भगवा

कुण नै चिंता करम री, करै सो आप भरेह।
पण इण भगवा भेख नैं, काळो मती करेह।।
काळा, धोळा, कापड़ा, या हो नंग धड़ंग।
भारत में है भेख रो, सूचक भगवों रंग।।
भगवैं नै भारत दियो, सदा सदा सम्मान।
भगवैं भी राखी भली, इण भारत री शान।।[…]

» Read more

देशनोक-दर्शन – भलदान जी चारण

।।छप्पय।।
पोखर मथुरापुरी, सेत बंधण रामेसर।
कर बदरी केदार, अधिक आबू अचलेसर।
पापां गमण प्रयाग, गया गंगा गोमती।
मुकतिदेण सुरमात, सकल महिमा सुरसत्ती।
कुरूक्षेत्र नाथ कासी सकल,
जात घणा जुग जीविया।
करनला आप दरसण कियां,
कवि केता तीरथ किया।।[…]

» Read more

बोलत नाह ऊचारत फूं फूं – कविराजा बांकीदास आसिया

यह काव्य महलों में एक महारानी जी सें सम्बन्धित है। एक राणी जी अपनै पति कै दर्शन करके ही दंत मंजन करती थीं। उन्होंने हमेशा की तरह अपने पति के जागने का इतजार करतै हुए अपनी नज़रों को पति के मुख पर केन्द्रित करते हुए दासी सें दंत मंजन का कटोरा मांगा। उस दिन दासी नयी थी सो उसनै भूल सै चूनै से भरा कटोरा आगे कर दिया। राणी जी नै चूना लेकर मुह में बिना देखै डाल दिया जिससे मुह में अत्यधिक जलन होनै लगी जिस कारण वो बार-बार मुह में पानी डाल कर गरारै करने लगी। जब यह यह द्रश्य राजा साहब नै दैखा तब उन्होंने एक काव्य की पंक्ति बोली। “बोलत नाह ऊचारत फूं फूं। “ इस काव्य को कवि बांकीदास नै बनाया था। ओर राजा मान सिंह ने इसका उच्चारण किया था।[…]

» Read more

नमण धरा नागौर

नमण धरा नागौर, और कुण तो सूं आगै।
संत भगत सिरमौर, तोर जस जोती जागै।
तूँ मोटी महमाय, उदर मीरां उपजावै।
गुण गोविंद रा गाय, दाय नह दूजो आवै।
जहं सूरवीर पिरथी सिरै, (अरु) देव-देवियां अवतरै।
गजराज आज घण गरब सूं, (थनै) क्रोड बार वन्दन करै।। 01।।[…]

» Read more

मेहाई-महिमा – हिगऴाजदान जी कविया

।।आर्य्या छन्द।।
पुरूष प्रराण प्रकती, पार न पावंत शेष गणपती।
श्रीकरनी जयति सकत्ती, गिरा गो अतीत तो गत्ती।।1।।

।।छप्पय छन्द।।
ओऊंकार अपार, पार जिणरो कुण पावै।
आदि मध्य अवसाण, थकां पिंडा नंह थावै।
निरालम्ब निरलेप, जगतगुरू अन्तरजामी।
रूप रेख बिण राम, नाम जिणरो घणनामी।
सच्चिदानन्द व्यापक सरब,
इच्छा तिण में ऊपजै।
जगदम्ब सकति त्रिसकति जिका,
ब्रह्म प्रकृति माया बजै।।2।।[…]

» Read more

करणी माता रा छप्पय – कविराजा बांकीदास आसिया

।।छप्पय।।
सुक्रम रुपां शुध्ध, तत्व रुपां जग तारण।
सद रुपां साख्यात, मोद रुपां दुःख मारण।
विद रुपां चंडीका विस्व रुपां जग वंदत।
निगम सरुपां नित्त, ईश सेवक आणंदत।
सोहत त्रगुण रुपां सदा, जय रुपां खळ जारणी।
ईश्वरी शिवा रुपां अकळ, करणी मंगळ कारणी।।1।।[…]

» Read more

श्री चाळकनेची रे रास रमण रा छप्पय – कवि कृपाराम जी खिडीया

।।छंद आर्या।।
मद मदिरा रस मत्ती, अत्ती आपाण अंक अहरती।
करत विलास सकत्ती, चाळराय मंढ चाळकना।।1।।

।।छप्पय।।
बन समाज अति विपुल, सदा रितुराज छ रित सुख।
लता गुल्म तरु तरल, माल मिलि मुखर सिलीमुख।
सुरभि धनष गव शशक, सूर चीता पंचाणण।
एण विविध मृग रवण, भवण भावण भिल्ली गण।
निश्वास निकुर निर्दलणियत, तै आधौ फर बेत तळ।
चाळ्ळकराय अदभूत रमै, थटि नाटक मनरंगथळ।।1।।[…]

» Read more

छप्पय

।।छप्पय।।
सब सेणां रै साथ, प्रात उठ दरसण पाऊं।
मात चरण में माथ, नेम सूं नित्त नमाऊं।
सुरसत देवै सुमत, कुमत मेटै किनियाणी।
जुगती सबदां जोड़, उरां उकती उपजाणी।
जगदम्ब कृपा रै जबर बल, पंगु पहाड़ां पूगियो।
कर जोड़ नमन गजराज कर, आज भाण भल ऊगियो।[…]

» Read more

विश्नोई संप्रदाय के प्रवर्तक गुरू जांभोजी एवं उनके शिष्य अलूनाथ जी कविया

🌺🌺कविराज अलूजी चारण🌺🌺

गुरु जांभोजी के शिष्य तथा हजुरी चारण कवि अलूजी चारण जिनको चारणी साहित्य में सिद्ध अलूनाथ कविया कहा गया है।
अलूजी चारण के गुरु जांभोजी की स्तुति में कहे गये कवित, जिसमें जाम्भोजी को भगवान विष्णु व कृष्ण के साक्षात अवतार मानकर अभ्यर्थना की है।

।।छप्पय।।
जिण वासिग नाथियो, जिण कंसासुर मारै।
जिण गोकळ राखियो, अनड़ आंगळी उधारै।।
जिणि पूतना प्रहारि, लीया थण खीर उपाड़ै।
कागासर छेदियो, चंदगिरि नांवै चाड़ै।।[…]

» Read more

सतगुरु माग सुधार दे

आज गुरु पूर्णिमा रै दिन ज्ञात-अज्ञात उण तमाम श्रद्धेय गुरुजनां रै श्रीचरणां में सादर वंदन। कैयो जावै कै दत्तात्रेय चौबीस गुरु किया।कविराजा बांकी दासजी तो अठै तक लिखै कै जितरा माथै में केस है उतरां ई उणां रै गुरु-‘बंक इतियक गुरु किए,जितियक सिरपर केस।’आपांरै अठै गुरु नैं गोविंद सूं बधर बतायो गयो है अर्थात ईश मिलण रै मारग रो माध्यम ई गुरु है। आप सगल़ै जोगतै शिष्यां नैं पावन गुरु पूर्णिमा री अंतस सूं बधाई अर गुरुवां रै चरणां में पांच छप्पय भेंट- वदै जगत गुरु ब्रह्म,सदा गुरु शंभ सुणीजै। वसुधा गुरु ही विसन,परम ब्रह्म गुरु पुणीजै। चाल ओट गुरु […]

» Read more
1 2 3