इंद्र बाईसा का शिखरणी छंद – हिंगऴाजदानजी कविया

।।छंद-शिखरणी।।
ओऊँ तत्सत इच्छा बिरचत सुइच्छा जग बिखै।
लखै दृष्टि सृष्टि करम परमेष्टि पुनि लिखै।।
तुहि सर्जे पालै हनि संभाऴै उतपति।
अई इन्दू अम्बा जयति जगदम्बा भगवति।।1।।
क्रतध्वंसी विष्णु कमलभव जिष्णु स्तुति करै।
हिमांसू उष्णांसू पदम-पद पांसू सिरधरै।।
हगामां हमेशां बजत त्रिदवेसां नववती।
अई इंन्दू अम्बा जयति जगदम्बा भगवती।।2।।