याकूब आमीर के तरही मिसरे पर गज़ल

आप से रोशन हुई राहें सभी चारों तरफ।
अब न भटकेगी मिरी आवारगी चारों तरफ॥
चांद, तारों, बादलों, फूलों, बहारों में जरा,
ढूंढले बिखरी पडी है शायरी चारों तरफ॥
कौन यह आया कि सहरां भी गुलिस्तां हो गया,
जिसकी आहट नें करी जादूगरी चारों तरफ॥[…]

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बेटियाँ – राजेश विद्रोही(राजूदान जी खिडिया)

बाबुल की बेशक़ीमती थाती है बेटियाँ।
बेटे अग़र चिराग हैं बाती हैं बेटियाँ।।

अंजाम हर फ़रज को हमेशा दिया मग़र।
हरग़िज नहीं हकूक जताती हैं बेटियाँ।।

बेटों से एक घर भी संभलता नहीं मग़र।
दो मुख़्तलिफ़ घरों को मिलाती हैं बेटियाँ।।

बाबुल की देहरी से विदाई के बाद भी।
नैहर के नेगचार निभाती हैं बेटियाँ।।[…]

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बड़े मियाँ – राजेश विद्रोही(राजूदान जी खिडिया)

सबकी सुनकर भी अपनी पर अड़े हुये हैं बड़े मियाँ।
लोग शहर के कैसे चिकने घड़े हुये हैं बड़े मियाँ।
पहले यूं ख़ुदगर्ज़ नहीं था कुछ अपनापा बाक़ी था।
आख़िर हम भी इसी शहर में बड़े हुये हैं बड़े मियाँ।
ये मत सोचो इस मरभुख्खे गाँव में क्या तो रक्खा है।
जाने कितने बड़े ख़जाने गड़े हुये हैं बड़े मियाँ।[…]

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बदलते हैं – ग़ज़ल – राजेश विद्रोही (राजूदान जी खिडिया)

बदलने को बहुत कुछ आज भी अक्सर बदलते हैं।
न शीशे हम बदलते हैं न वो पत्थर बदलते हैं।।

ज़मीं फिरती है बरसों और फ़लक बरसों बरसता है।
कसम से तब कहीं जाकर ये पसमंजर बदलते हैं।।

हमें ख़ौफ़े ख़ुदा है और तुम्हें ज़ालिम जहाँ का डर।
चलो कुछ देर की ख़ातिर हम अपने डर बदलते हैं।।

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बच्चे – ग़ज़ल – राजेश विद्रोही

हमारे मुल्क में मासूमियत खोते हुये बच्चे .
लङकपन में बुजुर्गों की तरह होते हुये बच्चे ..

कहीं से भी किसी उम्मीद के वारिस नहीं लगते .
घरौंदो की बगल में बेबसी बोते हुये बच्चे ..

उदय होते हुये भारत की शाईनिंग पे धब्बा हैं.
अभावों की सङक पर गिट्टियाँ ढोते हुये बच्चे .[…]

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welcome -2000

साहिर लुधियानवी मेरे पसंदीदा शायर है। उनकी एक रचना की एक पंक्ति को आधार बनाकर मैंने भी एक नज्म लिखी थी। welcome 2000 इक्कीसवी सदी के स्वागत हेतु। साहिर की पंक्ति थी – “आओ कि कोई ख्वाब बुनें कल के वासते” उस पंक्ति के बाद की कल्पना मेरी है।

🌺welcome -2000🌺

आओ कि कोई ख्वाब बुनें कल के वासते,
क्योंकि हमारा कल ही आने वाला आज है।
हर आने वाला लमहा जो सपनों में पला हो,
ऐसे हसींन पल का निराला अंदाज है।
आओ कि कोई ख्वाब बुनें कल के वासते।[…]

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महा पदारथ लाधो संतो! – गज़ल

महा पदारथ लाधो संतो!
अलख-ब्रह्म आराधो संतो!
मूरख पढ पढ बणिया ग्यानी,
दो आखर इक आधो संतो!
भाव-नगर, री पोल़ पूगिया,
क्यूं नीं तोरण-वांदो संतो?
सबद भाव हांडी धर चूल्है,
मन तांदल़जो रांधो संतो!
सबद-अमर इण जग सोनलिया,[…]

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Hello! હું તમને યાદ કરું છું! – ગઝલ

Hello! હું તમને યાદ કરું છું!
યાદ કરું છું!સાદ કરું છું!
છપ્પન ત્રણસો અડતાલીસ પર,
ક્ષણે ક્ષણે સંવાદ કરું છું!
Hello!કેમ છો?કુશળ ક્ષેમ છો!,
પ્રશ્નો નો વરસાદ કરું છું!
Hello ! તમારું નામ લઇ હું,
નિશદિન અંતરનાદ કરું છું![…]

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हिम्मत मत ना हार मानवी – गजल – कवि गिरधारी दान बारहठ (रामपुरिया)

हिम्मत मत ना हार मानवी
कर लै खुद सूं प्यार मानवी।
थारै उठियां ही थरकैला,
आतंक-अत्याचार, मानवी।
करम किये जा फल री चिंता,
मन मांही मत धार मानवी।
दिल में जिण रै देश बसै ना,
भूमी पर वै भार मानवी।[…]

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कासा थामें चला कलंदर

कासा थामे चला कलंदर!
चौखट गाँव गली दर घर घर!
सहरा, जंगल, परबत, बस्ती,
गाहे गाहे मंज़र मंज़र!
बाहर बाहर दिखै भिखारी,
भीतर भीतर शाह सिकंदर!
रेत कौडियाँ गौहर मछली
अपने भीतर लिए समंदर![…]

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