवण अर समझावण में तो ठा नीं क्यूं संको कर बोकरां अर जद लाव पगां सूं निकळती दीखै जणां उणसूं बाथेड़ा करां पछै बात बणण री ठौड़ बीगड़ै ई है।

सोचो ! जकै टाबर री सही-गळत हरेक जिद्द नै थे बिनां सोच्यां थांरी भागदौड़ रै चक्कर में पूरी करी, उणरी गळतियां नै नजरअंदाज करी। आज वो अेकदम सूं थांरी ऊंची बोली सुण’र आक्रामक हुवैलो, कुंठित हुवैलो अर टीवी में क्राइम-पैट्रोल, सीआईडी अर ना जाणै कुण-कुणसा सीरियलां सूं सिख्योड़ी तरकीबां अपणावतो आपरी रीस उतारणो चावैला ई। बात तो जितरी करां उतरी ई आगै बधती रैवैला पण म्हारो मंतव्य अेक संकेत करणो हो, बाकी तो हर घर री अर हर आदमी री आपरी न्यारी समझ है अर न्यारी स्याणप है। आपरी समझ मुजब सोचो अर बेटेम स्याणा होवता टाबरां रै बाळपणै नै बचाओ। बाळपणो बच्यां ई आगला सगळा सराजाम सही चालसी अर संस्कृति रो बचाव हो सकेला नीं तो बेड़ो मझधार में ई हलोळा खावैलो, तीर हाथ नीं आवैलो। जय राजस्थानी।

~~डाॅ. गजादान चारण “शक्तिसुत”

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