मृगया-मृगेन्द्र – महाकवि हिंगऴाजदान जी कविया

।।मृगया-मृगेन्द्र।।
।।रचना – महाकवि कविया श्रीहिंगऴाजदानजी।।
अथ मृगया-मृगेन्द्र लिख्यते
।।आर्य्या।।
गंडत्थल मढ लेखा, रजत रोलंभराजि गुंजारन
शोभित भाल सुधान्सु, नमो मेनकात्मजा वन्दन।।1
पर्वतराज की पुत्री के पुत्र गणेश को नमस्कार है जिनके कपोलों पर बहते मद की सुगंध से आकृष्ट हुए भौरों की गुंजार सदा रहती है और जिनके ललाट पर चन्द्रमा सुशोभित है।
।।दोहा।।
गनपति गवरि गिरीश गुरु, परमा पुरुष पुरान।
श्री सरस्वती करनी सकति, देहु उकति वरदान।।2
गणेश, गौर(पार्वती), महादेव, लक्ष्मी, विष्णु, सरस्वती, करणी माता, शक्ति मुझे उक्ति (काव्य रचना) का वर दान दे।
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