इसी जमर अग्नि से तूं जलेगा

(लाछांबाई खिड़ियांणी जानामेड़ी की जमर कथा) मयूर कितना सुंदर पक्षी होता है। शायद उसे अपनी इसी सुंदरता पर गर्व भी है लेकिन जब वो अपने फटे व धूसर पैरों को देखता है तो उसे अपनी सुंदरता विद्रूप लगने लगती है, और उसे रोना आ जाता है। तभी तो यह कहावत चली है कि ‘मोरियो घणो ई रूपाल़ो हुवै पण पगां कांनी देखै जणै रोवै।’ यही बात कमोबेश चारण इतिहास संबंधी शोध करते या लिखतें समय होती है। जिन लोगों ने दूसरों पर बहुत विस्तार से लिखा लेकिन स्वयं की बातें केवल श्रुति परंपरा में संजोकर रखी। श्रुति परंपरा में एक […]
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