रैणायर दुरगो रतन!

सामधरम रो सेहरो, मातभोम रो मांण।
आसै रै घर ऊगियो, भलहल़ दुरगो भांण।।1

आभ मरूधर आस घर, ऊगो अरक उजास।
जस किरणां फैली जगत, दाटक दुरगादास।।2

नर-समंद मुरधर नमो, इल़ पर बात अतोल।
रैणायर दुरगो रतन, आसै घरै अमोल।।3

चनण तर दुरगो चवां, सुज धर पसर सुवास।
निमल़ कियो घर नींब रो, सूरै सालावास।।4[…]

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कलंक री धारा ३७०

पेख न्यारो परधान, निपट झंडो पण न्यारो। सुज न्यारो सँविधान, धाप न्यारो सब ढारो। आतँक च्यारां ओर, डंक देश नै देणा। पड़िया छाती पूर, पग पग ऊपरै पैणा। पनंगां दूध पाता रह्या, की दुरगत कसमीर री। लोभ रै ललक लिखदी जिकां, तवारीख तकदीर री।। कुटल़ां इण कसमीर, धूरतां जोड़ी धारा। इल़ सूं सारी अलग, हेर कीधो हतियारां। छती शांती छीन, पोखिया ऊ उतपाती। घातियां घोपीयो छुरो मिल़ हिंद री छाती। करता रैया रिल़मिल़ कुबद्ध, परवा नह की पीर री। वरसां न वरस बुरिगारियां, की दुरगत कसमीर री।। कासप रो कसमीर, उवै घर अरक उजासै। केसर री क्यारियां, बठै वनराय विकासै। […]

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बणसूर, जुगतावत गोत री सुभराज

घर जुगता गरजी घणा,अरजी करे अपार।
मरजी राजा मान री,सरजी सरजण हार।।
ऊगै रिव ऐतीह,पूगै ताय सेती पवन।
जुगता धर जैतीह,तेती कीरत ताह री।।
मरजी राजा मान री,जुगता ऊपर जोर।
कर रीझां अनरिण कियो, रयो न कबडी रोर।।
पाडलाऊ तांबांपत्रा,मौने बगसी मांन।
दै हाथी सांसण दिया,दीना लाखां दान।।[…]

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काव्यशास्त्र विनोद का अनूठा मंच काव्य-कलरव पटल

हमारे काव्यमनीषियों ने लिखा कि विद्वान एवं गुणी लोग काव्यशास्त्र विनोद में अपना समय सहर्ष व्यतीत करते हैं जबकि मुर्ख व्यक्ति का समय या तो नींद लेने में बीत जाता है या फिर परिजनों एवं परममित्रों से कलह करने में ही मुर्ख व्यक्तियों का समय बीतता है।-

काव्यशास्त्र विनोदेन कलोगच्छति धीमताम
व्यसनेन च मूर्खाणां निद्रहया कल्हेनवा। 

आज की भागदौड़ भरी जिंदगी में जब लोग साहित्य तथा स्वाध्याय से कटने को विवश है तथा यदि कोई संस्कारवश रुचि भी रखता है तो उसे सद साहित्य की संगत मिलना बहुत मुश्किल भरा काम है।[…]

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कर मत आतमघात – कवि मोहन सिंह रतनू

आत्म हत्या महा पाप है, विगत कई सालों से बाडमेर जिले में आत्म हत्याएं करने वालो की बाढ आ गई है। मैंने इस विषय पर कतिपय दोहे लिखे जो आपकेअवलोकनार्थ पेश है-

कायर उठ संघर्ष कर, तन देवण नह तंत।
पत झड रे झडियां पछै, बहुरि आय बसंत।।1

अंधकार आतप हुवै, मघवा बरसै मेह।
ऊंडी सोच विचार उर, दुरलभ मानव दैह।।2

लाख जनम तन लांघियो, पुनि मानव तन पात।
बिरथा देह बिगाड़ नै, कर मत आतम घात।।3

सुख दुख इण संसार मे, है विधना के हाथ।
दुर दिन सनमुख देखनै, कर मत आतम घात।।4[…]

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मत किम चूको मोर?

थल़ सूकी थिर नह रह्यो, चित थारो चितचोर।
लीलां तर दिस लोभिया, मन्न करै ग्यो मोर।।1

लूवां वाल़ै लपरकां, निजपण तजियो नाह।
धोरां मँझ तज सायधण, रुगट गयो किण राह।।2

झांख अराड़ी भोम जिण, आंख खुलै नीं और।
वेल़ा उण मँझ वालमा, मोह तज्यो तैं मोर।।3

वनड़ी तज थल़ वाटड़ी, अंतस करा अकाज।
बता कियो तैं वालमा, की परदेसां काज।।4[…]

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वाह तरव्वर वाह

लालच ना जस लैण रो, चित न बडाई चाह।
आये नै दे आसरो, वाह तरव्वर वाह।।1

गहडंबर फाबै गजब, रल़ियाणो मझ राह।।
पथिक रुकै परगल़, छिंयां, वाह तरव्वर वाह।।2

विहँग सीस वींटा करै, उर ना भरणो आह।
दंडै नीं राखै दया, वाह तरव्वर वाह।।3

फूल तोड़ फल़ तोड़णा, पुनि सथ तोड़ पनाह।
उण पँछिया नै प्रीत दे, वाह तरव्वर वाह।।4[…]

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किरसाण बाईसी – जीवतड़ो जूझार

।।दूहा।।
तंब-वरण तप तावड़ै, किरसै री कृशकाय।
करण कमाई नेक कर्म, वर मैंणत वरदाय।।1

तन नह धारै ताप नै, हिरदै मनै न हार।
कहजो हिक किरसाण नै, सुज भारत सिंणगार।।2

गात उगाड़ै गाढ धर, फेर उगाड़ी फींच।
खोबै मोती खेत में, सधर पसीनो सींच।।3

कै ज सिरै किरतार है, कै ज सिरै किरसाण।
हर गल्ल बाकी कूड़ है, कह निसंक कवियाण।।4[…]

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धुर पैंड़ न हालै माथौ धूंणे (गीत घोड़ा रैं ओळभा रौ) – ओपा जी आढ़ा

देवगढ़ के कुंवर राघवदेव चूंडावत ने ओपा आढ़ा को एक घोड़ा उपहार में दिया। जब वह इसको लेकर रवाना हुआ तो घोड़े ने अपने सही रंग बता दिये। प्रस्तुत गीत में घोड़े के सभी अवगुण बताते हुए राघवदेव को कड़ा उपालम्भ दिया हैं।

धुर पैंड़ न हालै माथौ धूंणे,
हाकूं कैण दिसा हे राव।
दीधौ सौ दीठो राघवदा,
पाछो लै तो लाखपसाव।।१[…]

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सुंधा मढ ब्राजै सगत

छपन क्रोड़ चामुंड अर, चौसठ जोगण साथ।
नवलख रमती नेसड़ै, भाखर सूंधा माथ।।१

झंडी लाल फरूकती, जोत अखंडी थाय।
मंडित मंदिर मात गिरि, राजे सुंधा राय।।२

रणचंडी दंडी असुर, सेवक करण सहाय।
बैठी मावड़ बीसहथ, सगती सुंधाराय।।३

डाढाल़ी दुख भंजणी, गंजण अरियां गात।
भाखर सुंधा पर भवा!, चामंड जग विख्यात।।४[…]

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