शिव-चालीसा

चौपाई
जय! शिव शंकर! जयति! महेशा!
आशुतोष! मृड! अनघ! उमेशा!१!
अंग-गौर-कर्पूर-सुपावन!
रूप कोटि कंदर्प लजावन!!२
भस्म-अंग-धुरजट-बिच-गंगा!
नीलकंठ! गौरी-अरधंगा!!३

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भैरव आरती

दोहा
पुर-काशी-वासी! बटुक!, अविनाशी! चख-लाल!
खर्पराशि! सुखराशि! विभु, नाशी भय भ्रम-जाल!!१

भैरव! भयहर! भूतपति!, रुद्र! वेश-विकराल!!
दास जानि करियो दया, व्योमकेश! दिगपाल!!२

भैरव-आरती
आरती! मधुर उचारती, भारती! भैरवनाथ तिहारी!
दुर्धर-रव! खप्पर कर! अभीरव! जय शमशान विहारी!!१[…]

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करूं आरती थांरी मां!

।।आरती-सरलार्थ सहित।।

आरतजन अवलंबन अंबा! भुजलंबा! भयहारी! मां!
जय जगदंबा! कृपा कदंबा! सदासुमंगलकारी! मां! १
करूं आरती थांरी मां! (२)
आर्त दु:खी जनों की अवलंबन (सहारा) हे अंबा! भुजलंबा! भय को हरने वाली मां! आप ही कृपा का कदंब वृक्ष हो! आप सदैव सुमंगल करने वाली हो! हे मां मै आपकी आरती करता हूंँ!१![…]

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वेलि क्रिसन रुकमणी री – महाकवि पृथ्वीराज राठौड़

महाकवि पृथ्वीराज राठौड़ रचित अनुपम प्रबंध काव्य।
भावार्थ – श्री मातु सिंह राठोड़
छंद वेलियो

।।मंगलाचरण।।
परमेसर प्रणवि, प्रणवि सरसति पुणि
सदगुरु प्रणवि त्रिण्हे तत सार।
मंगळ-रूप गाइजै माहव
चार सु एही मंगळचार।।1।।

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मैं हड़वेची बैठी हूं ना!

[…]जब यह बात जोमां की मा ने सुनी तो उन्होंने कहा कि-
“मैं हड़वेचा आई हुई हूं, जाई नहीं। जमर मैं नहीं करूंगी जमर मेरी बेटी जोमां करेगी। वो भी तो तो इसी उदर में लिटी है। ”

जब यह बात जोमां ने सुनी तो उन्होंने कहा कि-
“मिट्टी लेने के लिए हड़वेचा जाने की क्या आवश्यकता है? मैं खुद साक्षात हड़वेची यहां बैठी हूं तो फिर वहां जाने की क्या आवश्यकता है? वैसे भी हड़वेची मैं हूं मेरी मा नहीं! अतः जमर मेरी मा क्यों करेगी ? जमर तो मैं करूंगी।[…]

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ईश्वर से प्रश्न पूछने के साहसी भक्ति कवि ईसरदास. . .। – तेजस मुंगेरिया

…इसी भक्ति काव्य की डिंगल़ काव्य परम्परा में ईसरदास भादरेश का नाम अग्रगण्य है। ईसरदास के भक्ति काव्य में समन्वय का महान् सूत्र समाहित है जो तुलसीदास के समन्वय से भी व्यापक व विशाल है। यहाँ इन दो कवियों के काव्य में तुलना करना इसलिए समीचीन है क्योंकि अक्सर तुलसी के संबंध में हजारीप्रसाद द्विवेदी के समन्वय विषयक तथ्य को चटकारे लेकर सुनाया जाता है जबकि ईसरदास के काव्य में शामिल नाथपंथी प्रभाव तथा एक ही ग्रंथ (हरिरस) में निर्गुण तथा सगुण का समान रूप से पोषण तथा सबसे अलहदा बात कि मातृ काव्य (देवियाँण) तथा वीर काव्य (हाला झाला रा कुण्डलिया) का तुलसी के काव्य में सर्वथा अभाव है।…

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श्री राम वंदना

।।छंद-मधुभार।।
करुणा निकेत, हरि भगत हेत।
अद्वैत-द्वैत, सुर गण समेत।।१
हरि! वंश हंस। अवतरित अंश।
नाशन नृशंश। दशकंध ध्वंश।।२
वर प्रकट वंश! ईक्षवांकु अंश!
पृथ्वी प्रशंश! वरदावतंश।।३
रघुनाथ राम। लोचन ललाम।
कोटीश काम। मनहर प्रणाम।।४

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प्रभू पच्चीसी

।।गुणसबदी।।
पख लीनी पहळाद री पाधर, दैत रो गाळण दंभ।
नरहरि बण नीकळयो नांमी, खांमद फाड़ण नैं खंब।
नमो थारी लीला न्यारी रे, सकै कुण पूग संसारी।।१

प्रेम सूं कीर सुणावतो प्रागळ, गोविन्द री गुणमाळ।
मोचिया पाप गणिका रा माधव, सुणती बैठ संभाळ।
नमो थारी लीला न्यारी रे, सकै कुण पूग संसारी।।२[…]

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सांईदीन दरवेश – एक ओल़खाण

मध्यकालीन राजस्थानी काव्य में एक नाम आवै सांईदीन दरवेश रो। सांईदीनजी रै जनम विषय में फतेहसिंह जी मानव लिखै कै- “पालनपुर रियासत रै गांम वारणवाड़ा में लोहार कुल़ में सांईदीनजी रो जनम हुयो। सांईदीनजी बालगिरि रा चेला हा। ”

सूफी संप्रदाय अर वेदांत सूं पूरा प्रभावित हा। भलांई ऐ महात्मा हा पण पूरै ठाटबाट सूं रैवता। अमूमन आबू माथै आपरो मन लागतो। तत्कालीन घणै चारण कवियां माथै आपरी पूरी किरपा ही। आपरी सिद्धाई अर चमत्कारां री घणी बातां चावी है। जिणां मांय सूं एक आ बात ई चावी है कै ओपाजी आढा नै कवित्व शक्ति आपरी कृपादृष्टि सूं मिली। सांईदीनजी रै अर ओपाजी रै बिचाल़ै आदर अर स्नेह रो कोई पारावार नीं हो।[…]

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चारण भगत कवियां रै चरणां में

चारण भगत कवियां रै चरणां में सादर-

।।दूहा।।
चारण वरण चकार में, कवि सको इकबीस।
महियल़ सिरहर ऊ मनूं, ज्यां जपियो जगदीश।।1
रातदिवस ज्यां रेरियो, नांम नरायण नेक।
तरिया खुद कुल़ तारियो, इणमें मीन न मेख।।2
तांमझांम सह त्यागिया, इल़ कज किया अमांम।
भोम सिरोमण वरण भल, निरणो ई वां नांम।।3
जप मुख ज्यां जगदीश नै, किया सकल़ सिघ कांम।
गुणी करै उठ गीधियो, परभातै परणांम।।4
भगत सिरोमण भोम इण, तजिया जाल़ तमांम।।
गुणी मनै सच गीधिया, रीझवियो श्रीरांम।।5[…]

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