रतनू सलिया रंग!!

महाकवि सूर्यमल्लजी मीसण रो ओ दूहो–
हूं बलिहारी राणियां, जाया वंश छतीस।
सेर सलूणो चूण ले, सीस करै बगसीस।।
मध्यकालीन राजस्थान में घणै सूरां साच करर बतायो। उणां री आ आखड़ी ही कै किणी रो लूण हराम नीं करणो अथवा अवसर आया लूण ऊजाल़णो।
यूं तो ई पेटे घणा किस्सा चावा हुसी पण चाडी रै रूपावत खेतसिंहजी री लूण रै सटै नींबाज ठाकुर सुरताणसिंहजी रै साथै प्राण देवण री बात घणी चावी है—
चाडी धणी पखां जल़ चाढै,
रूपावत रण रसियो।
वर आ अपछर नै बैठ विमाणां,
विसनपुरी जा वसियो।।[…]