सुणजै सुरराय अमीणी साहल़

गीत – जांगड़ो
सुणजै सुरराय अमीणी साहल़,
दया धार दिल देवी।
आयो कोप आपरां ऊपर,
कोरोना सो केवी।।१[…]
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गीत – जांगड़ो
सुणजै सुरराय अमीणी साहल़,
दया धार दिल देवी।
आयो कोप आपरां ऊपर,
कोरोना सो केवी।।१[…]
गीत-जांगड़ो
सरपंची रो मेल़ो सजियो, भाव देखवै भोपा।
धूतां धजा जात री धारी, खैरूं होसी खोपा।।1
दूजां नै दाणो नीं दैणो, एक समरथन आपै।
वित लूटण मनसोबा बांधै, जनहित झूठा जापै।।2[…]
चावी बातां चारणां, आप लिखी अणमोल।
कुळ महेच नाहर कमध, जलम्यो भलां जसोल।।
।।गीत जांगडौ।।
सूरज वंसी रावळ सळखाणी, मलीनाथ मालाणी।
मेहळ भगतां सिरै प्रंमाणी, रंग रूपांदे राणी।
माल तणो जगमाल महाभड़, वडम अनड़ रणबंको।।
अपहड़ बिजड़ हथौ अड़पायत, सात्रव दळ पड़ संको।।
सींथल गांव का नाम आते ही मेरे मनमें गर्व व गौरव की अनुभूति इसलिए नहीं होती कि वहां मेरे समुज्ज्वल मातृपक्ष की जड़ें जुड़ती हैं बल्कि इसलिए भी होती है कि इस धरती ने साहस, शौर्य, उदारता, भक्ति, के साथ ही मातृभूमि के प्रति अपनी अनुरक्ति का सुभग संदेश परभोम में भी गर्वोक्ति के साथ दिया है–
“लिखी सहर सींथल़ सूं आगै गांम कल़कतिये”[…]
» Read more।।गीत – जांगड़ो।।
ऊभा सूर सीमाड़ै आडा,
भाल़ हिंद री भोमी।
निरभै सूता देश निवासी,
कीरत लाटै कोमी।।१
सहणा कष्ट इष्ट सूं सबल़ा,
भाल़ रणांगण भाई।
ताणै राखै आभ तिरंगो,
करणा फिकर न काई।।२[…]
।।गीत जांगड़ो।।
आंधै विश्वास तणो अंधियारो,
भोम पसरियो भाई।
पज कुड़कै में लिखिया पढिया,
गैलां शान गमाई।।1
फरहर धजा बांध फगडाल़ा,
थांन पोल में ठावै।
बण भोपा खेल़ा पण बणनै,
विटल़ा देव बोलावै।।2[…]
।।गीत – जांगड़ो।।
व्हालो ओ पूत बीसहथ वाल़ो,
दूंधाल़ो जग दाखै।
फरसो करां धरै फरहरतो,
रीस विघन पर राखै।।१
उगती जुगती हाथ अमामी,
नामी नाथ निराल़ो।
भगतां काज सुधारण भामी,
जामी जगत जोराल़ो।।२[…]
जंगल़ थप थांन विराजै जांमण
देवी आप देसांणै।
द्रढकर राज बैठायो दाता,
बीको पाट बीकांणै।।1
अरजन विजै जांगलू आख्यो,
चारण जोड चरावै।
धारै नाय रोफ धणियां रो,
करनी हांण करावै।।2
चरती धेन जोड में चारो,
मन व्रदावन मांनै।
आयो दुसट बैठ अस आसण,
करी दूठ तंग कांनै।।3[…]
सिमर रै सांमल़ियो साहेब,
वेद पुराण बतावै।
सुधरै अंत मिटै धुर सांसो,
संत सार समझावै।।1
पुणियां नाम कटै भव पातक,
सुणियां मल़-गल़ सारा।
चुणिया नाम कोट गढ चौड़ै,
पेख हुवा पौबारा।।2[…]
राजस्थानी रा सिरै कवि रायसिंहजी सांदू मिरगैसर आपरी रचना “मोतिया रा सोरठा” में ओ सोरठो जिण महामनां नै दीठगत राखर लिखियो उणां में नाहरसिंहजी हर दीठ सूं खरा उतरै-
राखै द्वेष न राग, भाखै नह जीबां बुरो।
दरसण करतां दाग, मिटै जनम रा मोतिया।।
किणी मध्यकालीन कवि ठाकुर सुरतसिंह री उदार मानसिकता नै सरावतां कितो सटीक लिखियो हो-
सुरतै जिसै सपूत, दिस दिस मे हिक हिक हुवै।
चारण नै रजपूत, जूना हुवै न च्यारजुग।।
आज जद आपां नाहरसिंहजी जसोल नै देखां तो बिनां किणी लाग लपट उण मध्यकालीैन क्षत्रिय मनीषियां री बातां अर अंजसजोग काव्य ओल़ियां याद आ जावै जिकी इणां चारण कवियां री स्वामी भक्ति, सदाचरण, साहित्य रै प्रति समर्पण, सांस्कृतिक चेतना, सत्य रो समर्थन साच कैवण रो साहस अर सही सलाह रै उदात्त गुणां नै देखर कैयी।[…]
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