मृगया-मृगेन्द्र – महाकवि हिंगऴाजदान जी कविया

।।मृगया-मृगेन्द्र।।

।।रचना – महाकवि कविया श्रीहिंगऴाजदानजी।।

अथ मृगया-मृगेन्द्र लिख्यते

।।आर्य्या।।
गंडत्थल मढ लेखा, रजत रोलंभराजि गुंजारन
शोभित भाल सुधान्सु, नमो मेनकात्मजा वन्दन।।1
पर्वतराज की पुत्री के पुत्र गणेश को नमस्कार है जिनके कपोलों पर बहते मद की सुगंध से आकृष्ट हुए भौरों की गुंजार सदा रहती है और जिनके ललाट पर चन्द्रमा सुशोभित है।

।।दोहा।।
गनपति गवरि गिरीश गुरु, परमा पुरुष पुरान।
श्री सरस्वती करनी सकति, देहु उकति वरदान।।2
गणेश, गौर(पार्वती), महादेव, लक्ष्मी, विष्णु, सरस्वती, करणी माता, शक्ति मुझे उक्ति (काव्य रचना) का वर दान दे।
[…]

» Read more

यह गरल है जो पच नहीं सकता!

…जब हम हमारे मध्यकालीन इतिहास के धुंधले पृष्ठों को पलटते हैं तो उन पर ऐसी-ऐसी आभामंडित कहानियां अंकित है जिन्हें पढ़कर हमारे मनोमस्तिष्क में उन हुतात्माओं के त्याग, महानता तथा क्षमाशीलता के सुभग भावों की अमिट छाप स्वतः ही छप जाती है। क्षमा वीरस्य भूषणम् की उक्ति इनके चारू चरित्र की सहगामिनी परिलक्षित होती है।

ऐसी ही एक घटना से आपको परिचित करवा रहा हूं।

कच्छ धरा में एक गांव है मोरझर। मोरझर पुराना सांसण। यहां सुरताणिया चारण रहते हैं।[…]

» Read more

जोगमाया रो जस

।।छद – भुजंगी।।
नमो हींगल़ा मात प्रख्यात नामी।
पुणा मातरी ख्यात नै कूण पामी।।
रसा देवियां देव सिर्ताज राजै।
भणै जाप प्राणी तणा पाप भाजै।।१।।

मही थान बीलोचिसथान मंडै।
खमा कोपियां केवियां सीस खंडै।।
वसू वीदगां जात चित्तार आई।
अगै धार ओतार हजार आई।।२।।[…]

» Read more

माताजी का छंद भुजंगी – कवि दुला भाया “काग”

।।छंद – भुजंगी।।
नमो ब्रह्मशक्ति महाविश्र्वमाया,
नमो धारनी कोटि ब्रह्मांड काया।
नमो वेद वेदांत मे शेष बरनी,
नमो राज का रंक पे छत्र धरनी।।1

नमो पौनरूपी महा प्राणदाता,
नमो जगतभक्षी प्रले जीव घाता।
नमो दामनी तार तोरा रूपाळा,
नमो गाजती कालिका मेघमाळा।।2[…]

» Read more

पाबू जी रा छन्द – कवि पूंजराज जी हड़वेचा

।।छन्द – भुजंगी।।
कया वैण सो काळवीं क्यों न केनों,
धरा भूप ले जावंत बाल धेनों।
महा दुष्ट खींची गयो मांह मोड़ै,
जबे पाल घोड़ी मांगी हाथ जोड़ै।।१।।

द्यों काळवीं मुज्झ नों बैण दीजै,
करै वाहरु धेन रा बोल कीजै।
भणै अम पाबू सुणो हो भवानी,
ममु वेण दीजै तमों साच मानी।।२।।[…]

» Read more

अम्बिका इन्द्रबाई – गौरीदान जी कविया

गौरीदान जी कविया गांव कुम्हारिया रा वासी माँ करणी जी रा मोटा भगत अटूट आस्थावान विचारधार अर दृढ धारणा रा धणी माँ भगवती भव भय भंजनी रा भजन मे मगन रहिया अर सदा सर्वदा माँ री शरणागत सेवा साधना मे जीवन समर्पित राखियो, आज री चितारणी में गौरीदान रो भुजंगप्रयात छंद।

।।छंद भुजंगप्रयात।।

क्रमं युक्त दोशी कलि काल आयो।
ज्वितं पात यूथं अनाचार छायो।
धरा भार उतार वा मात ध्याई।
बिराजै तुहीं अम्बिका इन्द्रबाई।।[…]

» Read more

मतदातावां सूं अरज

।।छंद – भुजंगी।।
सुणै बैठनै जाजमां बात सारी।
करै पीड़ हरेवाय हाथ कारी।
जको जात -पांति नाहि भेद जाणै।
तिको आपरै द्वार पे त्यार टाणै।
विचारै सदा ऊंच नै साच वैणो।
दिलां खोल एड़ै नैय वोट दैणो।।[…]

» Read more

श्री दुर्गा-बहत्तरी – महाकवि हिंगऴाजदान कविया

।।छन्द भुजंगप्रयात।।
मनंछा परब्रह्म हिंगोऴ माता।
समैं सात पौरां रमै दीप साता।
जंबू दीप में जाम एको जिकांरो।
दिशा पच्छमी दूर प्रासाद द्वारो।।1।।

जिको धोकबा काज जावै जमातां।
अपा पाप थावै बजै सिध्द आतां।
करामात री बात साखात कैई।
सता मातरी चन्द्र कूपादि सैई।।2।।[…]

» Read more

भवानी नमो – हिंगऴाजदानजी कविया सेवापुरा

।।छंद भुजंङ्ग प्रयात।।

भवानी नमो स्वच्छ श्रृंगार अंगा !
भवानी नमो सुन्दरी शिम्भु संगा !
भवानी नमो कासरिद्रारी हन्ता !
भवानी नमो आसि आभा अनंता !!1!!

भवानी नमो ब्रह्मजा बुध्दि धामा !
भवानी नमो शिम्भु संहारि स्यामा !
भवानी नमो भूत कैलास बासी !
भवानी नमो ओज अम्भोज आसी !!2!![…]

» Read more

छंद भयंकर भ्रमर भुजंगी – कवि भंवरदान माडवा “मधुकर”

।।छंद – भ्रमर भुजंगी।।
जटा धार जंगा, गले में भुजंगा, सती नार संगा, गंगा धार गाजे।
खमे भ्रंग खारी, जमे कांम जारी, भमे रीस भारी लमे चन्द लाजे।
हुरां बीच हाले, चँडी साथ चाले, घटां प्रेम घाले, पटां प्रीत पावे।
अहो ओम कारा, सदा तो सहारा, मधुकर तमारा गुणां गीत गावे।।
कवी जो मधूको, धणी हेत धावे।

नचे खेल नट्टा, छिले अंग छट्टा, गिरां देत गट्टा, सुघट्टा, सुहाणी।
वजे नाद वाजा, अनेकां अवाजा, तपे भांण ताजा तके रीठ तांणी।
धुबे धोम धारां तिके थै ततारां, हजारां तरां ताल, भूमी हिलावे।
अहो ओमकारा, सदा तो सहारा, मधुकर तमारा गुणां गीत गावै।।[…]

» Read more
1 2