वाह रे कळजुग रा कंवरां

वाह रे कळजुग रा कंवरां
थांरा वारणा लेऊं कै लत्ता
बेटी रा बापां!
कांण कायदां री बेकुंटी ई काढ़ दी
कीं तो राम नैं माथै राख्यो हुतो
सगळा ई बैठ’र सोवै पण
थे तो ऊभा रा ऊभा ई सोयग्या
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काल कवि – डॉ. रेवंत दान बारहट

समय के महासमर में
मैंने शाश्वत शब्दघोष किया है
शब्द मेरे शस्त्र रहे हैं
शब्द शक्तियां आत्मसंयम रही हैं
मैं सनातन साक्षी हूं
असंख्य सभ्यताओं
संस्कृतियों की श्रृंखलाओं
शक्तिशाली सत्ताओं का,[…]
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चारण – डॉ. रेवंत दान बारहठ

सृष्टि रचयिता ने
स्वर्ग के लिए जब पहली
बार रचे थे पांच देव –
देवता,विद्याधर,यक्ष,चारण और गंधर्व
तभी इहलोक पर रचा था केवल
एक नश्वर मनुष्य
मगर मनुष्य ने खुद को बांट दिया था
क्षत्रिय,बामण,वैश्य और शूद्र में
कहते हैं कि राजा पृथु ने
स्वर्ग के देवताओं में से
चारण गण को आहूत किया था[…]
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जे थूं म्हारो हाथ पकड़ले!

जे थूं म्हारो हाथ पकड़ले!
आथड़तो
पड़तो
थम जाऊं
रम जाऊं
नैणां गहर समंद में
लहर नेह री तिर जाऊं
जे थूं म्हारो हाथ पकड़लै!
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जाजम जमियोड़ी बातां में–

थांरी जीवटता
अर हूंस थांरली
कष्ट सहण री खिमता थांरी
अबखायां सूं हंस-हंस बंतल़
करी हथाई विपदावां सूं
परड़ां वाल़ै भांग फणां नै
बूझां वाल़ो तकियो दे नै
मगरां वाल़ी सैजां ऊपर
पलक बिंसाई
खा फूंकारो
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