शिव स्तुति – महात्मा नरहरिदास बारहट

।।शिव स्तुति।।
(सवैया-घनाक्षरी)
वृषभको वाहन बिछावनौ है लोमविष,
विषईतुचा को वास क्रोधके निकेत है।
आसीविष भूषण, भखन विष विंधुमाला,
मंगल तिलक सर्वमंगला सहेत है।।
विषय विनाश वेष रहत विषैही रत्त,
शूल औ कपाल इहिं संपति समेत है।
देखौ धौं अभूत भूतनाथ एकौपल भजे,
रीझ मर्त्यनामानि अमर्त्य पद देत है।।१।।[…]

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🌷घनाक्षरी कवित्त 🌷

कुंभा से कला प्रवीण, सांगा से समर वीर,
प्रणधारी पातळ की मात महतारी है।
प्रण हेतु परणी को चंवरी में छोड़ चले,
काळवीं की पीठ चढ़े पाबू रणधारी है।।
मातृभूमि की पुकार सुनिके सुहाग रात,
कंत हाथ निज सीस सौंपे जहां नारी है।
कर के प्रणाम निज भाग को सराहों नित,
रणबंकी राजस्थान मातृभू हमारी है।।01।।[…]

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झरोंखे दृग लायके – “प्रबीणसागर” से मनहरण कवित्त (घनाक्षरी)

कटी फेंट छोरन में, भृकुटी मरोरन नें,
शीश पेंच तोरन में, अति उरजायके,
मंद मंद हासन में, बरूनी बिलासन में,
आनन उजासन में, चकाचोंध छायके,
मोती मनी मालन में, सोषनी दुशालन में,
चिकुटी के तालन में, चेटक लगायके,
प्रेम बान दे गयो, न जानिये किते गयो,
सुपंथी मन ले गयो, झरोंखे दृग लायके. (१) […]

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🌹सूर्यनारायण स्तुति🌹-कविराज नवलदानजी आसिया (खांण)

🌹छंद रेणंकी🌹
नित नित नवलेश शेश कर समरन, जुग अशेश कर क्लेश जरे|
सुमिरत अमरेश शेश पुनि शारद, ध्यांन धनेश गणेश धरे|
विलसत दश देश बेस बल व्यापक, प्रगट विग्यान अग्यान परे|
दिनकर कर निकर उदयगिरि ऊपर, होय उदयकर तिमिर हरे||१ […]

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