भैरव चालीसा

चौपाई
जय भैरव! काशीपुर स्वामी!
करतल-सुलभ-सिद्धि! बहुनामी!१
त्रिभुवन-निलय !श्वान-असवारा!!
कलि-मल-संहारक! फणि-हारा!२
कापालिक! दिगवसन! अघोरा!
श्यामल गौर स्वरूप किशोरा!!३
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चौपाई
जय भैरव! काशीपुर स्वामी!
करतल-सुलभ-सिद्धि! बहुनामी!१
त्रिभुवन-निलय !श्वान-असवारा!!
कलि-मल-संहारक! फणि-हारा!२
कापालिक! दिगवसन! अघोरा!
श्यामल गौर स्वरूप किशोरा!!३
दोहा
पुर-काशी-वासी! बटुक!, अविनाशी! चख-लाल!
खर्पराशि! सुखराशि! विभु, नाशी भय भ्रम-जाल!!१
भैरव! भयहर! भूतपति!, रुद्र! वेश-विकराल!!
दास जानि करियो दया, व्योमकेश! दिगपाल!!२
भैरव-आरती
आरती! मधुर उचारती, भारती! भैरवनाथ तिहारी!
दुर्धर-रव! खप्पर कर! अभीरव! जय शमशान विहारी!!१[…]
।।छंद – त्रिभंगी।।
नाकोडा वाला, थान निराला, भाखर माला बिच भाला।
कर रुप कराला, गोरा काला, तु मुदराला चिरताला।
ध्रुव दीठ धजाला, ओप उजाला, रूपाला आवास रमा।
भैरु भुरजाला, वीर वडाला, खैतर पाला दैव खमा।
जी खेतर पाला घणी खमा…।।1।।[…]
।।छंद नाराच।।
भयांण तेह जांण गेह, रूप नेह रच्चये।
सुरा सलेह मन्न मेह, पनंगेह परच्चये।
तईम तेह सेह जेह, गेह गेह गल्लऐ।
गुणै गहीर सूर धीर, खेत वीर खिल्लऐ।।1।।[…]
।।छंद – त्रिभंगी।।
मामा मतवाल़ा, गोरा काल़ा, लाज रूखाल़ा, लटियाल़ा।
कायम किरपाल़ा, भीम भुजाल़ा,विरद विलाल़ा,विरदाल़ा।
जोगेस जटाल़ा, मन मुदराल़ा, आभ उजाल़ा,भाण समो।
जय जय जग सामी, अमर अमामी ,नामी भैरव नाथ नमो।।१
जिय भेल़े भैरव भ्रात नमो।।[…]
।।छंद – रेंणकी।।
ढम ढम बजि ढोल घूघरों घम घम रम रम खेतल रास रमें।
धम धम पग धरत धरत्रि धूजत, सुर देखत नृत तेण समें।
बम बम बम बोल बोलिया बावन, रम झम रम झम रमतोड़ा।
डम डम डम डाक डहकिया डैरव नम नम भैरव नाकोड़ा।।१[…]
।।भैरवानाथ।।
।।छप्पय।।
डमर डाक डम डमक, घमर घूघर घरणाटै।
पग पैजनि ठम ठमक, स्वान झमझम सरणाटै।
द्युति आनन दम दमक, रमक गंध तेल रऴक्कै।
गयण धरा गम गमक, खमक मेखऴी खऴक्कै।
सम समक संप चम चम चमक, धमक बहै रँग धौरला।
मोरला काम कज चढ हद मदद, (रे) गुरज लियाँ कर गौरला।।1।।[…]
।।छंद रोमकंद।।
थपियो थल़ मांय अनुप्पम थांनग,
छत्र मंडोवर छोड छती।
थल़वाट सबै हद थाट थपाड़िय,
पाट जमाड़िय बीक पती।
दिगपाल़ दिहाड़िय ऊजल़ दीरघ,
भाव उमाड़िय चाव भरै।
कवियां भय हार सदा सिग कारज,
कोडमदेसरनाथ करै।।1[…]
चारण देवी उपासक। भैरूं देवी रो आगीवाण सो चारणां रै भैरूं रो जबर इष्ट। चारण भैरूं नैं मामै रै नाम सूं अभिहित करै। मामै रै भाणजा लाडैसर सो घणै चारणां नैं भैरूं रै सजोरै परचां रो वर्णन किंवदंतियां में सुणण नैं मिल़ै। ऐड़ो ई एक किस्सो सींथल़ रा वीठू चारण नारायणसिंह मूल़ा रो है। मध्यकाल़ री बगत सींथल़ रै मूल़ां रै वास में मानदान अर नारायणसिंह दो भाई हा। नारायणसिंह रो ब्याव बूढापै में होयो। घर में कोई खास सरतर नीं हो पण इणां रै गोरै भैरूं रो घणो इष्ट। एकर मेह वरसियो पण हलोतियै रो कोई साधन नारायणजी कनै नीं। उणां गोरै रै थान में जाय धरणो दियो।[…]
» Read moreहेलो सुणै हमेश,मामा थूं रहजे मदत।
वळे न चहूं विशेष,करजै इतरो काळिया॥71
तन सिंदूरी तेल,बळे चढावूं बाकरा।
छाक धरूंला छेल,कर किरपा अब काळिया॥72
लाखां दाखां लार, राखां नाखां तज लवँग।
तिण रो मद है त्यार,कहूं छाक ले काल़िया॥73 […]