श्री हिंगलाज मनावत होरी

मत्तगयंद सवैया
लाल हि चूनर, कोर ‘रु लाल हि लाल हि कंचुकि लाल हि डोरी!
सिंदुर लाल सुबिंदी कपाल , ‘रु लाल हि भाल सुकुंकुम रोरी!
लालमलाल उछाल कियौ नभ भोर रु सांझ समे रंग ढोरी!
थाल अबीर गुलाल लिए कर,श्री हिंगलाज मनावत होरी! १

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बसो नित मो चित श्री हरि : छंद – मत्तगयंद

!!छंद – मत्तगयंद!!
मंजुल श्यामल गात मनोहर नाथ दयानिधि देव मुरारी !
है लकुटी कर ;पीत धरे पट कामरि ओपत सुंदर कारी!
गुंजन माल गले बिच सोहत मोर पखा युत पाग सु धारी!
केशव नंद किशोर! बसो नित मो चित श्री हरि रासबिहारी!! १]…]

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