डिंगल काव्य केवल वीर रस प्रधान ही नहीं इसमें हास्य रस भी है-मोहन सिंह रतनू

महान भक्त कवि ओपा जी आढा को देवगढ के कुंवर राघव देव चूंडावत ने ऐक घोड़ा भेंट किया। घोड़ा बूढा एवं दुर्बल था।
इस पर कवि ने कुंवर को उलाहना स्वरूप एक गीत लिखा…देखिये सुंदर बिंनगी

धर पैंड न चालै माथो धूणै,
हाकूं केण दिसा हैराव।
दीधो सो दीठो राघव दे,
पाछो ले तूं लाख पसाव।।1[…]

» Read more

गीत राठोड़ पाबूजी धांधळोव रो – आसिया बांकीदास रो कह्यो

प्रथम नेह भीनौ महा क्रोध भीनौ पछै,
लाभ चमरी समर झोक लागै।
रायकवरी वरी जेण वागै रसिक,
वरी घड कवारी तेण वागै।।

हुवे मगळ धमळ दमगळ वीरहक,
रग तूठो कमध जग रूठो।
सघण वूठो कुसुम वोह जिण मौड सिर,
विखम उण मौड सिर लोह वूठो।।[…]

» Read more

आशिया प्रभुदानजी भांडियावास !

आशिया प्रभसा रो जसौल ठिकाणै म सदा सनातनी सीर, रावऴसा व बाजीसा एक बीजा रा दुख सुख रा साथी, बाजीसा न देखियां बिना रावऴसा ने चैननंई मिऴै अर बाजीसा रो बीजी जागां मन नीं लागे।
एकर प्रभसा सियाऴा रा दिना आपरै घरै एक तगड़ो तियार हुयैड़ो खाजरु, संधीणा री सोच अर करियो अर आपरा कीं साथियां ने भी निमतिया, साथी वांरी कूंत हूं घणा पूगग्या, बीं मां सूं आधे सूं घणो तो रात ने ई जिमकायगा व बचियौड़ा ने एक ऊंची जागां टांक दियौ अर बै लोग निंशंक सोयग्या, रातै एक मिनड़ी आयर बचियौड़ा भाग ने खायगी, प्रभसा रै संधीणा री मनसा मन में ई रैयगी, भाई सैण पाड़ोसी तथा भायला बाजीसा ने संधीणा रा ताना देवण लागा।प्रभसा ईरा उपाय में जसोल रावऴसा कने एक गीत लिखर ऊंठ सवार रे साथै भेजियो।

» Read more

आई शैणलमां रो गीत – कवि नाथूराम लाळस

आई शैणल जुडियै थह उभी, खाग भुजां बऴ खंडी।
प्रगळ हुवै नव नैवज पूजा, चाचर भूचर चंडी॥1॥

खप्पर भरै सत्रां पळ खाचण, हाथ त्रशूळ हलावै।
सेवग साद सुणंता शयणी, उपर करवा आवै॥2॥

विखमा डमरु डाक वजंती, वाघ चढी वेदाई।
दोखी दु:ख पावै जिण दीठां, सुख पावै सरणाई॥3॥[…]

» Read more

करणी मां रो आवाहण गीत – जंवाहरजी किनिया सुवाप

किनी किम जेज इती किनीयांणी,धणियांणी नंह और धणी।
खाती आव रमंती खेला,वेळा अबखी आण बणी॥1॥
अवलंब नहिं आप विण अंबा,जगदंबा किणनै कहुं जाय।
म्हारै जोर आपरो मोटो,धाबळवाळ सुणें झट धाय॥2॥
सात दीप हिंगळाज शगत्ति,मनरंगथळ धिन माता।
सांभळ अरज कहै इम सुकवि, खेड पधारो खाता॥3॥[…]

» Read more

ओल़्यू

बालमजी नें जाय कहिजो रे आवो म्हारै देस!
ओल़्यू थांरी आवे म्हानैं रे छोडो परदेस!!

बागां में कोयल बोले रे, भँवरा भटकेह!
पण थां बिन पुरी प्रथमी रे, खाविंद खटकेह!!
एकर अरजी म्हानौ मारी रे छोडो परदेस रे थें छोडो परदेस!
बालमजी नें जाय कहिजो रे आवो म्हारे देस![…]

» Read more

रामदेव पीर आवाहन

🌺रामादेव पीर आह्वान🌺

रामा! बाट निहारूं थांरी।
आवो बेगा अलख धणी, हे लीले रा असवारी!

वीरमदे सुगणा रा वीरा, अजमल सुत अवतारी!
मेणादे रा लाल लाडला, नेतल तो घर नारी! १

रामा! बाट निहारूं थांरी।
आवो बेगा अलख धणी, हे लीले रा असवारी!

सिर धर सुंदर पाग सुरंगी, पीतांबर तन धारी!
जरकसी जामा प्हैरै ठाकर, अलख पुरूष अलगारी! २[…]

» Read more

खोडियार मां रो डिंगळ गीत – कवि दादूदान प्रतापदान मीसण

तट हिरण रे वासो थारो।
धरो गाजै जठै इक धारो
तरवर फूलां वास तिहारो।
महके वायु रो मंहकारो॥1॥
झरणां मह झणकार करै थुं।
नीर विच घेरो नाद करे थुं
वगडा मंह वनराई घटा थुं।
लाल गुलाबी वेलि लता थुं॥2॥[…]

» Read more

महाराणा प्रताप रौ जस – कवि स्व. भँवरदान जी वीठू “मधुकर” (झणकली)

उतर दियौ उदीयाण दिन पलट्यौ पल़टी दूणी।
पातल़ थंभ प्रमाण़ शैल गुफावा संचरीयौ।

मिल़ीयौ मैध मला़र मुगला री लशकर माय।
कलपै राज कुमार मैहला़ चालौ मावड़ी।

महल रजै महाराण कन्दरावा डैरा किया।
पौढण सैज पाखांण हिन्दुवां सुरज हालीया।

» Read more

ख्यात आईनाथ री अनोपो वखाणे-अनोप जी वीठू

श्री सुरसती गणपति वृहसपति शारदा,उकति सम्मपो अन्नदाता।
सापतातम्म री वारता सुणावां,मोतीवाळी हुई जगत माता॥1

हेमाळा पहाड सुं निसरे हालतो,गळियोडा बरफ रो नीर गोटो।
हिंद अर सिन्ध रै बीच मंह होयनै,मोतियां भरोडो पेट मोटो॥2

तिब्बत कम्बोज सुं उतरे ताकडो,हाकडो नांम दरियाव हाले।
घिरोळा देवतो बण्यो घण घमंडी,रतन रतनाकरो मांय राळै॥3 […]

» Read more
1 2 3 4